पाकिस्तान का मानवाधिकार रिकॉर्ड किसी से नहीं छुपा है। अल्पसंख्यकों पर निरंतर अत्याचार और धर्म परिवर्तन के लिए ये देश काफी बदनाम रहा है। कहने को तो पाकिस्तान एक लोकतन्त्र है, परंतु यहाँ कोई पाकिस्तानी सेना के विरुद्ध बोलता है, तो परिणाम काफी घातक होते हैं, और ये बात पाकिस्तान की मानवाधिकार कार्यकर्ता गुलालाई इस्माइल से बेहतर कौन जान सकता है। सेना द्वारा यौन उत्पीड़न की घटनाओं को उजागर करने का बीड़ा उठाना इनके लिए काफी भारी पड़ा, और इन्हे देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।
गुलालाई इस्माइल को पाकिस्तानी औरतों पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठाने के लिए पाकिस्तानी सेना द्वारा देशद्रोह के आरोप का सामना करना पड़ा। इसके पश्चात इस्माइल करीब 6 महीने तक पाकिस्तान में छिपी रहीं और बाद में अपने दोस्तों और परिवारवालों की सहायता से वे श्रीलंका के रास्ते अमेरिका भागने में कामयाब रहीं, जहां उन्होंने राजनीतिक शरण ली। 32 वर्षीय कार्यकर्ता ने कहा, “पाकिस्तान को लगता है कि अमेरिकी विदेश विभाग मुझे अपने परिवार के साथ अमेरिका छोड़ने के लिए विवश करेगा। परंतु मैं अमेरिका में अपना संघर्ष जारी रखूंगी”।
गुलालाई इस्माइल ने महिलाओं के अधिकारों के लिए निरंतर आवाज़ उठाई, और उन्होंने पाकिस्तानी सेना द्वारा किए जा रहे अत्याचारों के विरुद्ध अपनी आवाज़ें उठाई थीं। पाकिस्तानी सेना का इतिहास इन घिनौनी करतूतों से भरा पड़ा है। 1947 में कश्मीर पर आक्रमण के दौरान महिलाओं पर किए गए अत्याचार हो, या फिर 1971 में ईस्ट पाकिस्तान [अब बांग्लादेश] के विद्रोही जनता को नियंत्रण में करने के लिए चलाया गया ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ हो, या फिर हाल ही में बलोच महिलाओं के विरुद्ध हो रहे अत्याचार हो, पाकिस्तानी सेना के अत्याचार अब दुनिया के सामने बेनकाब हो चुका है। अपने फेसबुक पोस्ट के माध्यम से गुलालाई इस्माइल इन मामलों को प्रकाश में ला रही थीं, जिसके कारण उन्हें दुर्भाग्यवश पाकिस्तान के कोपभाजन का शिकार होना पड़ा।
गुलालाई इस्माइल पर इमरान खान के नेतृत्व में पाकिस्तानी सरकार ने देशद्रोह का आरोप लगाया और उन्हें देश छोड़ने से रोका गया। नवम्बर 2018 में पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों ने इस्माइल को जेल में डालने हेतु सभी इंतेजाम कर लिए और आईएसआई के हुक्म पर उनका नाम एक्ज़िट कंट्रोल लिस्ट पर भी डाल दिया था। इस्माइल की याचिका पर हाई कोर्ट ने जब उनका नाम इस सूची से हटाया, तो उसी समय उन्होने गृह मंत्रालय को आईएसआई के दिशानिर्देश में इनका पासपोर्ट ज़ब्त कर लिया गया था।
इस्माइल ने यह भी दावा किया कि अल्पसंख्यक समुदायों के हजारों लोगों को आतंकवाद खत्म करने के नाम पर पाकिस्तान में मौत के घाट उतारा जा रहा है। उनके शब्दों में, ‘निर्दोष पश्तूनों को पाकिस्तान में आतंकवाद खत्म करने के नाम पर मारा जा रहा है। हजारों लोगों को पाकिस्तान आर्मी के इंटर्नमेंट सेंटर्स और यातना केन्द्रों में बंद किया गया है।‘ चीनी लोगों को बसाने के इरादे से बलोच लोगों के गांवों को जलाने के पाकिस्तानी इरादे किसी से नहीं छुपे हैं।
आज भी बलोचिस्तान प्रांत के निवासियों को पाकिस्तान के अत्याचारों का सामना करना पड़ता है। यहाँ के महिलाओं और बच्चों को पाकिस्तानी सेना अगवा कर लेती है और पिछले पाँच वर्षों में इस क्षेत्र से रहस्यमयी तरीके से 20000 से भी ज़्यादा लोग गायब हो चुके हैं। बलोचिस्तान के 57 प्रतिशत से भी ज़्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करते हैं। यहाँ की साक्षारता दर भी काफी कम है, क्योंकि 100 में से लगभग 63 बच्चे स्कूल नहीं जा पाते। पाकिस्तान में अल्पसंख्यक होना एक अभिशाप तो है ही, और यदि आप एक महिला हो, तो स्थिति आपके लिए और दयनीय हो जाती है। महिलाओं को दिन दहाड़े अगवा कर लिया जाता है और उन्हे ज़बरदस्ती इस्लाम में परिवर्तित कर सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को बेच दिया जाता है।
पाकिस्तान के मानवाधिकार संगठन ने दावा किया है कि हर वर्ष 1000 से ज़्यादा युवा हिन्दू और ईसाई लड़कियों का अपहरण कर उनका जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाता है, क्योंकि पाकिस्तानी प्रशासन की कृपा से मियां मिठू जैसे कट्टरपंथियों को ऐसे कुकृत्य करने की खुली छूट मिली है। ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा है, “धार्मिक अल्पसंख्यकों के विरुद्ध किए जा रहे ईश निंदा हिंसा को सरकारी निष्क्रियता के कारण खुली छूट मिली है।
इस्माइल की दुर्दशा पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की दुर्दशा को उजागर करती है क्योंकि विभाजन के समय 23% से पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की कुल आबादी का लगभग 3% ही बची है। एक ओर इमरान खान भारत के विरुद्ध कश्मीर पर घड़ियाली आँसू बहा रहे हैं, तो वहीं उनके देश की सेना स्वयं देश के अल्पसंख्यकों का जीना मुहाल कर दी है।