महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार चरम पर है। भाजपा सत्ता वापसी के लिए पूरी तरह से तैयार है, और इसके लिए वह कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। भाजपा ने हाल ही में अपना चुनावी घोषणापत्र जारी किया है, जिसमें उसने कई चुनावी वादे निभाने को कहा है। इनमें प्रमुख हैं अगले 5 वर्षों में 5 करोड़ नौकरियाँ देना, 2022 तक सभी लोगों को घर देना और 16000 करोड़ के महाराष्ट्र पेयजल ग्रिड प्रोजेक्ट का निर्माण करना इत्यादि। परंतु जिस चुनावी वादे ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा, वो था सत्ता वापसी के बाद तीन महान व्यक्तित्वों को देश के सर्वोच्च सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित करना। भाजपा ने अपने घोषणापत्र में ये वादा किया है कि वह सत्तावापसी के बाद समाज सुधारक ज्योतिराव फूले, सावित्री बाई फूले और क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न से सम्मानित करेगी।
परंतु विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न देने की खबर मीडिया में जैसे ही आई, हमारे लेफ्ट लिबरल नेता बौखला गए, एक सुर में सभी विपक्षी नेताओं ने इस प्रस्ताव छाती पीटना शुरू कर दिया। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुये काँग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा, “सावरकर को महात्मा गांधी की हत्या के लिए आपराधिक मुकदमा झेलना पड़ा था। कपूर कमिशन ने इन आरोपों की जांच की थी। एक आर्टिक्ल में यह कहा गया था कि सावरकर उक्त आरोपों के अंतर्गत दोषी सिद्ध हुये थे। अब भगवान ही बचाए देश को”।
काँग्रेस के सुर में सुर मिलाते हुए हैदराबाद के सांसद एवं एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी सावरकर के बारे में भ्रामक तथ्य फैलाना शुरू कर दिया –
Some gyaan about this Anmol Ratan:
1 Implicated by Jeevan Lal Commission of Inquiry on Gandhi’s assassination
2 Advocated the use of rape as a political tool
3 Criticised Shivaji for not using rape as a political tool
4 Called himself the British’s “most obedient servant” https://t.co/QNmtwuaCxQ— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) October 15, 2019
5 Wrote SIX letters to British requesting release from prison
6 Looked up to Hitler & blamed Jews for the Holocaust
7 Muslims & other non-Hindus are to be kept outside the national fabric
8 Supported the 2 nation theory— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) October 15, 2019
अपने ट्वीट्स के जरिये असदुद्दीन ओवैसी ये कहना चाहते थे कि सावरकर अंग्रेज़ों के चाटुकार ही नहीं थे, बल्कि उन्होंने दुष्कर्म को एक ‘राजनीतिक अस्त्र’ के तौर पर समर्थन भी किया था। यही नहीं, उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि सावरकर हिटलर समर्थक थे और उन्होंने होलोकौस्ट के लिए यहूदियों को दोषी ठहराया।‘’
अब ऐसे में हमारे कम्यूनिस्ट नेता कहाँ पीछे रहते। कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता डी राजा ने भी इस निर्णय पर अपना दुख जाहिर करते हुए कहा– “यह हमारे लिए सबसे बड़ी विडंबना है कि जब हम गांधीजी की जन्म शताब्दी मना रहे हैं ऐसे समय पर भाजपा सावरकर को भारत रत्न देने की बात कर रही है।, जो उनकी हत्या में आरोपी थे। वो दिन भी शायद दूर नहीं होगा जब भाजपा गांधी के हत्यारे नाथुराम गोडसे को भारत रत्न देने की मांग करेगी। ये उनके एजेंडे का हिस्सा है”।
परंतु प्रश्न ये उठता है कि वीर सावरकर को लेफ्ट लिबरल बुद्धिजीवी इतनी हेय की दृष्टि से क्यों देखते हैं? यदि लेफ्ट लिबरल बुद्धिजीवियों की मानें, तो विनायक दामोदर सावरकर अंग्रेज़ों की चाटुकारिता करते थे, और अंडमान द्वीप पर स्थित सेलुलर जेल से निकलने के लिए उन्होंने दया याचिका दायर की थी। चूंकि सावरकर ने अपने क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए कथित रूप से अंग्रेज़ों से क्षमा याचना की थी, इसलिए उन्हें सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए, भारत रत्न देना तो बहुत दूर की बात रही।
परंतु सत्य तो कुछ और ही है। विनायक दामोदर सावरकर के बड़े भाई, गणेश बाबाराव सावरकर ने 1909 के विभाजनकारी मोर्ले मिंटो रिफ़ॉर्म्स के विरुद्ध सशस्त्र क्रान्ति का आह्वान किया था, जिसके अंतर्गत नासिक के चालाक टैक्स कलेक्टर जैकसन को अनंत लक्ष्मण कन्हेरे नामक युवक ने धाराशायी कर दिया था। यूं तो विनायक दामोदर सावरकर प्रत्यक्ष रूप से इस घटना में शामिल नहीं थे, परंतु ब्रिटिश सरकार ने उन्हें इस पूरी घटना की योजना बनाने का दोषी माना, और गिरफ्तार करने की योजना बनाई, परंतु वे अंग्रेज़ों के हाथ नहीं आना चाहते थे, और इसीलिए वे ब्रिटेन छोड़कर फ्रांस जाना चाहते थे लेकिन असफल रहे।
उनके लाख प्रयासों के बाद भी उन्हें हिरासत में लिया गया। जब ब्रिटेन से उन्हें भारत लाया जा रहा था तो फ्रांस के मार्सेल तट पर वे जहाज की खिड़की से कूद गए, परंतु उनके साथियों को पहुँचने में देर हो गयी, जिसके कारण उन्हे दोबारा गिरफ्तार किया गया। उन्हें भारत लाया गया, जहां ब्रिटिश सरकार ने उन्हें दोषी सिद्ध करते हुये कालापानी, यानि अंडमान के सेलुलर जेल में आजीवन कारावास की सज़ा दी।
सावरकर को 1911 से 1921 तक सेलुलर जेल में सश्रम कारावास की सज़ा झेलनी पड़ी। इस दौरान उन पर जितने अत्याचार ढाये गए, उन्हे बता पाना मुश्किल है। 10 वर्ष की कठोर सजा झेलने के बाद विनायक दामोदर सावरकर को सेलुलर जेल से तत्कालीन राजा जॉर्ज पंचम द्वारा जारी एमनेस्टी ऑर्डर के अंतर्गत रत्नागिरी जेल स्थानांतरित किया गया, जहां उन्होंने 3 वर्ष और बिताए। उन्हें 1924 में रिहा किया गया, और उनकी राजनीतिक गतिविधियों पर 1937 तक रोक लगा दी गयी थी। अब यह किस स्थिति में दया याचिका लगती है, क्या विपक्ष इस पर प्रतिक्रिया दे सकती है?
यहां दिलचस्प बात तो यह है कि जिस एमनेस्टी ऑर्डर के अंतर्गत सावरकर को रत्नागिरी जेल स्थानांतरित किया गया था, उस याचिका पर महामना मदन मोहन मालवीय और मोहनदास करमचंद गांधी ने स्वयं हस्ताक्षर किए थे। यदि हम विपक्ष के तर्क अनुसार चलें, तो महात्मा गांधी देशद्रोही सिद्ध हो जाएंगे? यही नहीं, जब विनायक दामोदर सावरकर के जन्मशताब्दी की तैयारी चल रही थी, तो उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने स्वयं आयोजंकर्ताओं को अपनी शुभकामनाएँ भेजी थीं, और अपने शासनकाल दौरान 1970 में उन्होंने सावरकर के स्मरण में डाक टिकट भी जारी किया। क्या इन्दिरा गांधी ने एक कथित ‘अंग्रेज़ी चाटुकार’ को इतना सम्मान देकर देशद्रोह नहीं किया?
रही बात विपक्ष के तर्कों की, तो इनमें से अधिकतर सफ़ेद झूठ है। ओवैसी के ट्वीट्स के ठीक उलट सावरकर ने न केवल विभाजन का विरोध किया था, बल्कि उन्होंने ये भी कहा था कि धार्मिक कट्टरता के आधार पर बना कोई भी देश एक अच्छा पड़ोसी कभी नहीं बन सकता। यही नहीं, जब यहूदियों ने विश्व युद्ध के बाद इज़राइल की स्थापना की, तो भारत की ओर से विनायक दामोदर सावरकर ही थे जिन्होंने सर्वप्रथम यहूदियों का समर्थन किया और उन्हें इजराइल की स्थापना के लिए शुभकामनाएँ भेजी।
कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियों ने विनायक सावरकर को केवल एक कट्टर नेता की छवि तक सीमित करने का प्रयास किया है। जब पिछले वर्ष काँग्रेस ने राजस्थान में सत्तावापसी की थी, तो उन्होंने वीर सावरकर के योगदान को राजस्थान बोर्ड के इतिहास के पाठ्यक्रम से ही नहीं हटाया, बल्कि उन्हें कायर भी घोषित करने का प्रयास किया। ऐसे में भाजपा के चुनावी वादे में फूले दंपत्ति सहित वीर सावरकर को सम्मानित करने का संकल्प न केवल एक सराहनीय प्रयास है, बल्कि हमारे वास्तविक नायकों को उनका उचित सम्मान देने की दिशा में एक अहम कदम भी है।