‘मुंह में राम, बगल में छुरी’, कश्मीर मुद्दे पर चीन के रुख ने भारत को एक बार फिर बड़ा संकेत दिया है

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PC: newsstate

दुनिया की दो सबसे बड़ी आबादी वाले देश यानि चीन और भारत अब अनौपचारिक कूटनीति के रास्ते पर चलते दिखाई पड़ रहे हैं। पिछले वर्ष चीन के वुहान में प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच एक अनौपचारिक मुलाक़ात हुई थी और वह बड़ी सफल मानी गई थी। उस दौरान उस मुलाक़ात का महत्व इसलिए भी बहुत ज़्यादा था क्योंकि वर्ष 2017 में भारत और चीन के बीच डोकलाम विवाद पैदा हुआ था और दोनों देशों की सेनाएं कई हफ्तों तक एक दूसरे के सामने खड़ी हुई थीं। वुहान शिखर सम्मेलन ने काफी हद तक दोनों देशों के रिश्तों को पटरी पर लाने के काम किया था। अब इस साल के आखिर में एक बार फिर पीएम मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग के बीच ऐसी ही एक अनौपचारिक मुलाक़ात होने वाली है, और यह मुलाक़ात भी तब होने जा रही है जब कश्मीर मुद्दे पर चीन के रुख से भारत में नाराजगी है और अभी एक हफ्ते पहले ही भारत-चीन बॉर्डर पर हमें भारत और चीन के सैनिकों के बीच तनातनी देखने को मिली थी।

दरअसल, इसी महीने 12 तारीख को लद्दाख़ में भारत-चीन सीमा पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच संघर्ष की ख़बरें सामने आई थीं। 134 किलोमीटर लंबी पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे पर दोनों देशों के सैनिकों में काफ़ी देर तक धक्का-मुक्की होती रही थी और देर शाम तक चले इस संघर्ष के बाद दोनों देशों ने यहां अपनी सेना को भी बढ़ा दिया था। हालांकि, चीऩ की ओर से इस तरह की आक्रामकता कोई नई बात नहीं है, और वो भी ऐसे समय में जब दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों की मुलाक़ात होने वाली हो। हालांकि, बाद में यह खबर भी आई कि दोनों देशों ने आपसी समझ के आधार पर इस मुद्दे को सुलझा लिया है, और अब सीमा पर किसी तरह का तनाव नहीं है। लेकिन अक्सर ऐसे देखने में आया है कि किसी भी बातचीत से पहले चीऩ अपने पड़ोसी देशों के साथ बॉर्डर पर तनाव को बढ़ा देता है ताकि बातचीत में उसका पलड़ा भारी हो सके और वह सामने वाले देश पर अपना दबाव बढ़ा सके।

बता दें कि चीन ही वह देश है जिसके पास दुनिया में सबसे ज़्यादा पड़ोसी हैं। चीन के कुल मिलाकर 20 पड़ोसी देश हैं, और सभी के साथ इस देश के सीमा विवाद है। चीन इतना शातिर है कि वह अपने पड़ोसी ताइवान को तो देश ही नहीं मानता है और वहां पर भी चीन का राज़ ही चाहता है। इन सब देशों के साथ लगातार तनाव की स्थिति में रहकर चीऩ हमेशा इन देशों के साथ बातचीत में अपने पक्ष को मजबूत रखे रहना चाहता है, और यही अब की बार उसने भारत के साथ भी करने की कोशिश की।

हालांकि, भारत भी अब की बार पूरी तैयारी में नज़र आ रहा है और चीन की भाषा में ही चीऩ को जवाब देने के लिए वह पूरी तरह तैयार दिख रहा है। दरअसल, चीन की सीमा से सटे लद्दाख क्षेत्र में भारतीय थलसेना और वायुसेना के जवानों ने मंगलवार को पहली बार एक युद्धाभ्यास किया। इस दौरान जमकर शक्ति प्रदर्शन किया गया। इससे जुड़ी तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। इस अभ्यास में आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल किया गया और इसमें वायुसेना और थलसेना की कई टुकड़ियों ने भाग लिया। उत्तरी कमांड के लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह ने अभ्यास के दौरान तैयारियों को परखा। रोचक बात यह है कि चीनी सेना लगातार इसी हिस्से में घुसपैठ की कोशिश करती रही है और कई बार यहां दोनों देशों के जवानों का आमना-सामना भी हुआ है। ऐसे में भारतीय सेना के जवानों का अभ्यास चीऩ को भी सख्त संदेश देता है, वो भी ऐसे समय में जब दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों की एक अनौपचारिक मुलाक़ात होने वाली है।

पिछले वर्ष वुहान समिट के बाद से ही भारत और चीऩ के रिश्तों का एक नया अध्याय लिखना शुरू हो गया था। दोनों देशों की सरकारों ने आपसी समझ को विकसित करने का मन बनाया और द्विपक्षीय रिश्तों में एक मधुरता देखने को मिल रही थी। लेकिन चीन ने इस वर्ष के दौरान कई मौकों पर खुलकर भारत के हितों के खिलाफ काम किया है। भारत में इस वर्ष पुलवामा हमला होने के बाद जब हमलों के पीछे पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का नाम सामने आया था तो भारत के कहने पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 प्रतिबंध समिति के समक्ष मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने के लिए फ्रांस,ब्रिटेन और अमेरिका ने 27 फरवरी को एक प्रस्ताव पेश किया था। इस प्रस्ताव के तहत जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को एक अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित किया जाना था। भारत ने इसको लेकर अपनी लोब्बी काफी मजबूत की थी और यहां तक कि अमेरिका ने भी इसको लेकर चीन जैसे देशों को चेतावनी जारी की थी। अमेरिका ने चीन को चेतावनी देते हुए कहा था कि अजहर को लेकर चीन का रुख क्षेत्रीय स्थिरता एवं शांति के लिए खतरा है। यूएन सुरक्षा परिषद में इस प्रस्ताव के पेश होने के बाद समिति ने सदस्य देशों को आपत्ति दर्ज करने के लिए 10 दिनों का समय दिया था लेकिन चीन ने इस समय के खत्म होने से ऐन कुछ घंटे पहले प्रस्ताव पर एक टेक्निकल होल्ड लगा दिया जबकि बाकी सभी देश मसूद पर प्रतिबंध के पक्ष में थे। हालांकि, बाद में जब चीन पर दबाव बढ़ गया तो उसे इस टेक्निकल होल्ड को हटाने पर मजबूर होना पड़ा था और मई में मसूद अजहर को यूएन द्वारा एक अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित कर दिया गया था।

इसी तरह जब भारत ने अपने राज्य कश्मीर से संबन्धित दो बड़े फैसले लिए तो भी चीऩ का रुख बेहद भारत विरोधी ही था। भारत ने 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाने के साथ-साथ राज्य को दो हिस्सों में बांटने का फैसला लिया था। इसके बाद विश्व के अधिकतर देशों ने भारत का ही साथ दिया था लेकिन चीन ने पाक-प्रेम में अंधा होकर खुलकर भारत के इस फैसले पर अपनी आपत्ति जताई। चीन ने भारत के फैसले पर अपना विरोध जताते हुए कहा था ‘हाल ही में भारत ने अपने एकतरफ़ा क़ानून में बदलाव करके चीन की क्षेत्रीय संप्रभुता को कम आंकना जारी रखा है। यह अस्वीकार्य है और यह प्रभाव में नहीं आएगा’। इसके बाद भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर चीऩ के दौरे पर भी गए थे और चीऩ को भारत के पक्ष से अवगत कराया था। जयशंकर ने अपने चीनी समकक्ष वांग यी के साथ मुलाकात में कहा था कि भारत और चीन को चाहिए कि वह अपने द्विपक्षीय संबंधों को मतभेदों के चलते प्रभावित न होने दें। इसके अलावा दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात से पहले नई दिल्ली चीन को यह भी अवगत करा चुकी थी कि अनुच्छेद 370 को रद्द करना और जम्मू एवं कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा वापस लेकर लद्दाख को केंद्रीय शासित प्रदेश बनाना पूर्ण रूप से भारत का आंतरिक मामला है।

लेकिन इसके बाद भी चीन का भारत-विरोधी राग बंद नहीं हुआ और पाकिस्तान के कहने पर वह इस मुद्दे को यूएन सुरक्षा परिषद में ले गया। 16 अगस्त को कश्मीर मुद्दे पर यूएन में एक अनौपचारिक बैठक हुई थी और इस बैठक में भी चीऩ ने भारत के खिलाफ बिलकुल दुश्मनों जैसा व्यवहार किया था। इतना ही नहीं, उस बैठक में चीन ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करने के साथ अक्साई चिन का भी मुद्दा उठाया था। संयुक्त राष्ट्र में चीन के राजदूत ने कहा था कि भारत सरकार का अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को खत्म करने का फैसला चीऩ के संप्रभु हितों को चुनौती देता है। उन्होंने यह भी कहा था कि इस निर्णय से सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बनाए रखने के द्विपक्षीय समझौता का उल्लंघन हुआ है।

हालांकि, चीन के इतने बड़े स्तर के प्रोपेगैंडे के बावजूद उसे मुंह की ही खानी पड़ी और बैठक में यूएन सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी सदस्यों में से चीन को छोड़कर सभी ने भारत का ही साथ दिया। यानि अपने पाकिस्तानी प्रेम में चीन कश्मीर मुद्दे को यूएन में तो ले गया लेकिन उसका जो नतीजा हुआ, उसने उसे कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा है।

जैसा हमने आपको बताया, इस साल के अंत में पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच अनौपचारिक मुलाक़ात होने वाली है, और इस बात की पूरी संभावना है कि भारत चीन के साथ अपनी सभी चिंताओं को साझा करेगा। इस मुलाक़ात के संदर्भ में अभी तक चीन की ओर से यही कहा गया है दोनों नेता कश्मीर मुद्दे पर शायद ही कोई बात करें। जाहिर है कि कश्मीर मुद्दे पर कोई भी बात करने से अब चीन बचना चाहेगा क्योंकि खुद चीऩ भी इस बात को जानता है कि अपने पाक प्रेम में वह काफी हद तक भारत के हितों के खिलाफ जाकर काम कर चुका है।

अभी इसी महीने कश्मीर पर भारत के फैसले के बाद चीन के विदेश मंत्री पाकिस्तान के दौरे पर गए थे और वहां भी चीन ने पाकिस्तान के साथ अपने साझे बयान में भारत विरोधी रुख अपनाया था। चीन-पाकिस्तान ने अपने साझे बयान में कहा था कि ‘“चीन पाकिस्तान की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता, स्वतंत्रता और राष्ट्रीय गरिमा की रक्षा के लिए अपने समर्थन की पुष्टि करता है और साथ ही क्षेत्रीय और अंतरार्ष्ट्रीय मुद्दों में उसके समर्थन की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराता है’। भारत ने चीऩ के इस बयान का जोरदार विरोध किया था और इस बयान पर अपनी अस्वीकार्यता जताई थी। विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर यह कहा था कि हम जम्मू-कश्मीर पर चीन और पाकिस्तान के संयुक्त बयान को खारिज करते हैं। भारत ने यह भी कहा था कि जम्मू और कश्मीर हमारा अभिन्न अंग है। वहीं दूसरी ओर भारत ने चीन द्वारा बनाए जा रहे तथाकथित चाइना-पाकिस्तान इकोनोमिक कॉरीडोर की भी कड़ी आलोचना की थी।

भारत और चीन एशिया की दो बड़ी शक्तियाँ हैं, ऐसे में इन दो देशों के आपसी सम्बन्धों का पूरी दुनिया पर असर पड़ता है। भारत की बात करें, तो भारत शुरू से ही द्विपक्षीय सम्बन्धों का आदर करता आया है लेकिन चीन की ओर से हमेशा से ही हमें नकारात्मक रुख देखने को मिला है। अब जब पीएम मोदी और शी जिनपिंग की मुलाक़ात होने वाली है, तो बेशक हमें चीन की ओर से बड़े-बड़े दावे और वादे देखने को मिल सकते हैं लेकिन इतिहास को देखते हुए चीन पर आँख मूँद कर विश्वास करना भारत के लिए बेवकूफी ही होगी।

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