रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में एक अहम प्रस्ताव को अपनी स्वीकृति दे दी है। जिसके तहत देश की सीमाओं के इतिहास को कलमबद्ध किया जाएगा। सूत्रों की मानें तो इस पर जल्द ही काम भी शुरू हो जाएगा। यह निर्णय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने ICHR यानि भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद, नेहरू मेमोरियल म्यूज़ियम, आर्काइव के डाइरेक्टरेट जनरल एवं गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के अहम अफसरों के साथ बैठक करने के बाद लिया है। एएनआई की रिपोर्ट्स के अनुसार- इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत भारत की सीमाओं के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला जाएगा। फिर चाहे वो सीमाओं का बनना बिगड़ना हो, सुरक्षाबलों की भूमिका हो, सीमाओं पर रहने वाले लोगों की आस्था हो, संस्कृति हो और सामाजिक एवं आर्थिक पहलू ही क्यों न हो इसे 2 वर्ष के भीतर पूरा करने की आशा जताई जा रही है।
It's proposed that it'll cover various aspects of borders including tracing its making, making&unmaking & shifting of borders, role of security forces,role of borderland people encompassing their ethnicity,culture&socio-economic aspects. It's expected to be completed within 2 yrs https://t.co/6PA2i8CPj0
— ANI (@ANI) September 18, 2019
इसके अलावा कहा जा रहा है कि भारतीय सीमाओं का इतिहास लिखने का प्रमुख उद्देश्य अधिकारियों और आम जनता को वास्तविक इतिहास से परिचित कराना है। इस परियोजना को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए राजनाथ सिंह ने संबन्धित अधिकारियों से चर्चा की और उनके विभिन्न सुझावों का भी स्वागत किया और अधिकारियों को इन परियोजनाओं को शीघ्र पूरा करने के लिए आवश्यक सहयोग पर विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा करने का निर्देश दिया। रक्षा मंत्रालय की सूत्रों की माने तो यह अपने आप में एक नायाब प्रोजेक्ट है, जो लोगों को अपनी राष्ट्रीय सीमा से न सिर्फ अवगत कराएगी, बल्कि सीमाओं पर रहने लोगों को भी उनकी संस्कृति और उनकी जिम्मेदारियों से अवगत कराएगी।
तो इस अहम बदलाव से हमें क्यों अवगत होना चाहिए? ऐसा इसलिए होना चाहिए क्योंकि ये बात सिर्फ हमारे और आपकी नहीं है, बल्कि यह अपने आप में एक ऐसा बदलाव है, जिसके काफी दूरगामी परिणाम आ सकते हैं। अपनी सीमाओं की तो बात ही छोड़िए, हम भारतीय अपने अधिकांश इतिहास से ही विमुख हो चुके हैं। हम उसी को इतिहास मान लेते हैं जो वर्षों से हमें कुछ वामपंथी लेखकों एवं विचारकों ने लिखकर थमा दिया है। अरबी और तुर्की आक्रमणों से पहले भारतवर्ष एक विशाल राष्ट्र था, जिसकी सीमाएं पश्चिम में पाकिस्तान से लेकर पूर्व में बांग्लादेश और उत्तर में काराकोरम की चोटियों से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक फैली हुई थी।
परंतु निरंतर आक्रमणों और शीर्ष नेतृत्व के गलत निर्णयों के कारण आज हमारे भारतवर्ष का क्षेत्रफल काफी सिमट गया है। स्थिति तो यह हो गयी है कि विभाजन के बाद भी अयोग्य नेतृत्व के कारण हमने कश्मीर का वो पश्चिमी क्षेत्र पाकिस्तान के हाथों जाने दिया, जिसमें गिल्गिट और बाल्टिस्तान भी शामिल है। आज इन क्षेत्रों की पहचान करने के लिए लाइन ऑफ कंट्रोल, यानि एलओसी को भारत और पाक की सीमाओं के बीच निर्मित किया गया है। परंतु इसके बाद भी पाकिस्तान आए दिन इन सीमाओं का निरंतर उल्लंघन करता है।
इसके अलावा चीन ने हमारे कश्मीर के उत्तरी पूर्व में स्थित अकसाई चिन क्षेत्र पर भी अपना कब्जा जमा लिया है, और आज भी चीन अरुणाचल प्रदेश को अपने देश का हिस्सा मानने का दावा ठोंकता रहता है। भले ही चीन 1967 में हमारी सेना से इन्हीं कारणों से बुरी तरह पिट चुका हो, पर आज भी अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम पर कब्जा करने लिए अवैध घुसपैठ को बढ़ावा देता रहता है। भारत और चीन की सीमाओं का रेखांकन करने के लिए एलएसी यानि लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल का निर्माण किया गया है। ऐसे में राजनाथ सिंह का यह निर्णय इस दिशा में एक व्यापक बदलाव है। अपनी सीमाओं के इतिहास का डॉक्यूमेंटेशन करना कोई हंसी मज़ाक का खेल नहीं है, विशेषकर जब कश्मीर से हाल ही में अनुच्छेद 370 के विवादित विशेषाधिकार हटाये जा चुके हों।
अब इस निर्णय से भारत को काफी महत्वपूर्ण लाभ मिलेगा । सबसे पहला लाभ तो यह कि जब इतिहास लिखा जाएगा, तो हर पहलू पर निष्पक्ष जांच होगी, उचित मानचित्र बनेंगे, और किसी भी तथ्य को दबाया नहीं जाएगा। इससे न सिर्फ हमारे देश की वास्तविक सीमाओं का पता चलेगा, बल्कि हमारी आम जनता भी हमारे देश के वास्तविक इतिहास से परिचित होगी। इसके अलावा इस निर्णय से जो सबसे बड़ा लाभ मिलेगा, वो ये कि वर्षों से भारत के विरुद्ध चलाये जा रहे जिस प्रोपगैंडा को हमारे वामपंथी बुद्धिजीवी इतिहास की संज्ञा देते हैं, उससे हमें न सिर्फ आजादी मिलेगी, बल्कि चीन और पाक के नापाक मंसूबों पर भी करारा झटका लगेगा। दूसरा लाभ तो यह होगा कि जब हमारा देश पाक के कब्ज़े में पड़े कश्मीर को छुड़ाने के लिए आवश्यक कदम उठाएगा, तो हमारी सीमाओं का यही इतिहास उन्हे इस अहम मिशन के लिए तैयार कराएगा।
अनुच्छेद 370 के विशेषाधिकार संबंधित प्रावधानों को जब से हटाया गया है, तभी से देशभर में पाक अधिकृत कश्मीर को भारत में पुनः मिलाने के लिए अभियान चलाया जा रहा है। स्वयं गृहमंत्री अमित शाह ने इस प्रस्ताव का अनुमोदन करते हुये लोक सभा में कहा है, ‘आक्रामक क्यों न हों हम पीओके पर? आप आक्रामक होने की बात कर रहे हो, हम जान दे सकते हैं उसके लिए!” कभी ‘कड़ी निंदा’ के लिए बदनाम राजनाथ सिंह जब से देश के रक्षा मंत्री बने हैं, मानो उनमें क्रांतिकारी बदलाव आ गया हो। अनुच्छेद 370 के हटाये जाने पर हमारा पड़ोसी देश जब अपनी गीदड़ भभकियों से हमें डराने का प्रयास कर रहा था। उसी वक्त रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सभी को चौंकाते हुये कहा था, “अभी तक हमारी न्यूक्लियर को लेकर पॉलिसी No First Use की रही है। लेकिन भविष्य में क्या होता है यह हालात पर निर्भर रहेगा”।
इसके बाद राजनाथ सिंह ने यह ट्वीट भी किया, “पोखरण वह क्षेत्र है जिसने भारत को परमाणु शक्ति बनाने के लिए अटलजी के दृढ़ संकल्प को देखा और अभी तक ‘नो फर्स्ट यूज’ के सिद्धांत के प्रति हम प्रतिबद्ध हैं।
भारत ने इस सिद्धांत का कड़ाई से पालन किया है। भविष्य में क्या होता है यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है”। अब भारतीय सीमाओं के इतिहास के डॉक्यूमेंटेशन के प्रस्ताव को स्वीकृति देकर राजनाथ सिंह ने सिद्ध कर दिया है कि भारतवर्ष के पुनरुत्थान के लिए वर्तमान सरकार कितनी प्रतिबद्ध है। इससे न सिर्फ हमारी आने वाली पीढ़ियाँ हमारे वास्तविक इतिहास से परिचित होंगी, बल्कि हमारे शत्रुओं का झूठ भी मिट जाएगा