जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) इन दिनों फिर से चर्चा में है। कारण यह है कि कल यानि गुरूवार को अनुच्छेद 370 पर छात्र संगठन एबीवीपी ने एक सेमिनार आयोजित किया था। जिसमें केंद्रीय मंत्री व उधमपुर के सांसद जितेंद्र सिंह ने भाग लिया था। इस कार्यक्रम के विरोध में लेफ्ट के छात्र नेता एबीवीपी के छात्र नेताओं से जा भिड़े। दोनों गुटों में जमकर हाथापाई हुई, इसके साथ ही दोनों छात्र संगठनों के कार्यकर्ताओं ने जमकर नारेबाजी भी की। एक तरफ ABVP के कार्यकर्ताओं ने ‘कश्मीर से कन्याकुमारी, भारत माता एक हमारी’ का नारा लगाया तो वहीं लेफ्ट (AISA) के कार्यकर्ताओं ने ‘कश्मीर आजाद करो’ “RSS मुर्दाबाद”, “ABVP ओह माय गॉड” जैसे स्लोगनों का प्रयोग किया।
#WATCH: Scuffle broke out between two groups of students during a seminar on #Article370 at Jawaharlal Nehru University campus in Delhi, today. Union Minister Jitendra Singh was speaking at the seminar. pic.twitter.com/KOLU18Cyo7
— ANI (@ANI) October 3, 2019
बता दें कि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) प्रबंधन की ओर से कैंपस में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर में शांति और विकास विषय पर सेमिनार आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि मोदी सरकार के दृढ़ संकल्पों के चलते अनुच्छेद 370 हटाना संभव हो पाया। केंद्रीय मंत्री ने बताया कि पांच अगस्त के बाद बेशक थोड़ा कर्फ्यू जैसा माहौल था, लेकिन घाटी में अमन चैन कायम है। महिलाओं, युवाओं को आगे बढ़ाने के लिए खास रोडमैप तैयार किया गया है। इसके अलावा एससी, एसटी और ओबीसी पर खास फोकस है।
हालांकि ये बात लेफ्ट छात्रनेताओं के गले नहीं उतरी और वह जितेंद्र सिंह का विरोध करते हुए कश्मीर को भारत से मांगने की बात करने लगे। कार्यक्रम के दौरान लेफ्ट के छात्रनेताओं ने नारेबाजी करते हुए कहा कि भारत, ‘कश्मीर को आजाद करो’। इस बात से साफ सिद्ध होता है कि लेफ्ट के कार्यकर्ता यह मानते हैं कि भारत ने कश्मीर पर जबरन अधिकार किया है। वे भारत सरकार की उन नीतियों का विरोध करते हैं जिससे कश्मीर में विकास की होने वाली होती है। उन्हें आतंकित, अलगाववाद व वंशवाद की चपेट में हर दिन घुट रहा पुराना कश्मीर चाहिए। उन्हें शांति व विकास से कोई मतलब नहीं है। क्योंकि आगे यही राजनीति उन्हें भी तो कश्मीर में करनी थी जिस पर मोदी सरकार ने पानी फेर दिया।
ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है जब जेएनयू के वामपंथी छात्रों ने भारत विरोधी नारेबाजी की हो, इससे पहले भी टूकड़े-टूकड़े गैंग्स ने कैंपस में भारत विरोधी अभियान चलाया था। तीन साल पहले 9 फरवरी 2016 को दिल्ली के जेएनयू में अफजल गुरु और मकबूल भट्ट की फांसी को न्यायिक हत्या बताते हुए कुछ छात्रों ने साबरमती ढाबे के पास एक प्रोग्राम का आयोजन किया था। “द कंट्री विदआउट पोस्ट आफिस” नाम से आयोजित इस कार्यक्रम में वहां मौजूद छात्रों ने देश विरोधी नारे लगाए थे। जिसमें दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 1200 पेज की चार्जशीट दायर की थी। चार्जशीट में देशद्रोह, दंगा भड़काना, अवैध तरीके से इकठ्ठा होना और साज़िश के आरोप लगाए गए थे। पुलिस की चार्जशीट में कन्हैया कुमार, अनिर्बान भट्टाचार्य और उमर खालिद सहित सात कश्मीरी छात्र आरोपी बताये गए हैं। चार्जशीट में कुल 46 लोगों के नाम हैं। हालांकि इस मामले पर आगे की जांच के लिए केजरीवाल सरकार ने दिल्ली पुलिस को अनुमति नहीं दी जिस वजह से यह पेंडिंग में पड़ा है।
इसी तरह मार्च 2019 में जेएनयू के लगभग 400 से 500 वामपंथी छात्रों ने विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर जगदीश कुमार के आवास का घेराव किया और वहां मौजूद सुरक्षाकर्मियों से मारपीट भी की। ऐसे कई उदाहरण हैं जिससे सिद्ध होता है कि जेएनयू भारत विरोधी एजेंडे का अखाड़ा बन चुका है।
जेएनयू के वामपंथी छात्र आखिर किस कारण एक शीर्ष केंद्रीय विश्वविद्यालय से भारत विरोधी एजेंडा चलाते हैं और उसे अपने भारत विरोधी राजनीति का जरिया बनाते हैं? कहां से इन वामपंथी छात्रों को बल मिलता है? आखिर क्यों ये वामपंथी छात्र 8-10 सालों तक रूककर अपना समय बर्बाद करते हैं, पढ़ाई से इतर ये लोग वामपंथ की राजनीति में क्यों अंधे हो जाते हैं?
इन सारे सवालों का जवाब बस एक है, वहां का फीस स्ट्रक्चर। जेएनयू भारत का एकमात्र ऐसा संस्थान है जहां विद्यार्थियों से सरकार बेहद कम फीस वसूलती है। अगर बात P.hd, M.Phil, M. Tech जैसे कोर्स की करें तो यह मात्र 400 रूपए में पूरी की जा सकती है। वहीं MA, M.Sc., B.A. (Hons.) और MCA जैसे कोर्स की फीस मात्र 355 रूपए है। इसी तरह PG Diploma In Big Data Analytics (PGDT) जैसे प्रोफेशनल कोर्स की फीस मात्र 10,159 रूपए है और पार्ट टाइम कोर्स की फीस मात्र 219 रूपए है।
इसके साथ ही जेएनयू में हॉस्टल व मेस का चार्ज भी बेहद कम है। हॉस्टल के फीस की बात करें तो पूरे एक साल में सिंगल सिटेड रूम का चार्ज मात्र 240 रूपए है। वहीं डबल सिटेड रूम का चार्ज 120 रूपए है। वहीं मेस का चार्ज मात्र 750 रूपए प्रति माह है।
जेएनयू की फीस तो आप समझ ही चुके होंगे कि कितना कम है और हर वर्ग का छात्र यहां पढ़ाई कर सकता है लेकिन जब शिक्षा का मूल्य ही छात्र न समझ पाए तो वह दिशा से भटक जाता है। ठीक ऐसा ही आज जेएनयू के वामपंथी विद्यार्थियों के साथ हो रहा है। वे कम फीस देते हैं और इसका उन्हें कोई मोह नहीं होता। इसी वजह से वे अपने मुख्य ध्येय से भटककर भारत विरोधी अभियानों में लग जाते हैं। अगर उनसे सरकार ज्यादा फीस वसूलती तो यही छात्र उसका मूल्य समझते और अपना कीमती समय अपने पढ़ाई पर, अपने मां-बाप के सपनों पर खर्च करते न की 10 सालों तक रूककर भारत विरोधी अभियान चलाते।
इन सभी बातों पर गौर करें तो यही सिद्ध होता है कि यहां कई सालों तक रूकने और भारत विरोधी प्रोपेगेंडा चलाने की ताकत इन्हें कम फीस की वजह से ही मिलती है। ऐसे में सरकार को जल्द से जल्द जेएनयू की फीस बढ़ा देनी चाहिए। जिससे जेएनयू के वामपंथी छात्र उसका मूल्य समझ सकें और मुख्यधारा की पढ़ाई कर सकें। यह तरीका जरूर सख्त है लेकिन इसे लागू करने के बाद जरूर जेएनयू कैंपस में बदलाव आएंगें।