एनडीटीवी के संस्थापक प्रणॉय रॉय और उनकी पत्नी राधिका रॉय को शुक्रवार को मुंबई हवाई अड्डे पर विदेश जाने से रोक दिया गया। इन दोनों के खिलाफ सीबीआई भ्रष्टाचार के आरोपों के तहत जांच कर रही है। हालांकि, इसके तुरंत बाद एजेंडावादी लोगों ने यह राग अलापना शुरू कर दिया कि सरकार मीडिया को निशाना बना रही है, और प्रणॉय रॉय और राधिका रॉय को ऐसे विदेश जाने से रोका जाना उनके अधिकारों का हनन है। बता दें कि एनडीटीवी पर भारी कर्ज़ है और वह वित्तीय संकट से जूझ रहा है। इसके अलावा सीबीआई भी कई मामलों में रॉय परिवार के खिलाफ जांच कर रही है। ऐसे में कुछ एजेंडावादी लोगों द्वारा सरकार पर मीडिया की आज़ादी को लेकर लगाए जा रहे आरोप पूरी तरह बेबुनियाद हैं।
सरकार के इस कदम के बाद एनडीटीवी की ओर से तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली। एनडीटीवी ने अपनी वेबसाइट पर जारी एक बयान में दावा किया कि राधिका और प्रणॉय रॉय को भ्रष्टाचार के ‘एक फ़र्ज़ी और बेबुनियाद मामले को आधार बनाकर’ रोका गया। ये भी बताया गया है कि ये मामला सीबीआई ने दो साल पहले दर्ज किया था और इस मामले को रॉय दंपति की कंपनी ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जहां ये दो साल से लंबित है। यानि साफ शब्दों में एनडीटीवी ने यहां विक्टिम कार्ड खेलने की कोशिश की, और भ्रष्टाचार के एक मामले को मीडिया की आज़ादी से जोड़कर दिखाने की कोशिश की, जो बेहद बचकाना तो है ही और साथ ही किसी भी जिम्मेदार मीडिया समूह को यह शोभा नहीं देता।
प्रणॉय रॉय कई मामलों में कानूनी कार्रवाई को भुगत रहे हैं। एक मामले में सिक्योरिटी एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) ने इसी वर्ष जून में प्रणॉय रॉय और राधिका रॉय पर शेयर बाजार में शेयरों की प्रत्यक्ष या परोक्ष खरीद-बिक्री या किसी भी तरह के लेन-देन और चैनल में डायरेक्टर या कोई भी मैनेजमेंट पद संभालने पर दो साल के लिये प्रतिबंध लगा दिया था। तब सेबी ने अपने आदेश में कहा था कि इनके द्वारा 3 लोन एग्रीमेंट्स को लेकर माइनॉरिटी शेयरहोल्डर्स से जानकारी छिपाई गई थी जो कि नियमों का उल्लंघन है। हालांकि, बाद में सिक्योरिटी अपीलेट ट्रिब्यूनल (SAT) ने सेबी के इस आदेश पर रोक लगा दी थी। इसी तरह वर्ष 2015 में सेबी ने एनडीटीवी को आयकर विभाग द्वारा की गई 450 करोड़ रुपये की ‘कर’ मांग और कंपनी के शीर्ष कार्यकारी अधिकारियों द्वारा की गई शेयरों की बिक्री संबंधी सूचनाएं शेयर बाजारों को देने में देरी करने का दोषी पाया था और कंपनी पर 2 करोड़ का जुर्माना लगाया था। इसी मामले में मार्च 2018 में भी सेबी द्वारा एनडीटीवी और उसके चार अधिकारियों पर 22 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था।
इसके अलावा 2जी स्कैम के पैसे को चिदंबरम के साथ मिलकर ब्लैक से व्हाइट करने के मामले में प्रणॉय रॉय इनकम टैक्स की जांच में आरोपी हैं। मनमोहन सरकार के कार्यकाल में आईआरएस अधिकारी एस. के श्रीवास्तव ने अपनी जांच रिपोर्ट में इस स्कैम और इसमें चिदंबरम और प्रणॉय राय की मिलीभगत को लेकर सनसनीखेज खुलासा किया था जिसके बाद इस आईआरएस अधिकारी को तरह तरह से प्रताड़ित किया गया। इस संबंध में 2 साल पहले सीबीआई द्वारा रॉय के ठिकानों पर रेड मारी गई थी, और अब इसी मामले में उनको बाहर जाने से रोका गया है।
इस मामले को मीडिया की आज़ादी के हनन से जोड़कर दिखाना पूरी तरह बेबुनियाद है। बता दें कि कुछ इसी तरह जेट एयरवेज के फाउंडर नरेश गोयल और उनकी पत्नी अनीता को 25 मई को मुंबई एयरपोर्ट पर फ्लाइट से उतार लिया गया था। वे दुबई होते हुए लंदन जाना चाहते थे। जेट एयरवेज में वित्तीय अनियमितताएं पाए जाने की वजह से कॉरपोरेट अफेयर्स मिनिस्ट्री ने गोयल के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर जारी किया था। गंभीर मामलों के आरोपियों को देश से बाहर ना जाने दिया जाना देशहित में की जाने वाली कार्रवाई है। जो लोग आज एनडीटीवी के संस्थापकों पर की जाने वाली कार्रवाई को लेकर मीडिया की आज़ादी के हनन का ढिंढोरा पीट रहे हैं, यही लोग वित्तीय भगौड़े विजय माल्या के देश से बाहर जाने पर केंद्र सरकार पर आरोप लगा रहे थे। अगर वित्तीय मामलों के दोषी देश से बाहर भाग जाते हैं, तो यही एजेंदवादी लोग सरकार पर उनके साथ मिलीभगत का आरोप लगाने के लिए सबसे पहले सामने आते हैं, लेकिन जब ऐसे लोगों पर समय रहते कार्रवाई की जाती है, तो इनका तथाकथित ‘लोकतन्त्र खतरे में है’ का राग शुरू हो जाता है। सरकार द्वारा एनडीटीवी के संस्थापकों पर की गई कार्रवाई देशहित में उठाया गया कदम है और इसका स्वागत किया जाना चाहिए। ऐसे में एनडीटीवी और उनके संस्थापकों को ‘मीडिया की आजादी’ पर हमले का राग अलापने की बजाय जाँच एजेंसियों को जांच में सहयोग करना चाहिए।