गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में संकल्प पेश करते हुए कहा कि राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद अनुच्छेद 370 के खंड 1 को छोड़कर बाकी सभी खंड जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होंगे। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर के स्पेशल स्टेटस को निरस्त कर दिया गया। इस पर अपनी राय रखते हुए राज्यसभा के भाजपा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा, “अनुच्छेद-370 अब हटाया जा चुका है और कश्मीर पर कोई मध्यस्थता नहीं होगी। अब पाकिस्तान को पीओके को लौटाना ही होगा।“ सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को संसद में प्रस्ताव के तहत पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की जमीन भी वापस लेनी चाहिए। उन्होंने आगे कहा है कि अनुच्छेद-370 के मुताबिक, राष्ट्रपति के पब्लिक नोटिस से इसे हटाया जा सकता है और उसी का प्रस्ताव रखा गया है, इसे संसद की मंजूरी की भी जरूरत नहीं है। साथ ही सुब्रमण्यम स्वामी ने यह भी कहा कि नेहरू की ओर से UNSC में दाखिल याचिका को भी वापस लेना चाहिए। जब तक अनुच्छेद-370 लागू था तब तक इसका गलत फायदा उठाया जा रहा था।
सुब्रमण्यम स्वामी का यह बयान अपने आप में नेहरू की गलती को सुधारने के अवसर के तौर पर देखा जाना चाहिए। आज़ादी के बाद मोहम्मद अली जिन्ना ने परिस्थिति का लाभ उठाते हुए 22 अक्टूबर 1947 को कबाइली लुटेरों के भेष में पाकिस्तानी सेना को कश्मीर में भेजा था। पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर के पश्चिमी क्षेत्र पर कब्जा जमा लिया। कश्मीर रियासत के महाराजा हरी सिंह ने देर से निर्णय लेते हुए भारत से मदद मांगी। उनकी इस देरी के कारण पाकिस्तान ने गिलगिट और बाल्टिस्तान क्षेत्र में लगभग आधे कश्मीर पर कब्जा कर लिया। विलय पत्र पर हस्ताक्षर होने के बाद भारतीय सेना को तुरंत कश्मीर भेजा गया था। उस समय भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे। कश्मीर क्षेत्र को पुनः अधिकार में लेकर भारतीय सेना आगे बढ़ रही थी तभी नेहरू ने माउंटबेटन की सलाह पर 1 दिसंबर, 1948 को संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के खिलाफ शिकायत की, इसके बाद कश्मीर एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बन गया। सरदार वल्लभ भाई पटेल व्यक्तिगत रूप से इससे सहमत नहीं थे। उनका मानना था कि राष्ट्र संघ मामले को लंबा खींचेगा।
हालांकि इस मामले को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की जरूरत ही नहीं थी क्योंकि महाराजा हरी सिंह ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए कश्मीर के पूरे क्षेत्र को भारत में विलय कर लिया था। इस बात का सबूत उनके माउंटबेटेन को लिखे पत्र से मिलता है।
यह नेहरू की सबसे बड़ी भूल थी। इसी भूल की वजह से आज तक कश्मीर समस्या का कोई हल नहीं निकल सका है। वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र ने भारत और पाकिस्तान को कश्मीर से अपनी सेना वापस बुला कर सीजफायर लागू करने का प्रस्ताव पास किया। नेहरू ने इसे मानते हुए 1 जनवरी, 1949 को सीजफायर लागू कर दिया। लेकिन पाकिस्तान ने अपनी सेना वापस नहीं बुलाई। उस वक्त तक भारतीय सेना ने पश्चिम में पुंछ, उत्तर में कारगिल और द्रास से कबायलियों को खदेड़ दिया था लेकिन इसके आगे का हिस्सा अब भी पाकिस्तान के कब्जे में ही था। इसके फलस्वरूप आज तक एक-तिहाई कश्मीर पाकिस्तानी के अधिकार में है।
नेहरू के संयुक्त राष्ट्र में चले जाने के कारण ही पाकिस्तान समय-समय पर कश्मीर में हमला करता रहा है और फिर अंतराष्ट्रीय नियमों की दुहाई देकर भारत के साथ समझौता करता रहा है। वर्ष 1965, 1971 और 1999 में भी यही हुआ और इस तरह से ही शिमला समझौता और लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर हुए लेकिन फिर भी भारत को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर नहीं मिला। यह नेहरू के यूएन जाने और फिर अनुच्छेद 370 लागू करने के कदम का ही नतीजा था कि पाकिस्तान के जनरल जिया-उल-हक ने 1988 में भारत के विरुद्ध ‘ऑपरेशन टोपाक’ नाम से ‘वॉर विद लो इंटेंसिटी’ की योजना बनाई। इसी योजना के तहत पाकिस्तान ने कश्मीर में अलगाववाद को बढ़ावा दे कर इसे कश्मीरी पंडितो के रक्त से लाल कर दिया।
पहले के समय में जो भी युद्ध हुए थे उस समय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि इतनी मजबूत नहीं थी कि वह अन्य देशों पर दबाव बना सके और अपनी बात मनवा सके। इसी बात का फायदा पाकिस्तान उठाता रहा है।
अब भारत विश्व का सबसे तेजी से विकास करने वाला देश है और वहीं पाकिस्तान दिवालियापन के कगार पर खड़ा है। भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंध भी अब सभी प्रमुख देशों से मजबूत स्थिति में है। लेकिन फिर से पाकिस्तान भारत के अपने राज्य जम्मू-कश्मीर से स्पेशल स्टेटस हटाने को नेहरू के उस याचिका से जोड़ कर देख रहा है तथा अमेरिका व अन्य देशों से मध्यस्था की भीख मांग रहा है। यही सही समय है भारत नेहरू द्वारा की गयी संयुक्त राष्ट्र में शिकायत को वापस ले जिससे इस मामले में दूसरे देश के हस्तक्षेप की संभावना ही समाप्त हो जाए। इससे कश्मीर मामले का अंतराष्ट्रीयकरण ही समाप्त हो जाएगा और फिर भारत अपनी शक्ति से पाक अधिकृत कश्मीर को वापस ले सकेगा। राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने इसी बात का अपने भाषण में उल्लेख किया और कहा कि मोदी सरकार को अब कश्मीर के उस हिस्से को भी अपनाने के लिए भारत को यूएन से जवाहरलाल नेहरू द्वारा दायर याचिका को वपास ले लेना चाहिए। मोदी सरकार अगर यह कदम उठाती है तो नेहरू द्वारा की गयी गलतियों में एक और सुधार होगा।