भारतीय वायुसेना लगातार अपनी ताकत बढ़ाने की दिशा में प्रयासरत है। समय के साथ-साथ भारतीय वायुसेना में पुरानी तकनीक के लड़ाकू जहाजों की संख्या और भारतीय वायुसेना की चुनौतियों में भारी इजाफा हुआ है जिसके कारण भारतीय वायुसेना की शक्ति को बढ़ाना अब समय की मांग है। आज से कुछ वर्षों पहले भारतीय वायुसेना ने अपनी जरूरतों के हिसाब से सरकार से 126 medium multi-role combat aircrafts की मांग की थी। उसके बाद सरकार ने फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट एविएशन से वर्ष 2015 में 36 राफेल विमानों का सौदा किया था, और इसी वर्ष 8 अक्टूबर तक भारत में इन विमानों की पहली खेप पहुंच भी जाएगी।
हालांकि, अभी वायुसेना को 114 अतिरिक्त आधुनिक विमानों की आवश्यकता है, जिसके लिए वायुसेना ने दुनिया भर के निर्माताओं से करीब 18 अरब डॉलर मूल्य के लड़ाकू विमानों की आपूर्ति के लिए प्रस्ताव मांगा है, जिसके लिए दुनिया की सबसे बड़ी लड़ाकू विमान बनाने वाली कंपनियों जैसे फ्रांस की दसॉल्ट एविएशन, स्वीडन की प्रमुख रक्षा कंपनी साब और अमेरिकी रक्षा कंपनी लॉकहीड मार्टिन में प्रतिस्पर्धा अब तेज हो गई है।
बता दें कि समाचार एजेंसी IANS के अनुसार, भारत सरकार फ्रांस के साथ 36 अतिरिक्त राफेल विमान लेने पर विचार कर रही है। भारतीय डिफेंस रिसर्च विंग की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस नए ऑर्डर पर 2020 की शुरुआत तक फैसला हो जाएगा। फ्रांस की दसॉल्ट एविएशन भी भारत सरकार के इस प्रस्ताव को लेकर काफी उत्साहित है लेकिन इस मामले में उसे लॉकहीड मार्टिन और साब जैसी विमान निर्माता कंपनियों से कड़ी टक्कर मिल सकती है।,
स्वीडन की रक्षा कंपनी साब भी अपने एक इंजन वाले लड़ाकू विमान ग्रिपेन-ई की आपूर्ति के लिए भारत से ठेका मिलने का विश्वास जता चुकी है। कंपनी का मानना है कि ‘साब दुनिया की एकमात्र कंपनी है जिसके पास लड़ाकू जेट को उन्नत बनाने की क्षमता है और ऐसा समझा जाता है कि भारत ग्रिपेन जैसा विमान चाहता है’। इसी वर्ष फरवरी में एयरो इंडिया प्रदर्शनी के लिये भारत आये कंपनी के उपाध्यक्ष पाम्सबर्ग ने कहा था, ‘‘हमें भरोसा है कि हम ग्रिपेन-ई के लिये भारत सरकार से आर्डर हासिल करेंगे क्योंकि यह सस्ती हवाई शक्ति का खाका पेश करती है। यह चीज इसे दूसरी कंपनियों से अलग करती है।’’
केवल ये 2 दिग्गज कंपनियां ही प्रतिस्पर्धा में नहीं है, बल्कि अमेरिका की लॉकहीड मार्टिन की नज़र भी भारत पर ही है। यह कंपनी भारत को अपने एफ़-21 लड़ाकू जहाज़ बेचने की संभावनाओं को तलाश रही है। इतना ही नहीं, यह कंपनी तो यहां तक दावा कर रही है कि वह इन विमानों को सिर्फ भारत को ही बेचेगी। कंपनी के मुताबिक, यह लड़ाकू विमान अमेरिका जेट F-16 से काफी ज्यादा एडवांस है जो कम ईंधन में लंबी दूरी तय कर सकता है। इसके अलावा इस फाइटर जैट की क्षमता भी एफ़-16 से ज़्यादा है और कंपनी का दावा है कि इसे भारत की ज़रूरत के हिसाब से ही बनाया गया है। लॉकहीड मार्टिन कंपनी के रणनीतिकार विवेक लाल ने बताया कि ‘F-16 और F-21 में काफी अंतर है और इस आधुनिक विमान में लगा रडार पिछले विमान की तुलना में ज्यादा ताकतवर है’।
दुनिया की सभी बड़ी विमान कंपनियों में भारत को अपने आधुनिक हथियार बेचने की होड़ लगाना इस बात को दर्शाता है कि भारत इन सभी के लिए एक आकर्षक स्थान बन चुका है और हर कोई भारतीय वायुसेना के सामने अपने आप को सर्वश्रेष्ठ बताने पर तुला हुआ है। हालांकि, नई दिल्ली का यह शुरू से ही मानना रहा है कि वह उस कंपनी से हथियार कभी नहीं खरीदेगी जो उसके दुश्मनों को भी हथियार बेचती हो। ऐसे में स्वीडन कंपनी साब की चिंताएं बढ़ सकती है क्योंकि साब पाकिस्तान को समय-समय पर हथियार उपलब्ध कराती रहती है। बता दें कि फरवरी में बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद जिस ‘early warning system’ का इस्तेमाल कर पाक सेना ने भारत में घुसपैठ करने की योजना बनाई थी, वह उसे साब से ही हासिल हुआ था। ऐसे में इन सभी विमान कंपनियों को यह ध्यान रखना होगा कि अगर वह पाकिस्तान को अपने हथियार या तकनीक उपलब्ध कराती है तो भारत उनका बहिष्कार भी कर सकता है। भारत, पाकिस्तान की तुलना में एक बड़ा मार्केट है और भविष्य में भारत में संभावनाएं भी हैं, और आज दुनिया की सभी बड़ी कंपनियों का भारत को हथियार बेचने के लिए प्रतिस्पर्धा करना इसी बात का जीता-जागता प्रमाण है।