अब मंदिरों के मामलों में राज्य सरकारों की नहीं चलेगी, हिंदू समुदाय ने की समान अधिकारों की मांग

मंदिर

(PC: IndiaFacts)

विश्व हिन्दू परिषद समेत कई हिन्दू संगठनों ने एक दिनी कॉन्फ्रेंस में हिंदुओं के लिए समान अधिकारों की मांग की है। हिंदुओं के समान अधिकारों हेतु संपन्न हुई राष्ट्रिय कॉन्फ्रेंस का वीएचपी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने उदघाटन किया था।

इस कॉन्फ्रेंस में संविधान में अनुच्छेद 28, 29 और 30 में संशोधन की मांग की गयी है, जो कथित रूप से अल्पसंख्यकों को अनावश्यक प्राथमिकता देने के लिए आलोचना के केंद्र में रही है। इस कार्यक्रम से जुड़ा वीडियो सोशल मीडिया चर्चा में भी रहा।

मूल रूप से इस इवेंट के संयोजकों ने संविधान के अनुच्छेद 12, 15, 19, 25 एवं 30 में संशोधन, और बहुसंख्यकों की रक्षा हेतु एक नए अनुच्छेद 12ए को जोड़ने की मांग की है। अब सवाल यह है कि परंतु ऐसी आवश्यकता क्यों आन पड़ी?

दरअसल, संविधान के कुछ अनुच्छेद का दुर्भाग्यवश पूर्ववर्ती सरकारों ने अल्पसंख्यकों को अनावश्यक सुविधा देने के लिए दुरुपयोग किया है। संविधान के अनुच्छेद 30 के अनुसार, अल्पसंख्यकों को अपने अनुसार शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने की पूर्ण स्वतंत्रता है। इसके कारण देश में मदरसों और ईसाई समर्थित कई शैक्षणिक संस्थान हैं, परंतु इसी सुविधा से बहुसंख्यकों को, विशेषकर सनातन धर्म से संबन्धित विद्यालयों को वंचित रखा गया है ।

गौरतलब है कि कई ईसाई संगठन शैक्षणिक और मेडिकल ट्रस्ट चलाते हैं, परंतु अल्पसंख्यक संस्थान होने के कारण वे किसी प्रकार का टैक्स नहीं देते हैं। ये संस्थान अपने समुदायों के लोगों के लिए आरक्षित सीटें रखते हैं और यहां तक ​​कि सेंट स्टीफेंस कॉलेज और दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे टॉप कॉलेज भी इससे अछूते नहीं है। इसी तरह, मदरसे और विश्वविद्यालय मुसलमानों द्वारा चलाए जाते हैं, और सरकार इन संस्थानों को फंड्स भी मुहैया कराती है।

दूसरी ओर, पूरे देश में हिंदू मंदिरों को “धर्मनिरपेक्ष” राज्य सरकारों के सख्त नियमों और लालच का शिकार होना पड़ता है। ये सरकारें हिंदू रिलीजियस और चैरिटेबल एंडॉवमेंट्स (एचआरसीई) अधिनियमों के तहत हिंदू मंदिरों को नियंत्रित करती हैं। राज्य सरकारों द्वारा हिंदू मंदिरों पर नियंत्रण का उदाहरण विशेष रूप से आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में देखा भी गया है। स्पष्ट है इस अधिनियम के तहत हिन्दू मंदिरों और उनके धार्मिक संस्थानों पर राज्य सरकार नियंत्रण बनाये हुए है, क्योंकि संविधान ने अल्पसंख्यकों की भांति हिंदुओं के अधिकारों की रक्षा कोई विशेष अधिनियम नहीं स्पष्ट किया है। इसके अलावा चेन्नई के एक संस्कृत विद्वान डॉ॰ वेणु गोपालन की माने तो ‘अनुच्छेद 28 बहुसंख्यक समुदाय को अपनी प्राचीन सभ्यता, संस्कृति और परंपराओं के ज्ञान को भावी पीढ़ियों तक पहुंचाने से रोकता है।‘

कई हिन्दू मंदिर ऐसे हैं जो राज्य सरकारों के नियंत्रण में रहे हैं और अब हिंदुओं का मानना है कि इस अनावश्यक नियंत्रण को समाप्त करना चाहिए। सरकार को मंदिर पर नियंत्रण रखने के अपने भी कारण है। कई अवसरों पर राज्य सरकारों द्वारा मंदिरों से प्राप्त होने वाले राजस्व का कई सरकारी योजनाओं में प्रयोग किया जाता है। यह बात भी किसी से नहीं छुपी है कि इसी धन का दुरुपयोग ईसाई स्कूलों को चलाने के लिए भी जाता है। राज्य सरकारों के अंतरगर्त अधिकतर मंदिरों की दुर्दशा किसी से नहीं छुपा है। इसके ठीक उलट देश में सबसे ज़्यादा ज़मीन ईसाई मिशनरियों के पास ही होती है, इसके बावजूद भी उनसे एक पैसा नहीं लिया जाता।

इसके अलावा कई नेता हिन्दू मंदिरों का पैसा कथित रूप से कल्याणकरी योजनाओं में भी लगते हैं। रिपब्लिक टीवी को दिए एक इंटरव्यू में तिरुमला बालाजी मंदिर के मुख्य पुजारी (अर्चक) डॉक्टर एवी रामना दीक्षितुलु ने आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और उनके द्वारा संचालित टीटीडी यानि तिरुपति तिरुमला देवस्थानम ट्रस्ट बोर्ड पर मंदिर के संसाधनों को लूटने का आरोप लगाया था। पूर्व मुख्य महंत के अनुसार चंद्रबाबू नायडू और उनकी सरकार ने तिरुपति मंदिर के संसाधनों को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

इन मामलों को ही संज्ञान में लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी संस्थाओं द्वारा हिन्दू मंदिरों के नियंत्रण पर प्रश्न चिन्ह लगाया था। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि मंदिरों का नियंत्रण मंदिरों में आने वाले भक्तों के हाथों में ही होना चाहिए, जिसके लिए उन्होंने राज्य सरकारों के अंतर्गत मंदिरों की होने वाली दुर्दशा की बात भी कही थी –

राजनीतिक शक्तियों के कारण हिन्दू संस्थानों को काफी अत्याचारों का सामना करना पड़ा है, चाहे वो मध्यकाल में बर्बर इस्लामी आक्रांता हो, या फिर आज की ‘धर्मनिरपेक्ष सरकार’ हो। जिसे अंग्रेजों ने भारतीयों को नियंत्रण में रखने के लिए शुरू किया था, उन क़ानूनों का आज भी हिंदुओं का दमन करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। ऐसे में हिन्दू चार्टर टीम का प्रमुख उद्देश्य इस भेदभाव को खत्म कर संविधान में हिंदुओं के लिए समान अधिकार सुनिश्चित कराना है।

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