कश्मीर हमेशा के लिए बदलने वाला है, ये फार्रूख अब्दुल्ला भी जानते हैं कि वो बैकफुट पर हैं

फार्रूख अब्दुल्ला कश्मीर

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पिछले महीने 27 तारीख को कश्मीर से जुड़ी एक बड़ी खबर आई थी कि केंद्र सरकार ने घाटी में बीएसएफ और सीआरपीएफ जवानों की 100 अतिरिक्त कंपनियों को कश्मीर में तैनाती के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। अब एक हफ्ते से भी कम समय में सरकार 28 हज़ार और सैनिकों को घाटी में तैनात कर रही है। अब यह अटकलें लगाई जा रही है कि सरकार द्वारा 15 अगस्त यानि स्वतन्त्रता दिवस के मौके पर अनुच्छेद 370 या 35 ए को लेकर कोई बड़ा फैसला लिया जा सकता है।  हालांकि, इसी के साथ ही अपने आप को कश्मीरियों का ठेकेदार समझने वाले उमर अब्दुल्ला और फार्रूख अब्दुल्ला जैसे तथाकथित कश्मीरी नेताओं की भी पैरों तले की ज़मीन खिसक चुकी है। इन्हें डर है कि अगर राज्य से अनुच्छेद 35ए या अनुच्छेद 370 हटाया जाता है, तो पहले से ही महत्वहीन हो चुके इन नेताओं का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा। इसी कड़ी में कल दिल्ली में उमर अब्दुल्ला और फार्रूख अब्दुल्ला ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाक़ात की।

इन नेताओं ने पीएम मोदी से मुलाकात के दौरान सरकार से जल्दबाज़ी में कोई कदम ना उठाने की गुजारिश की। इस मुलाकात के बाद उमर अब्दुल्ला ने कहा, ‘हमने पीएम मोदी से कहा है कि रियासत में कोई ऐसे कदम न उठाए जाएं, जिससे वहां की स्थिति खराब हो। हमने 35ए और 370 का भी मामला उठाया। साथ ही जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने की मांग की’। कुल मिलाकर अब इन नेताओं को पूरी तरह आभास हो चुका है कि पीएम मोदी के मजबूत नेतृत्व में सरकार कोई भी बड़ा कदम उठा सकती है, और मुफ़्ती और अब्दुल्ला परिवार के कथित विरोध का अब सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। यही कारण है कि जो फार्रूख अब्दुल्ला अनुच्छेद 35ए और 370 हटाने के खिलाफ केंद्र सरकार को धमकी दिया करते थे, आज वे खुद अनुच्छेद 35ए में बदलाव को अपनी स्वीकृति दे रहे हैं।

दरअसल, पीएम मोदी से मुलाक़ात के ठीक एक दिन पहले ही जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फार्रूख अब्दुल्ला ने बरखा दत्त को एक इंटरव्यू दिया था। इस इंटरव्यू में बरखा दत्त ने उनको कहा कि भाजपा को लगता है कि अनुच्छेद 35ए महिलाओं के साथ भेदभाव करता है और अगर कश्मीरी महिलाएं राज्य से बाहर शादी करती हैं, तो उनके बच्चों को कश्मीर में उनकी संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं मिलता है। इस पर फार्रूख अब्दुल्ला ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि वे इस कानून में बदलाव के लिए तैयार हैं, हालांकि यह सबकुछ राज्य विधानसभा के जरिये किया जाना चाहिए।

अब यहां सवाल यह उठता है कि आखिर क्या कारण है कि अब्दुल्ला परिवार आज अनुच्छेद 35ए के डाइल्यूशन को तैयार हुए हैं और दूसरा सवाल ये कि मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने विधानसभा के माध्यम से स्वयं कभी इस दिशा में कोई कदम क्यों नहीं उठाया? सच्चाई यह है कि मोदी सरकार के पास अब संसद में पहले से ज़्यादा बहुमत है, और इसके साथ ही अमित शाह के रूप में गृह मंत्रालय का नेतृत्व पहले से ज़्यादा मजबूत हुआ है। यही कारण है कि अब इन ठेकेदार नेताओं के सामने उनकी बढ़ती महत्वहीनता के रूप में बड़ी मुश्किलें खड़ी हो रही हैं और इन्हें अब अपने ऊपर अस्तित्व का खतरा मंडराता नजर आ रहा है। कल पीएम मोदी से मुलाक़ात के जरिये ये लोग दोबारा अपने आप को लाइमलाइट में लाना चाहते हैं।

ये नेता अब दोबारा इस मुद्दे को उठाकर सिर्फ सुर्खियां बटोरना चाहते हैं और अगर इन्हें इन विषय पर सरकार से कोई बातचीत ही करनी थी, तो वे सत्ता में रहने के दौरान भी कर सकते थे। आज जब ये नेता पूरी तरह शक्तिहीन और सत्ताहीन हो चुके हैं, तो अब ये अपने आप को कश्मीरियों का हितैषी होने का दिखावा कर रहे हैं। हालांकि, केंद्र सरकार उमर अब्दुल्ला जैसे नेताओं के दबाव में आने के मूड में बिलकुल नहीं है। सरकार द्वारा कश्मीर में अतिरिक्त 28000 जवानों की तैनाती होना यही दर्शाता है कि सरकार कोई बड़ा कदम उठाकर ही रहेगी, और इसके साथ ही ये भी स्पष्ट भी कर दिया है कि सरकार इन नेताओं का हित नहीं, बल्कि कश्मीरियों के हित को ज्यादा महत्व देगी।

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