आजादी के बाद से पाकिस्तान में अभी तक 3 बार सेना तख़्तापलट कर चुकी है और ऐसा लग रहा है कि एक बार फिर पाकिस्तान में यही हालात बन रहे हैं। पाकिस्तान के 70 साल के इतिहास में आधा समय सेना के शासन में ही गुजरा है। जब भी पाकिस्तान भारत से युद्ध हारता है तब वहाँ सेना तख़्तापलट कर सत्ता अपने हाथों में ले लेती है। अब भारत सरकार के कश्मीर को लेकर कड़े रुख के बाद पाकिस्तान में एक बार फिर से सेना कमान अपने हाथों में ले सकती है। रिपोर्ट्स के अनुसार इन मामलों पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा दिए गए बयानों से भी सेना काफी नाराज़ है जिससे तख़्तापलट की उम्मीदें बढ़ गयी है।
दरअसल, पाकिस्तान कहने को लोकतांत्रिक देश है लेकिन वहां की सरकार, अर्थव्यवस्था, और सभी संस्थाओं पर पाकिस्तानी सेना की ही पकड़ रही है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का ज़्यादातर खर्च उनकी सेना पर ही किया जाता है। वर्ष 2019-20 के लिए सभी आवंटन को देखते हुए रक्षा के लिए आवंटित कुल बजट 1,882 अरब रुपये है जो पिछले वित्त वर्ष से 11% की वृद्धि दिखाता है। सेना और आईएसआई इन रुपयों का उपयोग वहां आतंकवादियों को भी पालने का काम करते हैं जिसका इस्तेमाल भारत और विश्व में आतंकवाद फैलाने के लिए किया जाता है। हालांकि, विश्व के सामने पाकिस्तान सरकार और सेना दोनों ही इस बात से इंकार करते रहे है कि उनके देश में आतंकवादियों को पनाह दी जाती है।
हालांकि, पाकिस्तान सरकार और पाकिस्तानी सेना दोनों ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर और तब एक्सपोज हो गये थे जब पुलवामा में आत्मघाती हमले के जवाब में भारतीय वायुसेना द्वारा किये गये एयरस्ट्राइक ने पाक में स्थित कई आतंकवादियों के शिविर को तबाह कर दिया था.
इसके बाद पाकिस्तानी सेना को एक बड़ा झटका तब लगा जब जुलाई महीने में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने अमेरिकी दौरे पर यह स्वीकार किया था कि अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों या कश्मीर में प्रशिक्षण लेकर लड़ने वाले करीब 40,000 आतंकी उनके मुल्क में मौजूद हैं। इससे पाकिस्तान सेना के जनरल अपनी पोल खुलते देख इमरान खान के खिलाफ हो गए थे।
इसके बाद भारत ने मोदी सरकार के नेतृत्व में कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों के समान दर्जा देते हुए अपने संविधान से अनुच्छेद 370 हटा दिया था। भारत के इस फैसले ने आग में घी डालने का काम किया और पाकिस्तान में खलबली मच गयी. चारों तरफ पाक प्रधानमंत्री के खिलाफ विरोध प्रदर्शन होने लगे. पाक सेना जो पहले से ही इमरान खान से नाराज चल रही थी उसकी नाराजगी और भी ज्यादा बढ़ गयी। ऐसा होना लाजमी भी है क्योंकि इसी अनुच्छेद का उपयोग कर पाकिस्तानी सेना कश्मीर में अलगाववाद को बढ़ावा देती आई है। साथ ही पाकिस्तानी सेना अपनी जनता को भी कश्मीर को आज़ाद करने के नाम पर उन्हें भ्रम में रखती आई है और वहां की अर्थव्यवस्था का इस्तेमाल भी आतंकियों वित्तपोष्ण के लिए करती है। ऐसे में अब वहाँ की जनता यह सवाल जरूर करेगी कि जब कश्मीर को भारत ने पूर्ण रूप से शामिल कर लिया तो पाक सेना को इतने बड़े बजट की क्या आवश्यकता है? भारत के इस कदम से सबसे ज्यादा नुकसान पाकिस्तानी सेना को ही होने वाला है जिसकी भरपाई करने के लिए पाक सेना किसी भी स्तर पर जा सकती है।
अभी हाल ही में पाकिस्तान के आजादी दिवस पर इमरान खान यह भी कबूल कर बैठे कि भारत पीओके में बालाकोट से भी बड़ा हमला करने की योजना बना रहा है। उन्होंने कहा था, ‘पाकिस्तानी सेना को इस बात की पूरी जानकारी है। हमारी जानकारी के मुताबिक भारत की और भी भयावह योजनाएं हैं’। इमरान खान के इस कबूलनामे से भी पाकिस्तानी सेना और ज्यादा नाराज है। चूंकि पाकिस्तानी सेना हमेशा से इस बात से इंकार करती रही है कि बालाकोट में हुए एयरस्ट्राइक में पाकिस्तान को कोई भी नुकसान नहीं हुआ है।
एक साल पहले ही सेना की मदद से सत्ता में आए इमरान खान एक प्रधानमंत्री के तौर पर पूरी तरह से विफल रहे हैं और इन हालातों में उन पर भारत के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करने का काफी दबाव है चूंकि पाकिस्तान तंगहाली से गुजर रहा है, ऐसे में भारत के साथ युद्ध करने की क्षमता उसमें नहीं है।
एक के बाद एक खुलासों से पाकिस्तानी सेना पूरी तरह से विश्व और अपनी जनता के सामने एक्सपोज हो चुकी है और इन सब की वजह है वहाँ के प्रधानमंत्री इमरान खान। वहाँ की जनता भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के कदमों से खुश नहीं है। यह स्थिति पाकिस्तानी सेना द्वारा तख़्तापलट के लिए बिल्कुल अनुकूल है। पाकिस्तानी सेना के इतिहास को देखें तो तख़्तापलट करके वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर और अपने देश की जनता को यह कह सकेंगे कि प्रधानमंत्री को उनके कमजोर नेतृत्व के लिए हटाया जा रहा है और सेना अब भारत के खिलाफ बड़ी कारवाई करेगी।
हालांकि, इमरान खान पहले प्रधानमंत्री नहीं होंगे जो पाकिस्तानी सेना द्वारा बलि का बकरा बनेंगे। इससे पहले पाकिस्तान में 3 बार सेना तख्तापलट चुकी है।
वर्ष 1958 में पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति मेजर जनरल इसकंदर मिर्जा ने पाकिस्तानी संसद और प्रधानमंत्री फिरोज खान नून की सरकार को भंग कर दिया था। इसके साथ ही उन्होंने देश में मार्शल लॉ लागू कर आर्मी कमांडर इन चीफ जनरल अयूब खान को देश की बागडोर सौंप दी थी। 13 दिन बाद ही अयूब खान ने तख्तापलट करते हुए देश के राष्ट्रपति को पद से हटा दिया था।
इसके बाद वर्ष 1977 में पाकिस्तान का दूसरा तख्तापलट आर्मी चीफ जनरल जिया उल हक द्वारा किया गया था। जिया उल हक ने 4 जून 1977 को देश के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को पद से हटा दिया था। इस तख्तापलट को ‘ऑपरेशन फेयर प्ले’ के नाम से भी जाना जाता है।
सन् 1999 में भी आर्मी चीफ परवेज मुशर्रफ ने तख्तापलटते हुए सत्ता अपने हाथों में ले ली थी। तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ सरकार ने इस तख्तापलट को रोकने की पुरजोर कोशिश की। आर्मी चीफ परवेज मुशर्रफ को पद से बर्खास्त करने के साथ-साथ श्रीलंका से आ रहे उनके विमान को पाकिस्तान में न उतरने देने की शरीफ सरकार की प्लानिंग धरी की धरी रह गई। इससे पहले ही मुशर्रफ के वफादार सीनियर ऑफिसर्स ने 12 अक्टूबर 1999 को प्रधानमंत्री और उनके मंत्रियों को गिरफ्तार कर लिया था। इतिहास को देखते हुए यह संभावना है कि अगर लोगों का गुस्सा शांत नहीं हुआ तो पाकिस्तानी सेना प्रमुख क़मर जावेद बाजवा इमरान खान को बलि का बकरा बना देंगे और पाक की बागडोर अपने हाथों में ले लेंगे। सोमवार को आई खबर के अनुसार सेना प्रमुख बाजवा का कार्यकाल भी तीन वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया है, जिससे तख्तापलट होने की उम्मीदें और भी ज्यादा बढ़ गयी है।