वामपंथी इतिहासकार रोमिला थापर को प्रोफेसर एमेरिटस पद पर बने रहने के लिए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) प्रशासन ने सीवी जमा करने के लिए कहा है। सीवी जमा करने के लिए इसलिए कहा गया ताकि यह विचार किया जा सके कि वो जेएनयू में एमेरिटस प्रोफेसर के रूप में पढ़ाना जारी रखेंगी या नहीं। इसपर रोमिला थापर ने स्पष्ट कहा कि वो सीवी नहीं देना चाहती हैं। इसके साथ इस मामले को वामपंथी गैंग ने राजनीतिक रूप से प्रेरित बताया।
दरअसल, जेएनयू प्रशासन ने पत्र लिखकर वामपंथी इतिहासकार रोमिला थापर से उनका सीवी मांगा है, रोमिला थापर प्रफेसर एमेरिटस के तौर पर जेएनयू से 1993 से ही जुड़ी हुई हैं। परन्तु जानी मानी इतिहासकार रोमिला थापर ने कहा है कि वो अपना सीवी नहीं जमा करना चाहती है। उन्होंने इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में कहा, ‘यह स्टेटस जीवन भर के लिए दिया गया है। जेएनयू प्रशासन मुझसे सीवी मांगने के लिए बेसिक्स के खिलाफ जा रहा है।’ हालांकि, ये समझ से परे है कि रोमिला थापर ने ऐसा करने से क्यों मना किया?
वहीं राष्ट्रविरोधी नारों और गतिविधियों को लोकतंत्र पर हमला न मानने वाला लेफ्ट लिबरल गैंग अपनी ‘खास प्रोफेसर’ से मांगे गये सीवी न केवल बौखलाया हुआ है बल्कि इसे रोमिला थापर का अपमान बता रहा है। सागरिका घोष, राणा अयूब जैसे पत्रकारों ने इसे गंदी राजनीति का हिस्सा बताया।
JNU needs to see the CV of the professor of History who is the crown jewel of Indian history writing. The jealous revenge of the mediocrities! JNU asks historian Romila Thapar for her CV to evaluate if she can continue as professor emerita https://t.co/C0uiNRNi3p via @scroll_in
— Sagarika Ghose (@sagarikaghose) September 2, 2019
The pettiness of an insecure, vindictive regime. JNU wants to see Romila Thapar's CV https://t.co/g1ZeELj6hU
— Rana Ayyub (@RanaAyyub) September 1, 2019
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (जेएनयूटीए) ने इसे राजनीतिक रूप से प्रेरित बताया। जेएनयूटीए ने कहा कि यह एक ‘‘जानबूझकर किया गया प्रयास है और उन लोगों को बेइज्जत करना है जो वर्तमान प्रशासन के आलोचक हैं।’ वहीं, पूरा वामपंथी गैंग सोशल मीडिया पर ये राग अलाप रहा है कि जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी प्रशासन का ये इस तरह से बायोडाटा मांगना रोमिला थापर जैसी सम्मानित इतिहासकार का अपमान है जिनकी भूमिका भारत के शिक्षा के क्षेत्र में अहम रही।
हद तो तब हो गयी जब द प्रिंट की रिपोर्ट ने आम जनता को भ्रमित करने के लिए लिखा कि केवल रोमिला थापर को ही इस तरह का पत्र मिला है और अन्य प्रोफेसरों से को ऐसा कोई पत्र नहीं भेजा गया है।
Is JNU enforcing age ban on profs emeriti? Modi critic Thapar asked for details of work
ThePrint's special correspondent Kritika Sharma @S_kritika reports: https://t.co/ZP2ceoCQ7Z
— ThePrintIndia (@ThePrintIndia) September 1, 2019
So, JNU officially confirms @S_kritika's story! They have sent the letters only to those who have attained the age of 75 years. https://t.co/hZsy0imbS9
— Fareeha Iftikhar (@Iftikharfariha) September 1, 2019
JNU asking Romila Thapar to submit a cv to JNU to continue her Professor Emerita status is worse than an insult, it is a crime against the values & principles of education & respect for intellectual merit. Can JNU sink any lower? https://t.co/mb9widqiNu
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) September 1, 2019
इसके अलावा कई और ट्वीट ऐसे सामने आये जो लेफ्ट लिबरल समेत पत्रकारों और विपक्षी दलों की बौखलाहट को दर्शा रहा है।
#RomilaThapar’s stature is bigger than the honour, argues prof #PrabhatPatnaik, a former colleague of Thapar, after #JNU admin made a laughing stock of itself by seeking to review her #ProfessorEmeritus status https://t.co/0NRx7kPNez
— National Herald (@NH_India) September 2, 2019
https://twitter.com/ashoswai/status/1168063985184378883
😂🤣 I think her CV will span at least a 100 pages. https://t.co/D9CpfFymxm
— Shehla Rashid (@Shehla_Rashid) September 1, 2019
हालांकि, सोशल मीडिया पर कई यूजर्स नियमों के तहत जेएनयू प्रशासन द्वारा उठाये गये कदम इस कदम का समर्थन किया और इसे जानबूझकर राजनीति क रंग देने वालों को कड़ा जवाब दिया।
It's interesting to see Sickularists and libtards feel offended when JNU asked durbari historians #RomilaThapar to submit CV.
Same bunch of hypocrites were silent, in fact enjoyed & supported the anti-India protest in JNU. 😁😁 https://t.co/rARznhrGoQ
— Arvind Vishwakarma 🇮🇳(मोदी का परिवार) (@ArvindVishwak10) September 2, 2019
https://twitter.com/Iyervval/status/1168158439761051650?s=20
#RomilaThapar
What is the problem with the mindset of leftist liberals ?How can a university asking for a C.V. from a academician ever be a problem ? Asking for CV is not questioning or doubting someone's credentials, it's a due course for continued employment.
— Mayank Sengar (@Sengar_S_Mayank) September 2, 2019
Ummm….What's wrong in asking fresh CV for extending tenure?? It's the norm…Maybe the professor has added degrees/achievements ?? Why does #Congress make a status symbol issue out of every ordinary procedure?? It's their ingrained "we are privileged n elite" mentality at work.
— Rita Singh 🇮🇳 #ModiKaParivaar (@Rita_2110) September 1, 2019
अब ये एमेरिटस प्रोफेसर कौन होते हैं जिसपर इतना विवाद हो रहा है? जब विश्वविद्यालय अपने संस्थान के किसी रिटायर्ड प्रफेसर्स को मेंटर के तौर पर नियुक्त करता है तो उसे एमेरिटस प्रोफेसर कहा जाता है। यह एक तरह से मानक पद है जिसके लिए कोई मासिक वेतन नहीं दिया मिलता है लेकिन इन प्रोफेसरों को यूनिवर्सिटी में केबिन, स्टेशनरी एवं अन्य कुछ सुविधायें मिलती हैं। किसी भी रिसर्च में योगदान और डिपार्टमेंट को सही दिशा देने के लिए भी विश्वविद्यालय इनकी नियुक्ति करता है जिससे विद्यालय का भविष्य और बेहतर बन सके। इसके साथ ही किसी भी मीटिंग या अन्य बड़े कार्यक्रमों के लिए उन्हें डियरनेस अलाउंस (डीए) और ट्रैवलिंग अलाउंस (टीए) का भुगतान जरूर किया जाता है।
अब जेएनयू के अकैडमिक रूल्स ऐंड रेगुलेशंस के नियम संख्या 32 (G) के अनुसार कि एमेरिटस प्रोफेसर की 75 वर्ष की आयु पूर्ण होने के बाद उनकी नियुक्ति करने वाली अथॉरिटी एग्जिक्युटिव काउंसिल समीक्षा कर यह तय करेगी कि क्या वो एमेरिटस प्रोफेसर के तौर पर अपनी सेवा जारी रखेंगे या नहीं। और यह संबंधित प्रफेसर के स्वास्थ्य, इच्छा, उपलब्धता और यूनिवर्सिटी की जरूरतों के आधार पर तय किया जायेगा।“ ये नियम आगे कहता है, ‘एग्जिक्युटिव काउंसिल द्वारा गठित सब-कमेटी हर प्रोफेसर से बात करेगी। साथ यह कमेटी नया सीवी मंगाकर और समकक्षों की राय आदि से परीक्षण करेगी। इसके बाद कमेटी सिफारिशें काउंसिल को भेजेगी जो प्रफेसर के सेवा विस्तार पर फैसला लेगी।‘ इसी नियम के तहत विश्वविद्यालय प्रशासन ने रोमिला थापर से उनका सीवी माँगा था। केवल रोमिला ही नहीं बल्कि उन सभी से काउंसिल ने सीवी माँगा है जिनकी उम्र 75 साल से अधिक है। उनकी आगे इस पद पर बने रहने की इच्छा और उपलब्धता के आधार पर काउंसिल इसपर फैसला लेगी। जब रोमिला थापर से जेएनयू प्रशासन ने नियमों के तहत सीवी माँगा है तो इसपर वामपंथी मीडिया को क्या आपत्ति है ?
नियमों के तहत विश्विद्यालय द्वारा उठाया गये कदम में सहयोग करने की बजाय वामपंथी गैंग इसे जानबूझकर विवाद का रूप दे रहा है। यह एक आम प्रक्रिया है जिसे कुछ बड़े पत्रकार और नेता राजनीतिक रंग देने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। जो बेहद शर्मनाक है