ममता बनर्जी का ‘नर्म हिंदुत्व’ कार्ड ही बनेगा पश्चिम बंगाल में उनके पतन का कारण

ममता बनर्जी

PC: Jagran

वर्ष 2021 में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं और ममता बनर्जी राज्य में अपनी साख को बनाये रखने के लिए हर वो हथकंडा अपना रही हैं जिससे वो सत्ता में कायम रह सकें। लोकसभा चुनाव में मिले तगड़े झटके के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सलाह पर अपनी हिंदू विरोधी छवि को बदलने के लिए कमर कस चुकी हैं।

अब ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा समितियों के लिए 25-25 हजार रूपये देने की घोषणा की है। इसके साथ ही उन्होंने दुर्गा पूजा समितियों के लिए बिजली बिल में 25% की कटौती की घोषणा भी की है। सही सुना आप ने ममता बनर्जी ने ये घोषणा की है। ये वही ममता हैं जिन्होंने वर्ष 2016 में दुर्गा मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा दी थी।

चूंकि 2021 में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं तो अपनी रणनीतियों को और मजबूत करने के लिए ममता बनर्जी ने प्रशांत किशोर को चुनाव की रणनीतियां तैयार करने की पूरी जिम्मेदारी दे दी। प्रशांत अपना काम बड़ी ही सफाई से कर रहे हैं। चाहे वो टीएमसी सासंद और नवविवाहिता नुसरत जहां का लोकसभा में साड़ी, मंगलसूत्र और सिंदूर में शपथ लेना हो और जय हिंद बोलना हो। यही नहीं ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह पर हमले करने भी बंद कर दिए हैं। यही नहीं ममता सरकार ने ‘दीदी के बोलो’ अभियान के तहत एक हेल्पलाइन भी शुरू की ताकि लोग अपनी समस्याएं सीधे ममता बनर्जी तक पहुंचा सकें। यहां तक कि कल तक जो ममता बनर्जी आम जनता पर जय श्री राम के नारे लगाने से भड़क जाती थीं, आम जनता के बीच नहीं जाती थीं वो अब आम जनता से जाकर न केवल मुलाकात कर रही हैं बल्कि उनसे उनकी समस्याओं को भी पूछ रही हैं।

वैसे ममता बनर्जी राज्य के हिंदुओं को लुभाने का प्रयास पहले भी करती आई हैं लेकिन इस बार वो कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती हैं। जो ममता बनर्जी चुनावी सीजन से पहले अपनी पार्टी को खुलकर मुस्लिमों, अल्पसंख्यकों की पार्टी बताती थीं, और हिंदुओं के साथ सौतेला व्यवहार करती थीं। तारकेश्वर विकास बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में गैर हिंदू को बैठा चुकी हैं, अब चुनाव नजदीक आने के साथ साथ हिंदुओं को लुभाने का भरसक प्रयास कर रही हैं। और दुर्गा पूजा समितियों के लिए 25-25 हजार की घोषणा और बिजली बिल में कटौती करने की उनकी घोषणा भी इसी का हिस्सा है।

अब सवाल यह है कि ममता बनर्जी की अपनी छवि बदलने की यह रणनीति कितनी कारगार साबित होगी? अगर लोकसभा चुनावों में भाजपा के प्रदर्शन पर नजर डालें तो स्पष्ट है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा अपनी पकड़ को मजबूत कर रही है और इस पार्टी की लोकप्रियता भी राज्य में बढ़ी है। ऐसे में ममता को अपनी कुर्सी खोने का डर खाए जा रहा है। इसलिए ममता बनर्जी नर्म हिंदुत्व का कार्ड खेल रही हैं, ठीक वैसे ही जैसे कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने हिंदुओं को लुभाने के लिए मंदिरों के दर्शन कर रहे थे और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने गंगा में डूबकी लगाई थी। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस दोनों का नर्म हिंदुत्व का ढोंग किसी काम नहीं आया और दोनों को लोकसभा चुनावों में करारी हार मिली थी। अब इसी मार्ग पर ममता बनर्जी चल रही हैं लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि पश्चिम बंगाल में लम्बे समय से उपेक्षित रहे हिंदू ममता के ‘’नर्म हिंदुत्व के ढोंग में नहीं फंसने वाले हैं और हिंदुओं को लुभाने के चक्कर में ममता बनर्जी का मुस्लिम मतदाता आधार उनसे नाराज हो जायेगा। जो ममता कल तक मुस्लिम मतदाता आधार के तहत राज्य में सत्ता में बनी रहीं वो भी उनसे विमुख हो जायेगा। मतलब की ममता का पत्ता पश्चिम बंगाल से साफ़ होने वाला है ठीक वैसे ही जैसे लेफ्ट और कांग्रेस का हुआ था।

अगर पश्चिम बंगाल के चुनावी और सियासी समीकरण पर एक नजर डालें तो पाएंगे कि राज्य में हमेशा पूर्ण बहुमत वाली सरकार ही रही है। वर्ष 1977 से पहले तक कांग्रेस का वर्चस्व था जिसे तोड़कर लेफ्ट फ्रंट की सरकार ज्योति बसु के नेतृत्व में बनी और कांग्रेस का धीरे-धीरे पूरी तरह से सफाया हो गया। इसके बाद 2011 में ममता बनर्जी ने लेफ्ट को उखाड़ फेंका और धीरे-धीरे लेफ्ट भी लगभग पश्चिम बंगाल की राजनीति में दब गया। इन पार्टियों की हार की वजह राज्य में हिंसा और तुष्टिकरण की राजनीति और बेहाल कानून व्यवस्था रही। और ममता के राज में भी ये सब जारी रहा और इसके सबसे ज्यादा शिकार राज्य के हिंदू रहे। और अब जिस तरह से भाजपा राज्य में बढ़त बना रही है उससे स्पष्ट है कि 2021 के विधानसभा चुनावों में ममता का किला ढहने वाला है और भाजपा भारी मतों के साथ जीत दर्ज करने वाली है।

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