सुषमा स्वराज के 5 ऐतिहासिक भाषण जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता

सुषमा स्वराज भाषण

पूर्व विदेश मंत्री एवं वरिष्ठ भाजपा नेता सुषमा स्वराज के असामयिक निधन से भारत को एक अपूर्णिय क्षति पहुंची है। कल रात यानी मंगलवार को हृदयाघात पड़ने से सुषमा स्वराज का दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया। वे 67 वर्ष की थी। सुषमा स्वराज के निधन के साथ ही अटल बिहारी वाजपेयी के बाद एक और ओजस्वी नेता का अंत हो गया। सुषमा जितनी कुशल राजनीतिज्ञ थी, उतनी ही ओजस्वी वक्ता भी। इनके भाषणों का तो विपक्ष भी कायल रहा है। आइये एक दृष्टि डालते हैं सुषमा स्वराज के भाषण के 5 सर्वश्रेष्ठ उदाहरणों पर, जब उन्होंने सिद्ध किया कि उनकी बुद्धि और उनके भाषण का तोड़ नहीं –

हाँ, हम सांप्रदायिक हैं ! 

11 जून 1996, भारतीय राजनीति के इतिहास में आज भी इसे एक महत्वपूर्ण दिन के तौर पर गिना जाता है। उस दिन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार के विरुद्ध विपक्ष ने विश्वास मत का प्रस्ताव रखा था। तब सरकार के पक्ष में सुषमा स्वराज उतरी थीं और फिर उन्होने सदन में एक ऐसा भाषण दिया, जिससे न केवल उन्होंने अपने कुशल भाषण का प्रमाण दिया, बल्कि तत्कालीन राजनेताओं के स्यूडो सेक्यूलरिज़्म को भी उजागर किया।

सुषमा स्वराज के उस ऐतिहासिक भाषण के एक अंश के अनुसार, “ये सदन में क्या हो रहा है? उन्हें धर्मनिरपेक्ष और हमें सांप्रदायिक क्यों कहा जा रहा है? मेरे नेता [वाजपेयी जी] ने कहा था कि सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता की बहस राष्ट्रीय मंच पर होनी चाहिए। देश के संविधान में लिखी धर्मनिरपेक्षता की कल्पना क्या हमारे पुरखों ने की थी, और आज के नेताओं ने इसे किस रूप में ढाल दिया है, इस पर राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए!

सुषमा जी ने आगे कहा ‘हम सांप्रदायिक हैं? हाँ, हाँ, हम सांप्रदायिक हैं! हाँ हम सांप्रदायिक हैं, क्योंकि हम वंदे मातरम गाने की वकालत करते हैं! हाँ हम सांप्रदायिक हैं, क्योंकि हम राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान के लिए लड़ते हैं! हाँ हम सांप्रदायिक हैं, क्योंकि हम धारा 370 को हटाने की मांग करते हैं! हाँ अध्यक्ष जी हम सांप्रदायिक हैं, क्योंकि हम हिंदुस्तान में समान नागरिक संहिता बनाने की बात करते हैं! हम सांप्रदायिक हैं, क्योंकि हम कश्मीरी शरणार्थियों के दर्द को जुबान देने की बात करते हैं, और दिल्ली की सड़कों पर 3000 सिखों का कत्लेआम करने वाले ये कांग्रेसी सेक्यूलर हैं!”

निर्भया कांड पर उनका मार्मिक भाषण 

16 दिसंबर 2012 को हुए एक जघन्य अपराध ने पूरे देश को झकझोर दिया, जब चलती बस पर एक युवा फिज़ियोथेरेपिस्ट के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। इसके ठीक दो दिन बाद लोकसभा में जब इस विषय पर चर्चा शुरू की गयी, तो सुषमा स्वराज ने अपने मार्मिक भाषण से न केवल पीड़िता के दर्द को उकेरा, बल्कि ऐसे मामलों में मृत्यु दंड को हटाने की बात करने वालों को भी जमकर लताड़ा।

सुषमा जी के भाषण के अनुसार, ‘इस घटना के बाद पीड़ित युवती जिंदगी और मौत से लड़ रही थी। वो एक जीवित लाश बनकर अपना जीवन जीएगी, अगर बच गयी तो उसका क्या होगा? क्या ऐसा करने वाले लोगों को फांसी नहीं होनी चाहिए? अभी तक इस मामले में केवल 2 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, दिल्ली पुलिस आखिर क्या कर रही है? गृहमंत्री जवाब दें और इस घटना की भर्त्सना पूरे सदन द्वारा होनी चाहिए।

2016 में उनकी कूटनीति का बेजोड़ नमूना 

देश के समक्ष परीक्षा की एक घड़ी 2016 में भी आई, जब 18 सितंबर को सीमापार से 4 आतंकवादियों ने घुसपैठ कर भारतीय सेना के उरी बेस कैंप पर हमला बोला, जिसमें 18 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। पूरे देश में आक्रोश उमड़ पड़ा था, और ये बात केंद्र सरकार से बेहतर कोई नहीं जानता था। सरकार को ये भी पता था कि यदि इस हमले का मुंहतोड़ जवाब नहीं दिया गया, तो देश की जनता का मनोबल पूरी तरह से टूट जाएगा।

इसी संदर्भ में जब पाकिस्तानी पीएम नवाज़ शरीफ ने संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा में कश्मीर का राग अलापे थे तो जवाब देने के लिए सरकार ने सुषमा स्वराज को भेजा किया। इस दौरान उन्होंने पाक को पूरे विश्व के सामने जमकर लताड़ा था। उनके भाषण के एक अंश के अनुसार, “क्या हमनें कोई शर्त लगाई थी जब प्रधानमंत्री मोदी काबुल से लाहौर गए थे? किन शर्तों की बात हो रही है? सच्चाई तो यह है कि हमनें शर्तों के आधार पर नहीं, मित्रता के आधार पर सभी विवाद सुलझाने की पहल की थी। हमनें हर बार की तरह इस बार भी दोस्ती का हाथ बढ़ाया था, और दो वर्षों में हमने मित्रता का ऐसा पैमाना बनाया जो इससे पहले कभी नहीं था। हमने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को ईद की मुबारकबाद दी, उनकी क्रिकेट टीम को शुभकामनाएं दी, और प्रधानमंत्री के कुशल स्वास्थ्य पर भी जानकारी ली। क्या ये सब शर्तों के साथ आई थी? और हमें बदले में क्या मिला? पठानकोट, बहादुर अली (पाकिस्तानी आतंकवादी) और अब उरी हमला!”

हालांकि ये बात बहुत कम लोग ही जानते हैं कि ये भाषण महज संयोग नहीं था, बल्कि सर्जिकल स्ट्राइक से पहले भारत की सोची समझी रणनीति का एक अहम हिस्सा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत अपने कमजोर पक्ष को सुधारना चाहता था जो पूर्व के सरकारों की देन थी, और इसके लिए भारत ने जानबूझकर पाकिस्तान को अपने पुराने स्वभाव के अनुसार अपनी सामान्य प्रतिक्रिया में उलझाए रखा, जिसमें सुषमा स्वराज का यूएन में भाषण भी शामिल था। इस कूटनीति से पाकिस्तान को भ्रमित कर भारत ने ऐतिहासिक सर्जिकल स्ट्राइक्स के लिए पृष्ठभूमि भी तैयार की। इस कूटनीतिक सफलता की पुष्टि वरिष्ठ पत्रकार शिव अरूर ने राहुल सिंह के साथ लिखे गए किताब ‘इंडियाज़ मोस्ट फीयरलेस’ में भी की है।

कुलभूषण जाधव की सकुशल रिहाई के लिए जताई अपनी प्रतिबद्धता 

जब पूर्व नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव का पाकिस्तान में अवैध हिरासत की खबर सामने आई, तो यह सुषमा स्वराज ही थीं, जिन्होने उनकी फांसी की सज़ा को रोकने के लिए हरसंभव प्रयास किया। इसी संदर्भ में जब ये खबर सामने आई कि कुलभूषण से मुलाक़ात के दौरान पाकिस्तान ने उनके परिवार से दुर्व्यवहार किया था, तो सुषमा स्वराज ने इसका खुलेआम विरोध करते हुए संसद में अपने अभिभाषण में कहा –

“22 महीने बाद एक माँ की अपने बेटे से, और एक पत्नी की अपने पति से होने वाली भावभरी भेंट को भी पाकिस्तान ने  अपने प्रोपगैंडा के लिए इस्तेमाल किया। सभापति महोदय, कुलभूषण जाधव उनकी माँ और पत्नी के बीच मुलाक़ात को पाकिस्तान ने एक मानवीय कदम के तौर पर दिखाया था। लेकिन सच्चाई तो यह है कि मानवता और वात्सल्य दोनों ही इस मुलाक़ात से नदारद थे। इस मुलाकात में पाकिस्तान ने श्री जाधव के परिवार के साथ बुरा बर्ताव किया, और उनके इस मुलाक़ात में पाक ने भय का माहौल बनाया, इसकी जितनी निंदा की जाये, वो कम है”।

जब सुषमा जी ने पाकिस्तान को पूरी दुनिया के सामने टेररिस्तान कहा 

2017 में पाकिस्तान के असली चेहरे को उजागर करने में सुषमा स्वराज के संयुक्त राष्ट्र में दिए गए भाषण ने अहम भूमिका निभाई थी। पाकिस्तान की वास्तविक पहचान को सबके सामने बेनकाब करते हुए सुषमा स्वराज ने अपने भाषण में कहा, “ देखिये कौन बात कर रहा है! जो मुल्क, हैवानियत की सभी सीमाएं लांघकर बेगुनाहों को मौत के घाट उतारता है, वो यहाँ खड़ा होकर हमें इंसानियत का सबक सिखा रहा है। भारत को दुनिया भर में एक आईटी सुपरपावर के तौर पर जाना जाता है, और पाकिस्तान को एक दहशतगर्द मुल्क, एक आतंकी समर्थक देश के तौर पर देखा जाता है”। 

सुषमा स्वराज के असामयिक निधन से हमारे देश को एक गहरी क्षति पहुंची थी। इनके ओजस्वी भाषण एवं इनके कुशल प्रशासन की कमी हमेशा भारतीय राजनीति में खलेगी। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे और उनके परिवार को इस संकट से लड़ने का साहस दे।

Exit mobile version