इस वर्ष अक्टूबर में कनाडा में चुनाव होने वाले हैं और कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो की स्थिति बेहद कमजोर दिखाई दे रही है। वर्ष 2015 में ट्रूडो की लिबरल पार्टी को लोगों ने अपना समर्थन दिया था और चुनावों में ये पार्टी 338 सीटों में से कुल 184 सीटों पर जीत हासिल करने में सफल हुई थी। आमतौर पर कनाडा को दुनियाभर में एक विकसित इकोनॉमी और व्यवस्थित देश के तौर पर ही जाना जाता था लेकिन ट्रूडो के शासन के पिछले चार सालों के दौरान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कनाडा की छवि को जो नुकसान पहुंचा है, वह शायद ही कभी कनाडा के इतिहास में हुआ हो। विदेश नीति इस बार के कनाडा के चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बनने वाला है, और कनाडा की ट्रूडो सरकार विदेश नीति के मामले में पूरी तरह फ्लॉप साबित हुई है। पिछले चार सालों के दौरान कनाडा पूरे विश्व में एक हंसी का पात्र बनकर रह चुका है और ट्रूडो ने हर मंच से कनाडा की छवि को नुकसान पहुंचाने का काम किया है। यही कारण है कि ट्रूडो की लिबरल पार्टी को इन चुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ सकता है।
पिछले चार सालों के दौरान कनाडा के चीन, भारत और सऊदी अरब जैसी बड़ी शक्तियों के साथ संबंधों में तनाव देखने को मिला है। इतना ही नहीं, व्यापार नीतियों में मतभेद के कारण कनाडा के अपने पड़ोसी देश अमेरिका के साथ भी रिश्ते कुछ खास नहीं रहे हैं। पिछले कुछ सालों में ट्रूडो की छवि एक ऐसे नेता के तौर पर स्थापित हो चुकी है जो अपनी वामपंथी नीतियों के कारण कनाडा के हितों की रक्षा करने में असफल रहे हैं। सभी बड़े देशों के साथ रिश्ते खराब करके कनाडा की अर्थव्यवस्था भी बेपटरी होने की कगार पर है। हालांकि, ट्रूडो के नेतृत्व वाली कनाडा सरकार का इस ओर ध्यान बिलकुल भी नहीं है।
कनाडा की मुख्य विपक्षी पार्टी ‘कंजरवेटिव पार्टी’ का ट्रूडो पर सबसे बड़ा आरोप यह है कि उन्होंने पिछले चार सालों के दौरान कनाडा की विदेश नीति को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है। हुवावे मामले पर कनाडा और चीन के रिश्ते पहले ही खराब हो चुके हैं। दरअसल, अमेरिका के कहने पर कनाडा ने चीन की हुवावे कंपनी के CFO को गिरफ्तार करने का फैसला लिया था जिसका चीन ने कड़ा विरोध किया था। उसके बाद से ही चीन के साथ कनाडा का तनाव बढ़ा हुआ है। इसके बाद कनाडा को चीन में मौजूद अपने राजदूत को भी बर्खास्त करना पड़ा था क्योंकि वह लगातार कनाडा के हितों के खिलाफ काम कर रहा था, लेकिन यह जरूरी कदम उठाने में भी ट्रूडो सरकार ने काफी आनाकानी की थी।
इसी तरह सऊदी अरब ने अपने आंतरिक मामलों में ‘हस्तक्षेप’ का आरोप लगाकर कनाडा के राजदूत को बर्खास्त करने और अपने राजदूत को भी वापस बुलाने की घोषणा की थी। साथ ही सऊदी अरब ने कनाडा के साथ व्यापारिक संबंधों पर भी रोक लगा दी थी। ऐसे ही ट्रूडो भारत के साथ भी अपने रिश्तों को खराब कर चुके हैं।
पिछले वर्ष फरवरी में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो आठ दिवसीय दौरे पर भारत आये थे। उस वक्त मीडिया ने इस बात को प्रकाशित किया था कि भारत में कनाडा के प्रधानमंत्री का गर्मजोशी के साथ स्वागत नहीं हुआ, और उनको भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरी तरह नकार दिया। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत अक्सर कनाडा सरकार पर खालिस्तानियों को पनाह देने और उन्हें भारत विरोधी बयान देने के लिए मंच प्रदान करने के आरोप लगाता रहा है। कनाडा के पीएम की भारत की यह यात्रा पूरी तरह विफल साबित हुई थी और इस यात्रा के तुरंत बाद भारत ने कनाडा से आयात होने वाले चनों पर इम्पोर्ट ड्यूटी को बढ़ा दिया था। इसके बाद कनाडा की विपक्षी पार्टियों ने भारत जैसी भावी आर्थिक महाशक्ति के साथ रिश्ते ख़राब करने के लिए ट्रूडो को अपने निशाने पर लिया था।
जस्टिन ट्रूडो को केवल उनकी विदेश नीति के लिए ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर उनकी नीतियों के लिए भी आलोचना का सामना करना पड़ा है। दरअसल, ट्रूडो पर धार्मिक उग्रवाद का पक्ष लेने का आरोप लगता रहा है। वो बार-बार धार्मिक अतिवाद के प्रचारकों पर कार्रवाई करने में विफल रहे हैं। जस्टिन खुद को कनाडाई राजनीति का नया चेहरा कहते हैं जो आतंकवाद के खिलाफ कोई कार्रवाई करने से हिचकिचाते हैं। ट्रूडो ने के एक बार कहा था– “ISIS से जो लोग कनाडा लौट रहे हैं उन्हें इस्लामिक आतंकवादी का टैग न दें। उन्हें ISIS सेनानियों के रूप में संबोधित किया जाना चाहिए’। दरअसल, जस्टिन ट्रूडो अपने तर्क से इस बात की ओर इशारा करना चाहते थे कि आईएसआईएस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक मान्यता प्राप्त राज्य है, कम से कम उसे कनाडाई राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त है और इसीलिए ISIS भर्तियों के साथ सैनिकों की तरह व्यवहार किया जाए न कि आतंकवादियों की तरह। ये कहने की जरूरत नहीं है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति उनके इस निराशाजनक दृष्टिकोण ने उन्हें कनाडा की राजनीति में नफरत फैलाने वाले के तौर पर चित्रित किया है।
अब कनाडा में चुनाव होने वाले हैं और कनाडा की विपक्षी पार्टी चुनावों में इसे बड़ा मुद्दा बना रही है। विपक्षी नेता एंड्रयू शीर आरोप लगा रहे हैं कि ट्रूडो कनाडा को विश्वपटल पर एक महत्वपूर्ण देश के तौर पर स्थापित करने के वादे के साथ सत्ता में आये थे, लेकिन ट्रूडो सरकार ने चीन और भारत जैसे देशों के साथ कनाडा के रिश्तों को ख़राब कर दिया है। कनाडाई पीएम की लिबरल पार्टी को इन चुनावों में हार मिलना तय माना जा रहा है और ऐसे में अब कनाडाई पीएम की नाकामियों को छुपाने के लिए जस्टिन ट्रूडो के साथी जेराल्ड बट्स अपना एजेंडा आगे बढ़ाने में लगे हैं। ट्रूडो के साथी लेखक जेराल्ड बट्स ने अपनी किताब में यह लिखा है कि कनाडाई पीएम की भारत की विफल यात्रा की दोषी भारतीय सरकार ही थी और उसमें कनाडा सरकार का कोई दोष नहीं था। खैर, कनाडा की जनता भी लिबरल पार्टियों की नीतियों से तंग आ चुकी है और इस बात की पूरी उम्मीद है कि वैश्विक स्तर पर दक्षिण पंथ की ओर झुकाव के दौर में कनाडा में भी हमें जल्द ही दक्षिणपंथी सरकार देखने को मिल सकती है और यह कनाडा के लिए भी अच्छा होगा।