पीएम मोदी ने मलेशिया और तुर्की की नींद 20 दिनों में ही कर दी हराम

मलेशिया

भारत ने अपनी कूटनीति में बड़े बदलाव किये हैं और ये बदलाव मलेशिया और तुर्की पर भारत के कड़े रुख से स्पष्ट भी है। इन दोनों देशों ने भारत के आंतरिक मामले में न केवल हस्तक्षेप करने का प्रयास किया बल्कि कश्मीर राग अलापा। भारत ने तुर्की और मलेशिया दोनों को ही अपने तरीके से जवाब दिया है। भारत ने ये स्पष्ट कर दिया है कि कूटनीतिक स्तर पर उसे चुनौती देने वाले किसी भी देश को वो आसानी से छोड़ने वालों में से नहीं है। भारत किस तरह से दोनों देशों को जवाब दे रहा है उसे समझ लेते हैं।

दरअसल, अब भारत मलेशिया से आयात होने वाली वस्तुओं पर रोक लगाने पर विचार कर रहा है। सूत्रों का कहना है कि वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय मलेशिया से पाम ऑयल के आयात सहित कई उत्पादों के आयातों को नियंत्रित करने पर विचार कर रहा है और यदि सब कुछ सही रहा, तो इसे कुछ ही दिनों में अपनी औपचारिक सहमति भी देगा।

रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुल खाद्य तेल की खपत में पाम ऑयल का करीब दो तिहाई हिस्सा है। भारत प्रतिवर्ष 90 लाख टन पाम ऑयल का आयात करता है और जिन देशों से भारत आयात करता है उसमें मलेशिया और इंडोनेशिया प्रमुख हैं। इसी पाम ऑयल के आयात को अब भारत सरकार मलेशिया से हटकर अब इंडोनेशिया पर केन्द्रित करने पर विचार कर रही है। बता दें कि पिछले महीने भारत ने मलेशिया से आयात होने वाले पाम ऑयल पर इम्पोर्ट ड्यूटी को 5 प्रतिशत बढ़ा दिया था।

दरअसल, भारत ने यह निर्णय यूएन जनरल असेंबली में मलेशिया के राष्ट्रपति महातिर मुहम्मद द्वारा दिये गए विवादास्पद बयान के बाद लिया है। यूएन जनरल असेंबली में महातिर मुहम्मद ने कहा था, “जम्मू एवं कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के बावजूद, देश पर हमला किया गया है और कब्जा कर लिया गया है, ऐसा करने के कारण हो सकते हैं, लेकिन यह फिर भी गलत है।” उन्होंने आगे कहा था कि “भारत को चाहिए कि वह पाकिस्तान के साथ मिलकर काम करे और इस समस्या का समाधान करे”। इस बयान के बाद भारत ने न केवल मलेशिया को कड़ा जवाब दिया बल्कि मलेशिया से आयात होने वाली वस्तुओं पर आयात शुल्क भी बढ़ाया। अब भारत आयात होने वाली वस्तुओं को नियंत्रित करने पर विचार कर रहा है जो मलेशिया की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।

तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष रसेप तैयब एर्दोगन को भी कश्मीर मुद्दे पर पाक का समर्थन करने के लिए भारतीय कूटनीति का नया स्वरूप देखने को मिला। तुर्की ने भी यूएन जनरल असेंबली में कश्मीर मुद्दे पर बयान दिया था कि न्याय और समानता के आधार पर बातचीत के जरिये समस्या का समाधान किया जाए, ना कि टकराव के रास्ते से।

जम्मू कश्मीर क्षेत्र से जब अनुच्छेद 370 के विशेषाधिकार संबंधी प्रावधान हटाये गए, तभी से तुर्की पाक के सुर में सुर मिलाने लगा। पाक को समर्थन देने के पीछे तुर्की के दो उद्देश्य थे: भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर लज्जित करना और सऊदी अरब के प्रभुत्व से अलग अपना नया ‘खिलाफत’ स्थापित करना। परंतु दोनों ही जगह तुर्की को मुंह की खानी पड़ी। मलेशिया को छोड़कर किसी ने भी कश्मीर मुद्दे पर उसका साथ नहीं दिया, और फिर भारत ने एक के बाद एक ऐसे निर्णय लिए, जिससे तुर्की को ही लेने के देने पड़ गए।

एक ओर भारत ने कूटनीतिक स्तर पर तुर्की से आँख में आँख मिलाते हुये उसके विरोधी गुट के दो देश, साइप्रस और आर्मेनिया के राष्ट्राध्यक्षों से मुलाक़ात की, जो तुर्की को फूटी आँख नहीं सुहाते।

वहीं दूसरी ओर भारत ने आर्थिक तौर पर तुर्की को बड़ा झटका देते हुए उसकी एक कंपनी के साथ लगभग 2.3 बिलियन डॉलर की एक डील पर रोक लगा दी है। इससे स्पष्ट है कि तुर्की द्वारा पाक की भाषा बोलने के कारण अब उसे भारी वित्तीय घाटे से दो चार होना पड़ रहा है।

साइप्रस और आर्मेनिया के साथ नजदीकी बढ़ाकर भारत ने तुर्की को एक बेहद सख्त संदेश दिया था। इसके अलावा तुर्की की तरफ से पूर्वोत्तर सीरिया के इलाकों में किये जा रहे हमले पर भारत ने न केवल कड़ा ऐतराज जताया बल्कि उसे सीरिया के आंतरिक मामलों में दखलअंदाजी करार दिया।  विदेश मंत्रालय द्वारा जारी बयान में कहा गया था कि तुर्की की नीतियां क्षेत्र में शांति भंग कर आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई को कमजोर कर सकती है। एक ही तीर से भारत ने तुर्की की हेकड़ी और उसकी कूटनीतिक शक्ति को ध्वस्त कर दिया। अब मलेशिया के विरुद्ध जिस तरह से भारत ने अपनी कूटनीतिक शक्ति का प्रयोग किया है वो सराहनीय है।

इन दोनों उदाहरणों से एक बात तो साफ है, कि भारत एक कूटनीतिक महाशक्ति के रूप में उभर कर सामने आया है। इसे कमतर आँकने का अब कोई भी प्रयास करेगा, वो केवल मुंह की खाएगा, जैसे अभी तुर्की और मलेशिया के साथ हुआ है। कुल मिलाकर एक बात स्पष्ट है कि यह ‘नया भारत है’ – ये सिर्फ घर में घुस कर मारेगा ही नहीं, बल्कि बिना एक गोली चलाए अपनी कूटनीति से भारत विरोधियों को घुटने टेकने पर विवश भी कर देगा। इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर के नेतृत्व की जितनी प्रशंसा की जाये, वो कम ही होगी।

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