एनडीटीवी के कार्यकारी संपादक रवीश कुमार ने पिछले दिनों खूब सुर्खियां बंटोरी। रवीश कुमार को उनकी ‘साहसी’ पत्रकारिता के लिए रेमन मैग्सेसे अवार्ड से नवाजा गया, और इस खबर के आते ही मानों लेफ्ट ब्रिगेड गैंग को जश्न मनाने का कोई बहाना मिल गया हो। सोशल मीडिया पर रवीश कुमार दिनभर ट्रेंड करते रहे और तमाम लेफ्ट ब्रिगेड के लोगों ने उन्हें उनकी ‘निष्पक्ष’ पत्रकारिता के लिए खूब सराहा। बता दें कि वर्ष 2006 में यह पुरुस्कार अरविंद केजरीवाल को भी मिल चुका है और उस वक्त केजरीवाल दिल्ली की एक एनजीओ ‘परिवर्तन’ के अध्यक्ष थे। एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार ने अपने पत्रकारिता के जीवन में कड़े परिश्रम से ही अपने आप को रेमन मैग्सेसे जैसे ‘प्रतिष्ठित’ अवार्ड के योग्य बनाया है।
उदाहरण के तौर पर वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले रवीश कुमार ने बड़ी शिद्दत से एसपी और बीएसपी के महागठबंधन को कामयाब बनाने के लिए पसीना बहाया था। तब उनकी एक फोटो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थी, जिसमें वे महागठबंधन की एक रैली के दौरान मंच पर खड़े दिखाई दिए थे। लोगों ने रवीश कुमार पर तरह-तरह के सवाल उठाने शुरू कर दिए थे। रवीश उस फोटो को लेकर जमकर ट्रोल हुए। तब ट्वीटर पर एक यूजर ने लिखा था, “महागठबंधन के इस कर्मठ कार्यकर्ता को पहचाना? कुर्सी ना मिलने से नाराज़ ज़रूर हैं, पर रैली में किस-किस जाति के लोग आए हैं उसे पता करने का काम इनके ज़िम्मे हैं।” कुछ यूजर्स ने लिखा था कि आज से रवीश कुमार आधिकारिक रूप से महागठबंधन का हिस्सा बन गए हैं। दरअसल, रवीश कुमार चुनावी समय में भाजपा के खिलाफ कुछ ज्यादा ही मुखर हो जाते हैं और विपक्षी नेताओं के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं मानो चुनाव में उनके सहयोगी हों।
ये सब तो कुछ भी नहीं, लाइव टीवी शो पर रवीश कुमार कई बार अपनी कमाल की सहिष्णुता को प्रदर्शित कर चुके हैं। एनडीटीवी के एक शो में अखिलेश ने एक पत्रकार को मारने तक की बात कह दी थी इसके बावजूद भी रवीश कुमार ने अखिलेश के बयान पर आपत्ती नहीं जताई। दरअसल, एक पत्रकार ने पहले कभी अखिलेश को औरंगजेब कह दिया था जिस पर अखिलेश ने कहा, “मेरी गलती है कि मैंने दिल्ली से लखनऊ बुलाकर पत्रकार को कहा कि मुझे औरंगजेब लिखने के लिए तुम्हें जितने पैसे मिले, उससे दोगुना मुझसे ले लेते।” अखिलेश बोले, “मुझसे यही गलती हो गई। मुझे भी औरंगजेब की तरह तलवार निकालनी चाहिए और उस शख्स को उसी समय खत्म कर देना चाहिए था।” इसके बाद रवीश कुमार ने अखिलेश यादव की गलती पर प्रकाश डालने के बजाय उनका बचाव किया था और आगे का सेशन निधि राजदान को जारी रखने के लिए कहा। यही अकेला वाकया नहीं है बल्कि ऐसे कई वाकये हैं जब रवीश प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से विपक्षी नेताओँ का समर्थन करते नजर आए। यही तो कारण है कि अब उन्हें रेमन मैग्सेसे अवार्ड से नवाजा गया है।
रवीश कुमार वाकई बेहद निडर पत्रकार हैं। तभी तो उन्हें अक्सर धमकियाँ मिलती रहती हैं, इतना ही नहीं, कई बार तो वे सरकार पर उनकी जासूसी करने तक का आरोप लगा चुके हैं। एक अन्य मामले में रवीश कुमार इयरफोन लगाकर ड्राइविंग कर रहे थे और साथ ही फोन चलाने में व्यस्त थे। इस दौरान एक जिम्मेदार नागरिक ने रविश की फोटो खींच ली और सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया। ऐसे में एक बार फिर से रवीश कुमार ने दावा किया कि उनके ऊपर निगरानी रखी जा रही है जैसे सरकार के पास और कोई काम बचा ही नहीं है, इसलिए सरकार रवीश के ऊपर नजर रख रही है। रवीश कुमार ने अपनी तकनीकी समझ का प्रदर्शन करते हुए दावा किया कि जब वो लाइव शो कर रहे थे तब सरकार ने एनडीटीवी की प्रसारण पर रोक लगा दी थी।
इसके अलावा रवीश कुमार राजनेताओं से लाजवाब सवाल पूछने के लिए भी जाने जाते हैं। उदाहरण के लिए लोकसभा चुनावों से पहले कन्हैया कुमार के साथ इंटरव्यू में रवीश कुमार ने उनसे पहला सवाल पूछा था ‘आप कब शादी कर रहे हैं’? भक्त पत्रकारों के पास ऐसे खतरनाक सवाल पूछने का जिगरा है क्या? यह बात तो सबको ही पता है कि कन्हैया कुमार जेएनयू के छात्र नेता रहते हुए टुकड़े-टुकड़े गैंग के एक प्रमुख सदस्य रह चुके हैं, लेकिन रवीश कुमार इस बात को पूरी तरह नकारते नज़र आए थे और कन्हैया कुमार की ‘सादा जीवनशैली’ का भरपूर प्रचार करते नजर आए। रवीश कुमार जो सवाल कन्हैया कुमार से पूछ रहे थे, वो सुनने में भी बड़े हास्यास्पद लग रहे थे। वे बार-बार कन्हैया की गरीबी और उनके बेरोज़गार होने की बात को उठाते दिखे, हालांकि वे इस बात को भी भूल गए कि कन्हैया कुमार द्वारा दायर हलफनामे में उन्होंने अपनी संपत्ति लाखों में दिखाया था।
बड़ी-बड़ी बातें बनाने वाले पत्रकार रवीश कुमार अक्सर ही ‘गोदी मीडिया’ का ज़िक्र करते नज़र आ जाते हैं। कोई भी पत्रकार यदि सत्तासीन पार्टी के बारे में कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया देता है, तो तुरंत रवीश कुमार सक्रिय होकर उन्हें ‘गोदी मीडिया’ का सदस्य घोषित कर देते हैं। हालांकि, जब एएनआई की एडिटर स्मिता प्रकाश द्वारा पीएम मोदी के इंटरव्यू को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी उन पर ‘प्लाईएबल’ पत्रकार होने का आरोप लगाते हैं, तो वे उस पर अपनी चुप्पी साधकर अपने दोहरे मापदंड का उदाहरण पेश करते हैं। हालांकि, यह पहली बार नहीं था जब रवीश कुमार ने अपनी पाखंडता को इतनी बेशर्मी से जाहिर किया हो। इससे पहले जब पुलवामा आतंकी हमले के दौरान कारवां पत्रिका ने शहीद होने वाले सैनिकों की जाति को जगजाहिर करने का घटिया काम किया था, तो भी वे रवीश कुमार ही थे जिसने इस पत्रिका के एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम बड़ी शिद्दत से किया था।
रवीश कुमार ने पिछले दिनों मीडिया को यह भी ‘आदेश’ जारी किया था कि वह पुलवामा और एयर स्ट्राइक से जुड़ी किसी खबर को ना चलाए, क्योंकि इससे भाजपा को फायदा पहुंच सकता हैं। हालांकि, वे खुद कन्हैया कुमार के तथाकथित इंटरव्यू के माध्यम से उनका भरपूर चुनाव प्रचार करते नज़र आए। अगर एक नज़र उनके निजी व्यक्तित्व पर डाली जाए, तो भी वे कोई दूध के धुले नज़र नहीं आते। पिछले दिनों जब एक राहगीर ने उनको गाड़ी चलाते हुए फोन पर बात करते देखा तो उसने उनकी फोटो खींच ली, हालांकि यह रवीश कुमार को बिल्कुल पसंद नहीं आया और उन्होंने उसके बाद उस राहगीर को जमकर डराने-धमकाने का काम किया। इतना ही नहीं, आरोप के मुताबिक रवीश कुमार की गाड़ी ने उनका 40 मिनट तक पीछा भी किया। रवीश कुमार के दोहरे मापदंड उनके व्यवसायिक जीवन तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि अपने निजी जीवन में भी उनकी करनी और कथनी में बड़ा फर्क नज़र आता है, और यही कारण है कि अब उन्हें प्रतिष्ठित अवार्ड ‘रेमन मैग्सेसे अवार्ड’ से नवाजा गया है। उनकी इस बड़ी उपलब्धि के लिए उन्हें बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।