देश की सबसे पुरानी पैरामिलिट्री फोर्स असम राइफल
अक्सर ही देखा जाता है कि भारत के दो मंत्रालय एक दूसरे से आपस में किसी मुद्दे को लेकर टकरा रहे होते हैं और आखिर में नुकसान देश को और उन मंत्रालयों से प्रभावित होने वाली जनता को उठाना पड़ता है। ठीक इसी तरह देश के प्रमुख मंत्रालय यानि रक्षा और गृह मंत्रालय में भी यही खींच तान देखने को मिल रही है। यह मामला है देश की सबसे पुरानी पैरामिलिट्री फोर्स असम राइफल को लेकर है।
एक तरह गृह मंत्रालय असम राइफल पर पूरी तरह से प्रशासनिक और ऑपरेशनल नियंत्रण कर लेना चाहता है तो दूसरी तरफ सेना और रक्षा मंत्रालय इसे अपने नियंत्रण में करना चाहता है। बता दें कि असम राइफल एक पैरामिलिट्री फोर्स यानि अर्धसैनिक बल है और गृह मंत्रालय के अंतर्गत आता है लेकिन म्यांमार बार्डर पर सेना के साथ कॉमबैट ऑपरेशन में समन्वय के लिए संचालन का नियंत्रण रक्षा मंत्रालय के पास रहता है। इसी वजह से असम राइफल के सैनिकों को इन दोनों मंत्रालयों के बीच कई परेशनियों का सामना करना पड़ता था। हालांकि असम राइफल्स 46 बटालियन और 65,000 सैनिक हैं और इसके 80 प्रतिशत अधिकारी सेना से मिलते हैं।
द ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट की माने तो गृह मंत्रालय असम राइफल को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में करना चाहता है और इसका विलय आईटीबीपी से कर देना चाहते है। प्रशासनिक अधिकारी लगातार इसके लिए लॉबी कर रहे है। हालांकि टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार सेना ने भी असम राइफल को अपने नियंत्रण में लेने के लिए एक प्रेजेंटेसन तैयार किया है जिसे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के सामने प्रस्तुत किया जाएगा। सेना गृह मंत्रालय के नियंत्रण और अपने परिचालन नियंत्रण खोने या इसके गृह मंत्रालय से विलय करने के खिलाफ है। इसके साथ ही भारतीय सेना देश के सीमावर्ती क्षेत्रों और बॉर्डर के प्रभावी प्रबंधन के लिए आईटीबीपी और बीएसएफ बटालियनों को भी अपने कंट्रोल में लेना का सुझाव देने की संभावना है। भारतीय सेना को लगता है कि चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा अभी भी सुरक्षा समस्याओं का सामना कर रही है क्योंकि आर्मी के संचालन नियंत्रण के बिना ही ITBP अपने अंतर्गत आने वाले कुछ क्षेत्रों का सुरक्षा करती है। गृह मंत्रालय वर्तमान में आईटीबीपी और बीएसएफ सहित छह केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को नियंत्रित करता है।
हालांकि यह खिंचतान अब पीएम नरेंद्र मोदी के पास पहुँच चुकी है। पीएम मोदी की अगुवाई वाली कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) को जल्द ही असम राइफल पर अंतिम निर्णय लेगा। इसमें प्रधानमंत्री के अलावा विदेश मंत्री, गृह मंत्री, वित्त मंत्री और रक्षा मंत्री शामिल होते है।
अब प्रधानमंत्री जो भी फैसले लेते है वह सर्वमान्य होगा लेकिन असम राइफल का गृह मंत्रालय को पूरी तरह से नियंत्रण देना अपने पैर पर कुल्हाड़ी जैसा होगा।
असम राइफल भारत की सबसे पुरानी अर्धसैनिक बल है और इसका ज़्यादातर कम भारतीय सेना के साथ ही पूर्वोतर के बार्डर पर होता है। यानि जब इसका संचालन गृह मंत्रालय के पास चला जाएगा तो सेना और गृह मंत्रालय के बीच ऑर्डर को लेकर समन्वय में कमी आएगी। असम राइफल ने सेना के साथ पूरी तरह से मिश्रित हो चुका है और ऐतिहासिक रूप से दोनों अपनी संस्कृति साझा करते हैं। दोनों से साथ मिलकर कई युद्ध लड़े हैं जैसे चीन के साथ 1962 के सीमा पर, श्रीलंका में आईपीकेएफ में, और पूर्वोतर राज्यों में तो प्रतिदिन साथ ही ऑपरेशन करते हैं।
अगर यह गृह मंत्रालय के पास असम राइफल के संचालन का नियंत्रण चला जाता है और वह इसे ITBP के साथ विलय कर देता है तो इससे भारतीय सेना को म्यांमार बार्डर को सुरक्षित रखने में और कॉमबैट ऑपरेशन चलाने में समन्यवय की कमी का सामना करना पड़ेगा। भारतीय प्रशासनिक अधिकारी इसका जानबूझकर लॉबी कर रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है कि असम राइफल का नियंत्रण आने से IPS रैंक के अधिकारियों को असम राइफल में उच्च रैंक मिल जाएगा जो अभी भारतीय सेना के लेफ़्टिनेट जनरल के पास होता है।
गौरतलब है कि अर्धसैनिकबलों के अधिकारियों का चयन CAPF से होता है लेकिन DG जैसे उच्च रैंक पर IPS अधिकारी को ही नियुक्त किया जाता है और CAPF से आए अधिकारी कभी भी वह रैंक हासिल नहीं कर पाते हैं।
अगर प्रधानमंत्री सेना की बात मान लेते हैं और पूरे बॉर्डर का नियंत्रण सेना को देने के साथ बीएसएफ़ और ITBP का भी नियंत्रण सेना के पास आ जाएगा। इससे न केवल बॉर्डर को सुरक्षित रखने में सेना को मदद मिलेगी बल्कि इन सभी के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत अजाने के बाद कामकाज में भी तेज़ी आएगी और सेना एक साथ सभी नियंत्रण रेखाओं पर नजर रख सकेगी। यह ठीक उससी तरह होगा जैसे राष्ट्रीय राइफल्स और सेना दोनों मिल कर कश्मीर में काउंटर इनसरजेंसी ऑपरेशन चलाते है और इसमें वे सफल भी रहे है।
असम राइफल, ITBP और BSF का नियंत्रण भारतीय सेना को देना ही देश के बॉर्डर की बेहतर सुरक्षा प्रबंधन के लिए एक निर्णायक कदम साबित होगा। प्रधानमंत्री को जल्द से जल्द देश हित में इस मामले पर कदम उठाने की आवश्यकता है।