बिना एक गोली चलाये कैसे भारत मलेशिया को घुटने टेकने पर विवश कर सकता है

भारत

कश्मीर मुद्दे पर अपना एजेंडा चला रहे पाकिस्तान को यूं तो पूरी दुनिया से फटकार ही मिली है, लेकिन दो इस्लामिक देशों ने इस मुद्दे पर यूएन में खुलकर पाकिस्तान का साथ दिया है। उन देशों का नाम है तुर्की और मलेशिया। इसी महीने 24 तारीख को तुर्की के राष्ट्रपति ने यूएन में कश्मीर का मुद्दा उठाया था और पाकिस्तान के एजेंडे का साथ दिया था। वहीं बीते शुक्रवार को यानि 27 सितंबर को मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने भी यूएन में कश्मीर का मुद्दा उठाया। इतना ही नहीं, एक कदम आगे बढ़ते हुए उन्होंने भारत को कश्मीर पर आक्रमण करने वाला देश तक बता डाला। लगता है वो ये समझने में विफल रहे हैं कि कश्मीर पर पाकिस्तान की भाषा बोलना ना केवल बेतुका है, बल्कि यह मलेशिया की अर्थव्यवस्था के लिए भी घातक साबित हो सकता है। आज की स्थितियों के अनुसार भारत केवल अपनी आर्थिक नीतियों में थोड़ा-बहुत बदलाव करके मलेशिया की अर्थव्यवस्था की जड़ों को हिला सकता है। ऐसे में मलेशिया का यह पाक-प्रेम मलेशिया की अर्थव्यवस्था के बुरे दिन लेकर आ सकता है।

दरअसल, मलेशियाई प्रधानमंत्री ने शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने संबोधन में कहा कि जम्मू-कश्मीर में भारत की कार्रवाई कई कारण हो सकते हैं लेकिन इसके बावजूद यह गलत है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के बावजूद जम्मू-कश्मीर पर आक्रमण और कब्जा किया गया। उन्होंने कहा, ‘संयुक्त राष्ट्र की अनदेखी से अन्य द्वारा संयुक्त राष्ट्र और कानून के शासन की अवहेलना के मामले सामने आएंगे।’ बता दें कि कश्मीर से विशेषाधिकर से जुड़े आर्टिकल को हटाने और राज्य को दो हिस्सों में बांटने वाले फैसले को लेने के बाद रूस में पीएम मोदी और मलेशिया के पीएम की मुलाक़ात हुई थी। इस दौरान पीएम मोदी ने उन्हें बताया था कि उन्होंने कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रावधान हटाने का फैसला क्यों लिया, इसके बाद भी मलेशिया ने यूएन में कश्मीर का मुद्दा उठाना ही सही समझा, जिसे भारत अपना आंतरिक मामला बताता रहा है। ऐसे में भारत मलेशिया को कूटनीतिक जवाब के साथ-साथ अपनी आर्थिक नीतियों से मुंहतोड़ जवाब दे सकता है।

उदाहरण के तौर पर टूरिज्म मलेशिया की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद जरूरी क्षेत्र है। मलेशिया में टूरिज्म का सिर्फ आर्थिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक महत्व भी है। काफी हद तक हिन्दू धर्म से प्रेरित मलेशिया की संस्कृति विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र होती है, और इसकी वजह से ही हर साल लाखों की संख्या में लोग भारत से मलेशिया घूमने जाते हैं। बता दें कि मलेशिया को 2019 में भारत से कुल 6.83 लाख पर्यटकों के आने की उम्मीद है, जबकि वर्ष 2018 की जनवरी-सितंबर अवधि में 4 लाख 37 हज़ार घरेलू पर्यटकों ने मलेशिया की यात्रा की थी। मलेशिया पर्यटन पैकेज विकास विभाग के निदेशक तुआन सैयद याहया सैयद ऑटमन के मुताबिक “मलेशियाई बाजार के लिए भारत सबसे प्रमुख 10 स्रोत केंद्रों में से एक है”। ऐसे में अगर हर साल लाखों की संख्या में मलेशिया जाने वाले पर्यटक अपना मलेशिया जाने का प्लान कैंसिल कर दें, तो मलेशिया की अर्थव्यवस्था को झटका देने के लिए सिर्फ ये कदम ही काफी होगा।

इसके अलावा दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार लगभग 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, और पिछले कुछ सालों में मलेशिया की ओर से निर्यात लगातार बढ़ा है। बता दें कि भारत ने मनमोहन सरकार के समय से ही मलेशिया के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (एफटीए) भी किया हुआ है। वर्ष 2011 से ही भारत द्वारा मशीनरी और टेक्साइल्स से लेकर लोहा और स्टील जैसे 1200 उत्पादों पर सीमा शुल्क या तो पूरी तरह हटाया जा चुका है या फिर उसकी दरों में बड़ी कमी की गयी है। बता दें कि भारत अभी मलेशिया से पेट्रोलियम, टेक्सटाइल, इलेक्ट्रानिक्स और पाम ऑयल जैसे सामान को आयात करता है। अभी इसी महीने भारत ने मलेशिया से इम्पोर्ट  होने वाले पाम ऑयल पर इम्पोर्ट ड्यूटी को 5 प्रतिशत बढ़ा दिया था। अभी मलेशिया और इंडोनेशिया पाम ऑयल के सबसे बड़े निर्यातक हैं और माना जा रहा है कि भारत सरकार के इस बड़े कदम से इंडोनेशिया को सबसे ज़्यादा फायदा पहुंच सकता है।

यही नहीं मलेशिया में काम करने वाले भारतीय समुदाय के लोगों की संख्या भी काफी ज़्यादा है। मलेशिया की अर्थव्यवस्था में भारतीयों का योगदान इतना ज़्यादा है कि वर्ष 2011 में मलेशिया के मानव संसाधन मंत्री एस सुब्रह्मण्यम को कहना पड़ा था कि भारतीय कर्मचारियों के बिना मलेशिया में भारतीय रेस्त्रां चलाने में परेशानी आ रही है। एक समाचार एजेंसी से बात करते हुए उन्होंने कहा था, “भारतीय व्यापारियों और उद्योगों ने 90,000 विदेशी कर्मचारियों को मंगाने की बात कही थी। सरकार ने इस आधार पर 45,000 कर्मचारियों को मलेशिया आने की अनुमति दी है। इनमें से ज्यादातर भारत से होंगे।” अगर भारत अपने देश से मलेशिया जाने वाले लोगों को हतोत्साहित करता है, तो यह मलेशिया के लिए नई समस्याएं खड़ा कर सकता है।

मलेशिया में सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री और आईटी इंडस्ट्री के विकास में भी भारत का अहम योगदान रहा है। पिछले कुछ वर्षों में मलेशिया में भारतीय कंपनियों ने स्वास्थ्य, सॉफ्टवेयर और इंजीनियरिंग क्षेत्र में काफी निवेश किया है। भारत और मलेशिया ने रक्षा, आर्थिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को और प्रगाढ़ बनाने की दृष्टि से साइबर सुरक्षा, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और प्रशासन के क्षेत्र में सहयोग के तीन अहम करार भी किए हुए हैं। वहीं भारत की इरकॉन कंपनी ने मलेशिया में रेलवे के विकास में अपनी अहम भूमिका निभाई है। ऐसे में अगर भारतीय कंपनियां मलेशिया की कंपनियों को दिये जा रहे तकनीकी सहयोग को रोक देती है तो यह कदम मलेशिया की कंपनियों और उनमें काम करने वाले लाखों लोगों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं होगा।

केवल आर्थिक ही नहीं, भारत रक्षा, तकनीकी और शिक्षा क्षेत्र में भी बड़े स्तर पर मलेशिया का सहयोग कर रहा है। ऐसे में पाकिस्तान परस्ती में मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद को अपनी अर्थव्यवस्था को तबाह करने की दिशा में कदम उठाने से बचना चाहिए। पाकिस्तान के साथ मलेशिया के ना ही सांस्कृतिक संबंध हैं और ना ही आर्थिक! ऐसे में मलेशिया के लिए यही सबसे अच्छा रहेगा कि वह कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के एजेंडे का साथ देने की बजाय अपनी अर्थव्यवस्था की चिंता करे। भारत के साथ रहकर मलेशिया बहुत कुछ पा भी सकता है, तो भारत के खिलाफ होकर मलेशिया बहुत कुछ खो भी सकता है। मलेशिया ने अगर ये बात जल्द ही नहीं समझी तो भविष्य में उसे बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।

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