मोदी सरकार ने शुक्रवार को विभिन्न मंत्रालयों में 9 विशेषज्ञों को संयुक्त सचिव के पद पर लैटरल एंट्री के तहत नियुक्त किया। देश में ऐसा पहली बार हो रहा है कि किसी निजी क्षेत्र से नौ विशेषज्ञों को केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में संयुक्त सचिव के पदों पर तैनाती के लिए चुना गया है। आमतौर पर संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा आयोजित की जाने वाली सिविल सेवा परीक्षा, वन सेवा परीक्षा या अन्य केंद्रीय सेवाओं की परीक्षा में चयनित अधिकारियों को अनुभव होने बाद ऐसे नौकरशाही पद के लिए रखे जाते हैं।
इस नियुक्ति को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने मंजूरी दी थी। नौकरशाही के ढांचे में बदलाव और नई प्रतिभाओं को सामने लाने के लिए इस नियुक्ति को मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना के तौर पर देखा जा रहा है। निजी क्षेत्र से इन नौ लोगों को तीन साल या अगले आदेश तक, दोनों में जो भी पहले हो, के लिए नियुक्त किया गया है। इनकी नियुक्ति विभिन्न मंत्रालयों में सातवें वेतन आयोग के तहत की गई है। अधिसूचना में कहा गया है कि इनकी नियुक्ति पद ग्रहण करने के दिन से मान्य होगी।
कार्मिक मंत्रालय ने पिछले साल जून में ‘लैटरल एंट्री’ व्यवस्था के जरिए संयुक्त सचिव रैंक के पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए थे। इन पदों के लिए आवेदन करने की अंतिम तिथि 30 जुलाई 2018 थी। इससे संबंधित सरकारी विज्ञापन सामने आने के बाद कुल 6,077 लोगों ने आवेदन किए थे। सत्ता में आने के बाद से ही मोदी सरकार ने देश की नौकरशाही ढांचे को सुधारने की पूरी कोशिश की है। ‘लैटरल एंट्री’ की योजना निश्चित रूप से मोदी सरकार द्वारा उठाया गया एक क्रांतिकारी कदम है।
जहां तक भारतीय नौकरशाही का संबंध है, इस कदम को कई लोगों ने गेम चेंजर के रूप में देखा है। ‘लैटरल एंट्री’ की योजना से देश में स्थापित नौकरशाही को सुधारने में मदद मिलेगी। इस योजना के तहत 40 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों और अर्थशास्त्र, विमानन वाणिज्य व अन्य क्षेत्रों में 15 साल के अनुभव के साथ संयुक्त सचिव पद पर सरकार में शामिल होने के लिए पेशकश की जाती है। पीएम मोदी ने हमेशा नौकरशाही में सुधार और शासन में दक्षता के साथ-साथ नीति-निर्माण पर जोर दिया है। यह कदम दर्शाता है कि मोदी सरकार किस तरह से अपने वादों पर खरी उतर रही है। यह सच है कि IAS और अन्य सिविल सेवा कैडरों में कई परिश्रमी और सक्षम व्यक्ति शामिल होते हैं, लेकिन यह भी सच है कि यही नौकरशाही सुस्ती, अक्षमता और भ्रष्टाचार का भी शिकार रही है।
जहां मोदी सरकार ‘लैटरल एंट्री’ के जरिये प्रशासनिक सुधार को आगे बढ़ा रही है, कांग्रेस और इसी तरह के विरोधी विपक्षी दल इन कदमों का लगातार विरोध कर रहे हैं। कई नेता इसके आरक्षण मुक्त होने से विरोध कर रहे हैं। हालांकि, सवाल उठता है कि 40 साल से अधिक की उम्र में इस तरह के उच्च पद पर नियुक्तियां आरक्षण के लिए कैसे हानिकारक हो सकती हैं? यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि, यूपीएससी सिविल सेवाओं में होने मिलने वाले आरक्षण में मिलावट नहीं कि गयी है। यह दूर-दूर तक SC/ST आरक्षण से नहीं जुड़ा है। लेकिन फिर भी इसे अलोकतांत्रिक बता कर डर का माहौल पैदा करने की कोशिश की जा रही है। कांग्रेस ने बौद्धिक दिवालियापन का उदाहरण देते हुए घोषणा की है कि वह इस फैसले को अदालतों में चुनौती देगी।
पीएम मोदी की भारतीय नौकरशाही को पुनर्जीवित करने और फिर से एक नया रूप देने की योजना निश्चित रूप से पुरानी व्यवस्था में सुधार लाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। प्रधानमंत्री मोदी वर्ष 2020 से लैटरल एंट्री अधिकारियों के बड़े पैमाने पर भर्ती शुरू करने के इच्छुक हैं। इसके परिणामस्वरूप प्रशासन में भारी फेरबदल हो सकता है और तैयारी इन नियुक्तियों से शुरू हो चुकी है।प्रधानमंत्री मोदी 2020 से लेटरल एंट्री अधिकारियों के बड़े पैमाने पर सोर्सिंग की नई प्रणाली शुरू करने के इच्छुक हैं। इसके परिणामस्वरूप प्रशासन में भारी फेरबदल हो सकता है और तैयारी पहले ही शुरू हो गई है।