देश के जाने माने अर्थशास्त्री और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अभी हाल ही में कहा था कि मोदी सरकार द्वारा देश की इकॉनमी की तथाकथित मिसमैनेजमेंट के चलते ही देश की अर्थव्यवस्था में मंदी आई है। मनमोहन सिंह अगर बिकाऊ मीडिया में अपने पक्ष में खबर छपवाने की बजाय अपनी पुरानी करतूतों को याद करते, तो शायद उनके लिए बेहतर होता। देश की अर्थव्यवस्था में मंदी आई है और इसके लिए मोदी सरकार से बेशक सवाल पूछे जाने चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं कि एक ऐसा शख्स जिसके कार्यकाल में भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट 4.8 प्रतिशत तक गिर गई थी, वह मोदी सरकार को भाषण देना शुरू कर दे। अगर आपको पता ना हो तो बता दें कि वर्ष 2013 में जुलाई से सितंबर के दौरान भारत की जीडीपी सिर्फ 4.8 प्रतिशत की दर से बढ़ी थी, और उस वक्त यही जाने माने अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे।
आज की मीडिया आपके सामने एक ऐसी तस्वीर बनाने की कोशिश कर रही है मानो मनमोहन सिंह के समय देश की अर्थव्यवस्था बुलेट ट्रेन की रफ्तार से आगे बढ़ रही थी और मोदी सरकार के आते ही वह बुलेट ट्रेन ‘हर स्टेशन पर रुककर चलने वाली पैसेंजर गाड़ी’ में बदल गई। हालांकि, इसमें कोई दो राय नहीं है कि कांग्रेस ने अपने समय में ऐसी घटिया आर्थिक नीतियां बनाई थी जिसके कारण भारत का युवा कभी अपनी कार्यक्षमता को पहचान ही नहीं पाया।
उदाहरण के तौर पर कांग्रेस ने कभी देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने की दिशा में कोई बड़ा कदम नहीं उठाया। मनमोहन सिंह एक बड़े अर्थशास्त्री होने के बावजूद मनरेगा जैसी घटिया स्कीम का आईडिया लेकर आए थे। मनरेगा पर सरकार ने करोड़ों-अरबों रुपये पानी की तरह बहाये, लेकिन गरीब मजदूरों की जिंदगी पर इसका कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ सका। अब सोचिए अगर सरकार यही पैसा देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने पर लगाया जाता, तो देश का कितना आर्थिक विकास होता और लोगों के जीवनस्तर में भी बड़ा सुधार हो पाता, ठीक वैसा जैसा चीन में हुआ। चीन ने आने वाले 50 से 100 सालों के लिए अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिया खूब पैसा निवेश किया और आज उसके नतीजे सबके सामने हैं।
बैंकिंग सेक्टर किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी माना जाता है, लेकिन कांग्रेस ने इस सेक्टर के सामने एनपीए संकट को खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोडी। यूपीए की अध्यक्षा सोनिया गांधी पर तो सरकारी बैंकों को लूटने के आरोप लगाए जाते रहे हैं। कांग्रेस के समय में बड़े-बड़े सरकारी बैंकों से भारी-भरकम लोन लेकर सरकार के कुछ खास करीबी उद्योगपतियों को दे दिया जाता था और फिर बाद में ये बड़े उद्योगपति इस पैसे को वापस देने में आनाकानी करते थे। यह सब धड़ल्ले से चलता रहा और देश के बैंकों में एनपीए 10 लाख करोड़ तक बढ़ गए। जब तक भाजपा की सरकार सत्ता में आई, तब तक बैंकिंग सेक्टर को बहुत बड़ा नुकसान पहुँच चुका था और मोदी सरकार को विरासत में एक बदहाल अर्थव्यवस्था मिली थी।
ये बात भी किसी से छुपी नहीं है कि मनमोहन सिंह बहुत कमजोर प्रधानमंत्री थे और उनको सोनिया गांधी द्वारा निर्मित राष्ट्रीय सलाहकार परिषद द्वारा निर्देश दिये जाते थे। इसी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की सलाह पर बेहद घटिया से घटिया आर्थिक नीति बनाई जाती थी और एक विद्वान अर्थशास्त्री होने के बावजूद मनमोहन सिंह मौन होकर सब कुछ देखते रहते थे।
कांग्रेस के समय में भारत ने जो विकास की रफ्तार पकड़ी, उसका स्वभाव लंबे समय तक टिकने वाला नहीं था। सबसे बड़ी बात तो यह थी कांग्रेस ने देश के सभी बैंकों को खाली करने वाली नीति को बल दिया जिसने देश की अर्थव्यवस्था को आईसीयू में पहुंचा दिया था।
हालांकि, इसका यह मतलब नहीं है कि मोदी सरकार की कोई गलती नहीं है। इसमें देश के पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली को दोष देना गलत होगा क्योंकि सरकार की सभी नीतियों का प्रचार-प्रसार तो आखिर ‘ब्रांड मोदी’ के माध्यम से ही होता है। फ़िस्कल डेफ़िसिट को कम करने पर ज़रूरत से ज़्यादा फोकस और महंगाई कम करने से उत्पन्न कम ब्याज़ दर की स्थिति ने अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचाया है। नोटबंदी की वजह से देश में हो रही सभी आर्थिक गतिविधियों को गहरा नुकसान पहुंचा था। जाहिर तौर पर नोटबंदी ने देश की अर्थव्यवस्था को कुछ हद तक अस्थिर कर दिया था। मोदी सरकार ने नोटबंदी के माध्यम से एकदम सारा कैश मार्केट से बाहर निकाल दिया और उसके बाद धीरे-धीरे दोबारा मार्केट में पैसा डाला गया जिसकी वजह से देश में खपत कम हो गई।
इसके अलावा, मनमोहन सिंह द्वारा मोदी सरकार पर जीएसटी को गलत ढंग से लागू करके अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने के आरोप भी पूरी तरह आधारहीन हैं। जीएसटी एक बड़ी कर सुधार प्रणाली है और भारत जैसे बड़े देश में इस प्रणाली को लागू करने के बाद जाहिर है लोगों के सामने कुछ परेशानियों का पेश आना कोई बड़ी बात नहीं थी, लेकिन जिस तरह सरकार ने उन मुश्किलों को दूर करने के लिए युद्धस्तर पर एक्शन लिया, वह प्रशंसनीय है। जीएसटी काउंसिल का भी इसमें बहुत बड़ा योगदान रहा है और काफी हद तक लोग भी अब नई प्रणाली से बेहतर ढंग से जुडते नज़र आ रहे हैं।
पीएम मोदी से भी गलतियां हुई हैं और इसके लिए उनकी भी आलोचना की जानी चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम आज के दौर की आर्थिक मंदी के लिए 100 प्रतिशत मोदी सरकार को ही दोष दें। कांग्रेस ने अपने समय में कई ऐसी नीतियां बनाई जिसका खामियाजा आज भी भारत को भुगतना पड़ रहा है। इसलिए कांग्रेस और खासकर यूपीए कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह को इस पर मोदी सरकार की आलोचना करने का कोई अधिकार नहीं है।