चुनावों में BJP के लिए सबक: राज्य के चुनावों में बदल जाती है वोटर्स की पसंद और मुद्दे

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PC: indiatoday

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को देशभर में बड़ा जनादेश मिला था। हरियाणा में जहां भाजपा को 10 में से 10 सीटें मिली थी, वहीं महाराष्ट्र में भी भाजपा और शिवसेना के गठबंधन ने 48 लोकसभा सीटों में से 41 सीटों पर जीत हासिल की थी। हालांकि, इन चुनावों के महज़ 5 महीनों बाद ही जब इन दो राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए तो भाजपा को इनमें जीत हासिल करने में बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। हरियाणा में जहां भाजपा को सिर्फ 40 सीटों से संतोष करना पड़ा तो वहीं भाजपा और शिवसेना के गठबंधन का प्रदर्शन भी उम्मीद से बेहद कम ही रहा। ऐसे में इन आकड़ों से यह स्पष्ट है कि लोकसभा चुनावों में जहां वोटर राष्ट्रीय मुद्दों को ध्यान में रखते हुए वोट डालता है तो वहीं स्थानीय चुनावों में उसकी तमाम प्राथमिकताएं बदल जाती हैं।

यूं तो अमित शाह और पीएम मोदी ने दोनों राज्यों में दर्जनों रैलियां की। हालांकि, उनके भाषणों में राष्ट्रीय मुद्दे ही हावी रहे। 2019 के लोकसभा चुनावों में सरकार बनने के बाद जब मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला लिया था तो देशभर में उत्साह देखने को मिला था। भाजपा ने इसे ही चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की। हालांकि, भाजपा को सफलता हाथ ना लग सकी। लोगों ने एनआरसी और 370 जैसे मुद्दों को सिरे से नकार दिया, जिसके कारण लोगों ने ना सिर्फ भाजपा को डंप किया बल्कि बेजान पड़ी कांग्रेस के प्राणों में भी जान फूंक दी।

वहीं क्षेत्रीय चुनावों में वोटर्स के लिए उसकी जाति और उसका निजी हित उसके मानसिकता पर हावी होता है। लोग अक्सर अपनी जाति और समुदाय के लोगों को ही महत्व देते हैं, और स्थानीय मुद्दों को देखते हुए वोटिंग करते हैं। वहीं राज्य सरकार का प्रदर्शन भी काफी मायने रखता है। उदाहरण के तौर पर लोकसभा के चुनाव के समय लोगों ने पीएम मोदी के चेहरे पर वोट डाला था, लेकिन हरियाणा के चुनावों में वोटर्स ने खट्टर के प्रदर्शन के आधार पर अपने मताधिकार का प्रयोग किया।

यही कारण है कि जहां लोकसभा चुनावों में क्षेत्रीय पार्टियों का वर्चस्व खत्म होता जा रहा है, तो वहीं विधानसभा चुनावों में अभी भी क्षेत्रीय पार्टियों का महत्व बरकरार है। हरियाणा में जहां नई पार्टी जननयाक जनता पार्टी को किंगमेकर का दर्जा दिया गया, तो वहीं महाराष्ट्र के चुनावों में एनसीपी भी एक मजबूत पार्टी बनकर उभरी। बता दें कि महज़ 5 महीने पहले हुए लोकसभा चुनावों में इन पार्टियों को करारी हार का सामना करना पड़ा था। और यह ट्रेंड सिर्फ इन्हीं राज्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि उड़ीसा में बीजू जनता दल और कर्नाटका में जेडीएस भी इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। मध्य प्रदेश और राजस्थान को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। विधानसभा के चुनावों में तो इन राज्यों के वोटर्स ने भाजपा को दरकिनार कर दिया लेकिन लोकसभा के चुनावों में इन्हीं वोटर्स ने भाजपा को एकतरफा समर्थन दिया और कांग्रेस भाजपा की आँधी में बह गयी।

भाजपा इन चुनावों में कहीं ना कहीं इन तथ्यों को समझने में चूक गयी और इसीलिए वह अति-आत्मविश्वास का शिकार हो गयी। पार्टी ने ना तो आक्रामक चुनाव प्रचार किया और न ही अपनी उपलब्धियों को लोगों तक पहुंचाने का काम किया। यही कारण था कि हरियाणा में भाजपा लोगों का मूड समझने में नाकामयाब रही। हालांकि, यह भाजपा के लिए एक अच्छा सबक जरूर हो सकता है क्योंकि हरियाणा में अब भी खट्टर सरकार ही बनने जा रही है।

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