कुछ दिन पहले सक्रिय राजनीति को अलविदा कहने वाली सुषमा स्वराज ने कल रात यानी मंगलवार को दुनिया को ही अलविदा कह दिया। दिल्ली के एम्स अस्पताल में उनके देहांत की खबर जैसे ही मीडिया के जरिए लोगों को पता चली देश में शोक की लहर दौड़ पड़ी। देश की एक शानदार नेता का यूं ही चले जाना बेहद दुःखद रहा। देर रात उन्हें श्रद्धाजंलि देने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने उनके निधन की खबर पर गहरी संवेदना व्यक्त की। आईये जानते हैं एक कुशल वक्ता, सफल नेता व पूरी दुनिया में हिंदी भाषा का अलख जगाने वाली सुषमा स्वराज के जीवन के बारे में:
प्रारंभिक जीवन
14 फरवरी 1952 को हरियाणा के अम्बाला शहर में सुषमा स्वराज का जन्म हुआ था। उनके पिता हरदेव शर्मा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य थे। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई अम्बाला से ही की। उन्होंने संस्कृत तथा राजनीति विज्ञान विषय को चुना और अम्बाला से ही स्नातक किया। 1970 में उन्हें कॉलेज की सर्वश्रेष्ठ छात्रा का सम्मान भी मिला। एनसीसी की सबसे बेहतरीन कैडेड होने के साथ साथ वो एक बेहतरीन वक्ता भी थीं। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ से विधि की शिक्षा प्राप्त की। पंजाब विश्वविद्यालय से भी उन्हें 1973 में सर्वोच्च वक्ता का सम्मान मिला था।
राजनीतिक करियर
चंडीगढ़ कोर्ट में वकालत करने के साथ-साथ उन्होंने अपना जीवन साथी भी चुन लिया और 13 जुलाई 1975 को स्वराज कौशल के साथ परिणय सूत्र में बंध गयी। यहां से वह सुषमा शर्मा से सुषमा स्वराज बन गयीं। जिस वर्ष दोनों ने शादी की उसी वर्ष देश में इंदिरा गांधी की सरकार ने इमरजेंसी लगा दी। पूरे देश में सब कुछ मानो थम सा गया हो। सुषमा स्वराज ने वकालत छोड़ तत्कालीन सरकार के इस कदम का पुरजोर विरोध किया था। उस समय सुषमा स्वराज ने जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा भी लिया था। आपातकाल खत्म होने के बाद वह जनता पार्टी की सदस्य बन गयी। इसके बाद वर्ष 1977 में हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुआ और सुषमा स्वराज पहली बार अम्बाला छावनी विधानसभा क्षेत्र की विधायक बनीं।
सुषमा स्वराज शुरू से ही तेज तर्रार थीं। इसी कारण पहली बार विधायक चुने जाने पर ही राज्य के चौधरी देवी लाल की सरकार ने उन्हें श्रम मंत्री बना दिया। और इस तरह वह महज 25 वर्ष की उम्र में ही हरियाणा सरकार में वो मंत्री बन गईं। सबसे कम उम्र में मंत्री बनने का यह उस समय का रिकॉर्ड था। इसके बाद वह हरियाणा की प्रदेश अध्यक्ष बनी। उन्होंने इस दौरान 1977 से 1979 तक सामाजिक कल्याण, श्रम और रोजगार जैसे आठ पद संभाले। जब 80 के दशक में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ तो वो भाजपा में शामिल हो गयीं। वर्ष 1987 में सुषमा स्वराज अंबाला से दोबारा विधायक चुनी गयीं। इस बार वे 1987 से 1990 तक सिविल आपूर्ति, खाद्य और शिक्षा के पद संभालते हुए कैबिनेट मंत्री रहीं।
वर्ष 1990 में उन्होंने प्रदेश की विधानसभा से खुद अलग कर राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखा। 1990 में सुषमा स्वराज राज्य सभा की सदस्य बनीं और 6 वर्ष का कार्यकाल पूरा करने के बाद 1996 में दक्षिण दिल्ली से लोकसभा चुनाव जीतकर 11वीं लोकसभा की सदस्य बनीं। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में उन्होंने 13 दिनों के लिए सूचना प्रसारण मंत्री का कार्यभार संभाला था। इस दौरान उन्होंने लोकसभा में चल रही डिबेट के लाइव प्रसारण का एक क्रांतिकारी कदम उठाया था। सरकार गिरने के साथ ही उनका पद भी चला गया। उन्होंने राजनीति के लिए दिल्ली को चुना और 1998 में दिल्ली के विधानसभा चुनाव में पार्टी को विजय दिलाई और प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी। हालांकि, गठबंधन की सरकार होने के कारण वह ज्यादा दिन तक प्रदेश की सत्ता को नही संभाल सकी। 1998 में दक्षिण दिल्ली संसदीय सीट से 12वीं लोकसभा की सदस्या के रूप में फिर से निर्वाचित हुई थीं परन्तु लोकसभा सीट को बरकरार रखने के लिए उन्होंने विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था।
इस दौरान उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार ने सूचना प्रसारण मंत्रालय के साथ ही दूरसंचार मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा था। 19 मार्च से 12 अक्टूबर 1998 तक वो इस पद पर बनी रहीं। सुषमा स्वराज के इस कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि थी भारतीय फ़िल्म को एक उद्योग के रूप में घोषित करना। और इस फैसले के साथ ही इंडियन फिल्म इंडस्ट्री को बैंकों से कर्ज लेना आसान हो गया। इसके बाद उन्होंने अक्टूबर 1998 में केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया और दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। वो इस पद पर 13 अक्टूबर से 3 दिसंबर 1998 तक बनी रहीं।
अप्रैल 2000 में सुषमा स्वराज पुनः राज्यसभा सांसद बनी। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उन्हें फिर से केंद्रीय सूचना प्रसारण का कार्यभार सौंपा गया। 30 सितंबर 2000 से 29 जनवरी 2003 तक वो सूचना एवं प्रसारण मंत्री के पद पर बनी रहीं। उनकी लोकप्रियता इस दौरान काफी बढ़ गयी और इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था कि वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में वो प्रधानमंत्री की दावेदार मानी जा रहीं थीं। हालांकि, भाजपा उस वर्ष लोकसभा चुनाव में हार गई थी।
वर्ष 2009 में वो 15वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाई गयीं थीं और 2014 तक वो इसी पद पर आसीन रहीं। सुषमा स्वराज विपक्ष की पहली महिला नेता बनी थीं जिन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के बाद यह पद ग्रहण किया था।
वर्ष 2014 में पूरे देश में मोदी लहर चली और भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ पहली बार सत्ता में आई। नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने। सुषमा स्वराज को केंद्रीय मंत्रिमंडल में बड़ी जिम्मेदारी दी गयी उन्हें विदेश मंत्री का कार्यभार सौंपा गया। ट्विटर और फेसबुक पर सक्रिय रहने वाली सुषमा स्वराज ने कभी भी अपने खिलाफ किसी को भी शिकायत का कोई मौका नहीं दिया। प्रखर और ओजस्वी वक्ता, प्रभावी पार्लियामेंटेरियन और कुशल प्रशासक मानी जाने वाली सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्री रहते हुए हर भारतीय नागरिक चाहे वो देश के बाहर हो या अंदर अगर उनसे मदद के लिए अनुरोध करता वो बिना समय गवाएं मदद के लिए तैयार रहती थीं।
पूर्व विदेश मंत्री साल 2014 में इराक के तिकरित में 46 भारतीय नर्सों को आतंकियों के चंगुल से छुड़ाकर सकुशल भारत वपस लाने में सफल हुई थीं। चाहे वो अफ़ग़ानिस्तान में अपहृत समाजसेवी जूडिथ डिसूजा हो, या पाकिस्तान में अवैध रूप से बनाए गए भारतीय नागरिक हामिद अंसारी, या फिर भारत से अगवा की गई उज्मा अहमद ही क्यों न हो, सभी को सुषमा स्वराज ने सकुशल वापस भारत लाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में भारत की ओर से कुलभूषण जाधव मामले में भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत के पीछे भी उनकी अहम भूमिका रही है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में बतौर विदेश मंत्री रहते हुए हिंदी में दिए अपने भाषणों के लिए भी वो चर्चा में रही हैं।
वर्ष 2018 के बाद उनकी तबियत लगातार खराब रहने लगी। बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण उन्होंने खुद को सक्रिय राजनीति से दूर कर लिया। हालांकि, फिर भी वो आम जनता के बीच लोकप्रिय बनी रहीं। सुषमा स्वराज के साथ सफल राजनीतिक करियर के साथ कई अन्य विशेषताएं भी जुड़ी हैं। वे किसी राष्ट्रीय राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता, भारतीय जनता पार्टी की पहली महिला मुख्यमंत्री, पहली केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री, महासचिव, प्रवक्ता और नेता प्रतिपक्ष रही हैं। वे भारतीय संसद की इकलौती महिला सांसद थीं जिन्हें असाधारण सांसद का पुरस्कार मिला है और वो भी दो बार। साथ ही वे भाजपा की एकमात्र ऐसी नेता भी थीं जिन्होंने उत्तर और दक्षिण भारत, दोनों से चुनाव लड़ा था। आज उनके निधन से पूरे देश में शोक की लहर है।