मोदी सरकार ने धर्मांतरण कराने वाले एनजीओ पर एक और प्रहार करते हुए FCRA यानि फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट 2011 में बदलाव कर इसे और कठोर बना दिया है। गृह मंत्रालय ने कहा कि FCRA के तहत पंजीकृत संस्थाओं और वहां काम कर रहे प्रत्येक कार्यवाहक सदस्यों को यह घोषणा करनी होगी कि वह किसी भी धार्मिक परिवर्तन के कार्य या सांप्रदायिक वैमनस्यता में शामिल नहीं है। उन्हें यह घोषणा एक हलफनामा दाखिल कर करना होगा।
बता दें कि अभी तक इस तरह का डिक्लीरियेशन NGO के चीफ फंक्शनरी को सेक्शन 12(4) के अंतर्गत पेश करना होता था लेकिन 2019 में हुए दूसरे संशोधन के बाद अब सभी कार्यकर्ताओं व सदस्यों के लिए इसे अनिवार्य कर दिया गया है।
वहीं नियम 7 में भी कुछ संशोधन किए गए हैं। जिसके तहत अगर किसी व्यक्ति को विदेश यात्रा के दौरान किसी को आपात स्थिति में इलाज की जरूरत होती है और वह विदेशी मदद प्राप्त करता है तो उसे इसकी जानकारी केंद्र सरकार को एक महीने के भीतर देनी होगी जो पहले 60 दिन यानी दो महीने थी। सूचना में मदद का स्त्रोत, भारतीय मुद्रा में उसका मूल्य और किस तरह उसका इस्तेमाल किया गया, यह ब्योरा देना होगा।
गौरतलब है कि भारत में एनजीओ एक बड़ा सेक्टर है और यहाँ 33 लाख रजिस्टर्ड एनजीओ मौजूद हैं। इन सभी एनजीओ की फंडिंग पारदर्शी नहीं है और कुछ विदेशी एनजीओ की शाखाएं तो अपनी फंडिंग को अपना एजेंडा फैलाने के लिए प्रयोग करती हैं जो अक्सर राष्ट्रीय हित और विकास के लिए हानिकारक होते हैं।
सत्ता में जब से मोदी सरकार आई है, भारत विरोधी एनजीओ पर लगाम लगाने के लिए कई कड़े कदम उठा चुकी है। सरकार ने गैर-सरकारी संगठनों को विदेशों से मिलने वाले पैसे को ‘चंदा’ न मानकर ‘निवेश’ के तौर पर मान्यता देने का फैसला किया था। यानि विदेशी फंड पर FCRA के नियमों के साथ-साथ कंपनीज़ एक्ट और इनकम टैक्स के ज़्यादा कड़े नियम लागू होंगे और एनजीओ को विदेशों से मिलने वाले पैसे का सारा डिटेल संबन्धित एजेंसियों को देना पड़ेगा। वर्ष 2014 में मोदी सरकार ने आते ही ऐसे प्रोपेगैंडावादी गैर-सरकारी संगठनों पर कार्रवाई करना शुरू कर दिया। वर्ष 2016 में मोदी सरकार ने FCRA कानून के तहत लगभग 20 हज़ार गैर-सरकारी संगठनों के विदेशी चंदा प्राप्त करने पर पूरी तरह रोक लगा दी थी।
धर्मांतरण गिरोह अक्सर एनजीओ का सहारा लेकर गरीबों का धर्मांतरण करवाते हैं और उनका भारत विरोधी अभियान के लिए इस्तेमाल करते हैं। कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र व ओडिशा में पोस्को परियोजना का विरोध इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
भारत के ग्रामीण व आदिवासी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में काम करने वाली ईसाई मिशनरी व इस्लामिक प्रोपेगेंडा चलाने वाले संगठन भारत के हितों के लिए खतरा बने हुए हैं। इसमें ज़ाकिर नाइक और उसकी संस्था इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन का भी नाम था। हालांकि जाकिर के संगठन को बैन कर दिया है।
इंटेलिजेंस ब्यूरो ने एक रिपोर्ट में बताया है कि कई विदेशी फंडिंग से चलने वाले NGO “पश्चिमी देशों की विदेश नीति के लिए उनकी सेवा कर रहे हैं।” आईबी की रिपोर्ट के अनुसार विदेशी विदेशी फंडिंग से चलने वाले NGOs विकास परियोजनाओं में लगातार बाधाएं पैदा की हैं जिससे भारत की जीडीपी को 2 प्रतिशत का नुकसान हुआ है।
सरकार ने FCRA अधिनियम का इस्तेमाल उन संगठनों के खिलाफ किया है जो विदेशी वित्तीय सहयोग का प्रयोग भारतीय विरोधी गतिविधियों में करती थीं। इनमें ग्रीनपीस इंडिया जैसे एनजीओ का नाम शामिल है, जिस पर फेमा कानून के उल्लंघन करने का आरोप भी लगा है। ऐसी ही एक और एनजीओ है ‘कम्पैशन इंटरनेशनल’, जिसे FCRA अधिनियम के तहत दंडित किया गया है। इन सभी एनजीओ का उन गतिविधियों में शामिल होने का संदेह था जो देश विरोधी हैं।
एनजीओ से जुड़े ऐसे कई मामले सामने आये हैं जिनका कनेक्शन विदेश में स्थित चर्चों के साथ पाया गया है, जो जनजातीय आबादी का बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के लिए जानी जाती हैं। झारखंड जैसे राज्य इसके प्रमुख उदाहरण हैं। सीआईडी की एक रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में 88 ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित एनजीओ में शीर्ष 11 को 7.5-39 करोड़ रुपये का विदेशी फंड मिला था। एक रिपोर्ट में कुछ गैर-अधिकारी संगठनों पर देश में अलगाववाद और माओवाद का बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया गया था। उन पर यह आरोप भी लगाया जाता है कि विदेशी शक्तियां उनका उपयोग एक प्रॉक्सी के रूप में भारत के विकास को अस्थिर करने के लिए करती हैं।
नए कानून में इन NGO के विदेशी फंडिंग संबंधी सभी प्रक्रियाएँ पूरी तरह पारदर्शी हो सकेंगी और इन्हें एजेंडे के तहत मिलने वाले विदेशी पैसे पर भी रोक लगाया जा सकेगा। इसके साथ ही भारत विरोधी NGO पर लगाम लगेगा।