कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने के बाद से हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान को इतना गहरा झटका लगा है कि वह अब तक उससे उबर नहीं पाया है। यही कारण है कि कश्मीर पर भारत के ऐतिहासिक फैसले के 1 महीने के बाद भी पाकिस्तान कश्मीर-कश्मीर चिल्ला रहा है। पिछले महीने पाक के प्रधानमंत्री इमरान खान ने न्यूयॉर्क टाइम्स के लिए एक एजेंडा से भरपूर लेख भी लिखा था जिसमें उन्होंने दुनिया को धमकाया था। उन्होंने कहा था अगर किसी ने इस मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया तो पूरी दुनिया को भारत और पाकिस्तान की जंग के नतीजे भुगतने पड़ेंगे। हालांकि, अब इकॉनोमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि पाकिस्तान भयंकर ऊर्जा किल्लत से जूझ रहा है और उसकी खराब आर्थिक हालत के साथ-साथ ऊर्जा कारणों से भी वह भारत के खिलाफ युद्ध तो छोड़िए, भारत के साथ तनाव बढ़ाने की स्थिति में भी नहीं है।
दरअसल, पाकिस्तान में ऊर्जा की डिमांड और सप्लाई में भारी असंतुलन देखने को मिल रहा है। ऊर्जा की मांग बहुत ज़्यादा है, लेकिन पूर्ति के लिए ऊर्जा की सप्लाई उस रफ्तार से नहीं हो पा रही है। इसके मुख्य तीन कारण हैं। पहला तो यह कि खाड़ी के देशों में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल है और ईरान पर लगे प्रतिबंधों के कारण पूरे विश्व भर में कच्चे तेल के आयात और निर्यात पर इसका प्रभाव पड़ा है। दूसरा कारण यह है कि पाकिस्तान की करेन्सी बहुत कमजोर हो चुकी है और तीसरा कारण यह है कि पाकिस्तान के पास विदेशी मुद्रा भंडार बेहद कम मात्रा में है। ऐसे में पाकिस्तान को कच्चा तेल आयात करने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
बता दें कि हर देश के पास पेट्रोलियम प्रोडक्टस के लिए एक स्टॉक होता है ताकि अगर कभी कच्चे तेल की सप्लाई में कोई बाधा आए, तो इस स्टॉक में से वह अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सके। पाकिस्तान के पास भी अपनी 74 दिनों की ऊर्जा की मांग की पूर्ति के लिए स्टॉक मौजूद है लेकिन अभी उसमें सिर्फ 26 दिनों का ही स्टॉक उपलब्ध है, यानि कुल क्षमता का सिर्फ 35 प्रतिशत! कुछ दिनों पहले ही पाकिस्तानी आर्मी के प्रवक्ता आसिफ गफूर ने कहा था कि युद्ध लड़ने के लिए सिर्फ इकॉनमी और हथियार मायने नहीं रखते, बल्कि जज़्बा भी मायने रखता है, लेकिन जिस देश के पास अपनी ऊर्जा की पूर्ति के लिए पर्याप्त कच्चा तेल मौजूद नहीं हो, वह अलग युद्ध की बात ना करे तो ही बेहतर है।
शायद यही कारण है कि जैसे ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने में न्यूयॉर्क टाइम्स में भारत को युद्ध की धमकी दी, उसी के महज़ एक दिन बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने यह कहा कि वे भारत से बातचीत करने के लिए तैयार हैं। कुरैशी ने इस महीने की शुरुआत में कहा था ‘हम वार्ता के लिए तैयार हैं, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करेगा भारत भी यह चाहता है या नहीं।’ इसके दो दिन बाद इमरान खान ने भी अपनी कही बात से यू –टर्न लेते हुए कहा कि परमाणु युद्ध किसी भी देश के हित में नहीं है’। अब यह समझने लायक है कि इमरान खान ने इस क्षेत्र में शांति स्थापना के लिए नहीं, बल्कि अपनी स्थिति को देखते हुए यह यू –टर्न लिया था।
बता दें कि इस महीने के शुरू में पाक के वाणिज्य मंत्रालय ने एक आदेश जारी करते हुए भारत से दवाओं के आयात और निर्यात को अपनी मंजूरी दे दी थी, जबकि इससे पहले पाकिस्तान ने खुद भारत के साथ सभी द्विपक्षीय व्यापार सम्बन्धों को खत्म करने का फैसला लिया था। पाकिस्तान अब चाहे बेशक बातचीत की टेबल पर आने के लिए भारत से गुहार लगा रहा हो, लेकिन भारत का यह साफ़तौर पर कहना है कि आतंक और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते। अगर पाकिस्तान को भारत के साथ बातचीत करनी है, तो पहले उसे बॉर्डर पर सभी आतंकी गतिविधियों को रोकना ही होगा। हालांकि, आतंकी गतिविधि रोकना तो दूर, पाकिस्तान के मंत्री तो भारत में जिहाद करने की बात कर रहे हैं, तो ऐसे में अभी पाकिस्तान को यह बिलकुल नहीं कहना चाहिए कि वह भारत के साथ बातचीत करने को तैयार है, क्योंकि इससे पहले उसे अपने पालतू आतंकियों को ठिकाने लगाना होगा।