बिहार में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव की घड़ी नजदीक आती जा रही है वैसे-वैसे राजनीतिक पार्टियों के बीच खिंच-तान बढ़ती जा रही है। पहले से ही कई मुद्दों जैसे ट्रिपल तलाक, अनुच्छेद 370 और हाल ही में एनआरसी पर एक दूसरे के आमने-सामने रही बीजेपी और जेडीयू के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। अब फिर से नया विवाद सामने आया है और यह विवाद है नीतीश कुमार का मुख्यमंत्री पद के लिए उम्मीदवारी का।
बीजेपी के वरिष्ठ नेता और एमएलसी संजय पासवान ने कहा है कि हमने 15 वर्षों तक बिहार के मुख्यमंत्री के पद के साथ नीतीश कुमार पर भरोसा किया, उन्हें भी हमें एक कार्यकाल के लिए मौका देना चाहिए।
Sanjay Paswan, Bharatiya Janata Party (BJP): We trusted Nitish Kumar with the post of Bihar Chief Minister for 15 years, he should give us the chance for one term. pic.twitter.com/uXEumd6w09
— ANI (@ANI) September 9, 2019
अपने आवास पर सोमवार को पत्रकारों से बात करते हुए डॉ. पासवान ने कहा कि ‘नीतीश कुमार के काम पर पूरा भरोसा है लेकिन बिहार में उन्हें शासन करते हुए 15 साल हो गए हैं, इस बार हमारे डिप्टी सीएम को पूरा मौका मिलना चाहिए। हम प्रमुख मुद्दों पर काम करेंगे और बिहार की जनता हमें जिताएगी।’ उन्होंने आगे कहा, “अब बिहार में नीतीश मॉडल की जगह मोदी मॉडल की जरूरत है। नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी को मौका दिया था, अब बीजेपी को भी मौका देना चाहिए। हमेशा बीजेपी डिप्टी ही क्यों रहे।”
संजय पासवान के इस बयान से यह तो स्पष्ट हो गया है कि बीजेपी अब जेडीयू को पहले कि तरह दोनों हाथों में लड्डू नहीं देने वाली है। नीतीश कुमार को अब समझ लेना चाहिए कि जिस दावे पर वह अभी तक एक छत्र राज करते आए हैं अब वह नहीं चलेगा। बीजेपी के वरिष्ठ नेता के तरफ से यह बयान नीतीश कुमार के लिए एक चेतावनी की तरह भी देखी जानी चाहिए और इसके माध्यम से भाजपा यह कहना चाह रही है कि आप खुद से ही मुख्यमंत्री की उम्मीदवारी छोड़ दें नहीं तो हमे और भी तरीके आते हैं।
बिहार में भाजपा शुरू से ही जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाती आई है। वर्ष 2005 में जब चुनाव होने वाले थे तब अरुण जेटली ने बीजेपी के शीर्ष नेताओं को मनाकर नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी दिलवाई थी। तब से लेकर आज तक एनडीए के नेता के रूप में चुने गए हैं। वर्ष 2013 में जब नरेंद्र मोदी को बीजेपी ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था तो सैद्धांतिक विरोध की बात कहते हुए नीतीश कुमार ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया था। इसके बाद नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के अगले ही दिन 17 मई, 2014 को पार्टी के खराब प्रदर्शन का हवाला देते हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद बिहार की राजनीति में अपने चीर प्रतिद्वंदी लालू प्रसाद के साथ गठबंधन किया। फिर जब लालू प्रसाद चारा घोटाला में फंसते नजर आए तो नीतीश अपनी कुर्सी बचाने के लिए चार साल बाद फिर से बीजेपी से नाता जोड़कर मुख्यमंत्री बने।
लेकिन अब बिहार की जनता नीतीश कुमार से ऊब चुकी है और यह उन्हें भी पता है। वर्ष 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू के वोट शेयर में 5.81% की गिरावट आयी थी। जेडीयू का वोट शेयर सिर्फ 16.8 फीसदी था और आरजेडी के साथ गठबंधन में 71 सीटें जीती थीं वहीं बीजेपी ने अपने दम पर 53 सीटें जीती थीं। 2015 में बिहार विधानसभा चुनावों में बीजेपी का वोट शेयर 24.4% के कुल वोट शेयर के साथ 7.9 4% बढ़ गया। ऐसे में यह स्पष्ट है कि जेडीयू अकेले चुनाव जीतने में अब सक्षम नहीं है। नीतीश कुमार सभी मोर्चे पर एक असफल मुख्यमंत्री साबित हुए हैं। चाहे वो इन्सेफेलाइटिस के लिए कदम उठाना हो, बाढ़ से त्रस्त जनता की मदद करना हो या फिर राज्य में विकास कार्य करना हो सभी मोर्चों पर नीतीश ने बिहार की जनता को निराश किया है।
वर्ष 2014 से ही बीजेपी बिहार में अपने जनाधार को मजबूत करने में जुट गयी थी और यही 2019 के आम चुनावों में भी देखने को मिला। इसी वजह से आज बीजेपी इस पर खुलकर बहस कर पा रही है। भाजपा कैडर में अब कई अच्छे नेता उभर चुके हैं और वह बिहार में नीतीश कुमार को चुनौती देने में सक्षम हैं। संजय पासवान का यह बयान शायद इसी ओर इशारा भी करता है जिसमें उन्होंने नीतीश कुमार के नेतृत्व पर सवाल खड़ा किया है। बिहार में भाजपा शुरू से ही जेडीयू की मांगों के आगे झुकती रही है लेकिन अब समय आ गया है कि वह नीतीश से सवाल पूछे और उन्हें कुर्सी खाली करने को कहे ताकि बीजेपी के किसी उभरते नेता जैसे नित्यानन्द राय और सुशील मोदी को मुख्यमंत्री पद दिया जा सके। बिहार की हालत को देखते हुए भी यही लग रहा है अब वहाँ एक नए ऊर्जावान नेता की जरूरत है जो वर्षों से विकास से दूर रही जनता और खास कर युवाओं को समृद्ध करने में उनकी मदद करें। नीतीश कुमार के लिए भी यही अच्छा रहेगा कि वे बिना हार का सामना किए स्वेच्छा से मुख्यमंत्री पद छोड़कर केंद्र की राजनीति में आ जाएं और एनडीए गठबंधन में सरकार के किसी मंत्री पद पर आसिन रहें।