21 अक्टूबर को महाराष्ट्र और हरियाणा में हुए चुनावों के नतीजों के शुरुआती रुझानों के अनुसार भाजपा को दोनों राज्यों में उम्मीद से कम सीटें मिलती नज़र आ रही हैं। हरियाणा में जहां भाजपा को 40 के आसपास सीटों पर जीत मिलती नजर आ रही है, तो वहीं महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना का गठबंधन सत्ता में वापसी कर सकता है। भाजपा को राज्य में लगभग 100 सीटों पर बढ़त हासिल है, वहीं शिवसेना भी 60 से ज़्यादा सीटों पर जीत हासिल कर सकती है। दूसरी ओर महाराष्ट्र में कांग्रेस को भी 38 सीटों पर बढ़त हासिल है और एनसीपी अच्छा प्रदर्शन करते हुए 50 से ज़्यादा सीटों पर जीत हासिल कर सकती है। हालांकि, इन समीकरणों के बाद अब महाराष्ट्र की राजनीति में बड़े उलटफेर की संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता। लोकसभा चुनावों से लेकर अब तक शिव सेना और भाजपा में तनातनी और शिवसेना में आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने की लालसा की वजह से शिव सेना एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर भी सत्ता पर कब्जा कर सकती है।
288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 145 है और शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस मिलकर बड़ी आसानी से सरकार बना सकते हैं। एक तरफ जहां शिव सेना किसी भी सूरत में राज्य में अपना मुख्यमंत्री चाहती है, तो वहीं दूसरी तरफ है कांग्रेस और एनसीपी का भी सत्ता में हिस्सेदार बनने का लालच है। पिछले कुछ महीनों में शिवसेना और भाजपा की तनातनी किसी से छुपी नहीं है। शिवसेना ठाकरे परिवार के सबसे युवा नेता आदित्य ठाकरे को भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने की कोशिश करती नज़र आ रही है। शिव सेना के प्रवक्ता संजय राउत भी यह कह चुके हैं कि आदित्य ठाकरे को महाराष्ट्र की कमान संभालनी चाहिए। हालांकि, भाजपा का भी यह साफ कहना है कि देवेन्द्र फडणवीस ही एनडीए के सीएम चेहरा होंगे। ऐसे में अगर शिव सेना को अपना सीएम बनाना है तो उसके पास एक ही विकल्प बचता है, और वह है भाजपा से अलग होकर सरकार बनाना।
वहीं एनसीपी और कांग्रेस तो किसी भी तरह सरकार का हिस्सा बनने को बेताब हैं। कर्नाटका में तो कांग्रेस ने जेडीएस से बड़ी पार्टी होते हुए भी खुशी-खुशी सीएम की कुर्सी जेडीएस को सौंप दी थी। वर्ष 2018 के कर्नाटका विधानसभा चुनावों में जहां कांग्रेस को 78 सीटों पर जीत हासिल हुई थी, तो वहीं जेडीएस को सिर्फ 37 सीटों पर जीत में मिली थी। फिर भी कांग्रेस ने एचडी कुमारास्वामी को सीएम बनाने के समर्थन किया था। ऐसे में कांग्रेस अब महाराष्ट्र में भी शिवसेना का समर्थन करने से पीछे नहीं हटेगी, वहीं एनसीपी तो कांग्रेस के साथ है ही। साफ है कि अगर शिव सेना यहाँ अपना मन बदलती है और सीएम की कुर्सी के लिए अपने साथी भाजपा को डंप करने की योजना पर काम करती है, तो वह इसमें कामयाब हो सकती है। वैसे भी इस बार शिवसेना ने वर्ली विधानसभा सीट से आदित्य ठाकरे को मैदान में उतारा हुआ है और वे अपनी सीट पर जीत दर्ज करने की पूरी संभावना है।
बता दें कि साल 2010 की सालाना दशहरा रैली में आदित्य के दादा बाल ठाकरे ने उनके हाथ में तलवार थमाते हुए शिवसेना में उनकी औपचारिक एंट्री करवाई थी। उसके बाद उन्हें पार्टी की युवा इकाई युवा सेना का प्रमुख बना दिया गया। जल्द ही पार्टी से जुड़े अहम मामलों में आदित्य को शामिल किया जाने लगा, और इन चुनावों में शिव सेना ने 60 साल पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए आदित्य ठाकरे को चुनावी मैदान में उतारा है, जो कि ठाकरे परिवार में चुनाव लड़ने वाले पहले सदस्य हैं। ऐसे में शिवसेना उन्हें सीएम बनाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि शिव सेना भाजपा के साथ बनी रहती है या एनसीपी और कांग्रेस के साथ जाती है।