भाजपा के लिए एक बड़ी सीख: दूसरी पार्टी के कचरों को न करे शामिल

भाजपा

राजनैतिक दल का क्या अर्थ है? राजनेताओं का एक समूह अथवा विचारों और आदर्शों की आधारशिला पर बना एक समूह। एक आदर्श विश्व में, अधिकतर लोग दूसरे परिभाषा को ही वरीयता देंगे, परंतु जिस विश्व में हम रहते हैं वहां आदर्शवादिता कम और तर्कसंगतता अधिक मायने रखती है। और वस्तुतः इसी तर्कसंगतता के आधार पर भाजपा ने अपने हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव अभियान की नींव रखी थी। अगर भाजपा के अभियान को ध्यान से देखा जाये तो ये भलीभांति ज्ञात हो जाएगा कि भाजपा की रणनीति अपने विपक्षी दलों को तोड़ने की थी। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी अर्थात NCP और इंडियन नेशनल कांग्रस दोनों के ही नेताओं को थोक भाव में भाजपा में आयात किया गया। विपक्षियों को तोड़कर चुनाव जीतने की धुन में भारतीय जनता पार्टी ने एक महान मूर्खता भी की और वो थी आदर्शों की आधारशिला पर बनी पार्टी में किसी को भी सम्मिलित करने की। उदाहरणार्थ, अल्पेश ठाकोर और बाबुश मासेराटी भाजपा में क्या कर रहे हैं?

अगर बात केवल महाराष्ट्र की हो तो हम ये पाएंगे कि भाजपा ने राजनैतिक राजवंश के कई लोगों को दूसरी पार्टियों से आयात किया। अब नारायण राणे के पुत्र नीतेश राणे को ही देख लें। नारायण राणे पहले शिवसेना में थे बाद में कांग्रेस में आए और अब उनके पुत्र भाजपा में हैं। वरिष्ठ कांग्रेस नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल जो कांग्रेस से दुखी चल रहे थे, उनके पुत्र सुजय विखे पाटिल को भाजपा ने लोक सभा टिकट दिया था। बाद में राधाकृष्ण भी भाजपा में आ गए और इस बार महाराष्ट्र चुनाव भी लड़ रहे हैं। ये वही राधाकृष्ण विखे पाटिल हैं जो महाराष्ट्र में नेता प्रतिपक्ष थे और इन्होंने भाजपा सरकार को घेरने का कोई अवसर नहीं छोड़ा था।

कभी शरद पवार के आत्मीय माने जाने वाले गणेश नाईक को भी भाजपा ने आयात किया और उनके सुपुत्र को विधान सभा चुनाव के लिए टिकट भी मिला। इसका आंतरिक विरोध भी हुआ था। NCP की एक और युवा नेत्री नमिता मुंडदा भाजपा में सम्मिलित हुई और उन्हे केज विधान सभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का अवसर भी दिया गया है। वहीं राहुल नार्वेकर घूमे घुमाए नेता है, ये NCP से होते हुए काँग्रेस पहुंचे, आजकल भाजपा में हैं और चुनाव भी लड़ रहे हैं। कुछ और प्रमुख आयातित नेताओं की यदि बात करें तो उनमें समीर मेघे, अतुल भोसले, वैभव पिचड़ और मोनिका राजळे (Monika Rajale) प्रमुख होंगे।

अब प्रश्न यह उठता है कि विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी भाजपा दूसरी पार्टियों से नेता आयात क्यों करती है? इसका सीधा और स्पष्ट उत्तर है – ‘जीतने की क्षमता’। आयातित नेता बहुधा तृण मूल स्तर पर प्रसिद्ध होते हैं और प्रायः किसी जाति विशेष में अच्छी पैठ रखते हैं। इससे इनके जीतने की क्षमता बढ़ जाती है। परंतु इससे एक सीधी और स्पष्ट हानि भी है और वह है जनता और कैडर का स्वाभाविक आक्रोश। बटरफ्लाई इफेक्ट की तरह किसी बुरे नेता के भाजपा में आने का भुगतान कोई अच्छा नेता अपनी सीट गंवा कर करता है। कैडर का आक्रोश भी स्वाभाविक है क्योंकि जिस नेता के समर्थकों से वे लोहा लेते आए हैं उन्हें उनकी प्रशंसा करने पर बाध्य होना पड़ता है। प्रायः कैडर के लोग या तो पार्टी छोड़ देते हैं या पार्टी के प्रति उदासीन हो जाते हैं।

इस बार आशा यह थी की महाराष्ट्र और हरियाणा दोनों में भारतीय जनता पार्टी की आंधी आएगी। सरकारें तो भाजपा दोनों ही जगहों पर बनाने में सफल भी हो जाएगी परंतु परिणाम आशाओं के अनुकूल नहीं हैं। जहां कई समीक्षक आत्मसंतुष्टि को सबसे बड़ा कारण मान रहे हैं, मेरे अनुसार घटिया नेताओं का निर्बाध आयात भी एक बड़ा कारण अवश्य है। भाजपा को तत्क्षण दूसरी पार्टियों से नेता आयात पर रोक लगाना चाहिए और अपने दल से ही नए नेताओं की चुनावी दीक्षा प्रारम्भ करनी चाहिए।

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