चीन और भारत का बार्डर विवाद दशकों पुराना है और चीन ने कभी भी इसे पूर्ण रूप से सुलझाने की दिशा में कदम नहीं उठाया। लेकिन जब पिछले महीने चीन के राष्ट्रपति शी जिंपिंग भारत दौरे पर आए थे तो प्रधानमंत्री मोदी ने बार्डर विवाद को जल्द से जल्द सुलझाने के बारे में बात आगे बढ़ाने और लद्दाख क्षेत्र में “लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल” पर स्थिति स्पष्ट करने की बात कही थी। मोदी-शी की बैठक के बाद ही इस दिशा पर काम होना प्रारंभ हो चुका है। लेकिन चीन यहाँ भी चाल चलने से बाज़ नहीं आ रहा है।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष के अंत या 2020 के शुरुआत में होने वाली 22वीं विशेष प्रतिनिधियों की बातचीत के दौरान Early Harvest Proposals के तहत, चीऩ उन बार्डर क्षेत्रों पर बातचीत करना चाहता है जहां भारत मजबूत स्थिति में है। चीऩ उन क्षेत्रों पर फिर से टालमटोल कर रहा है जहां वह मजबूत स्थिति में है जैसे लद्दाख का अकसाई चिन।
दरअसल, चीन ने बार्डर विवाद को सुलझाने के लिए इसी वर्ष अगस्त में Early Harvest Proposals भारत को पेश किया था जिसमें वह सिक्किम क्षेत्र के बॉर्डर विवाद को पहले सुलझाने की बात कही थी जहां भारत, भूटान और चीऩ का त्रिदेशीय बार्डर है और भारत, भूटान की आर्मी के साथ मजबूत स्थिति में है। इस Early Harvest Proposals पर भारत में सुरक्षा सलाहकार स्तर की बैठक होने वाली है जिसमें अजीत डोभाल और चीऩ के स्टेट काउंसलर वांग यी के बीच विशेष प्रतिनिधि स्तर की बातचीत होने की उम्मीद है।
रिपोर्ट के अनुसार चीऩ ने जिन सीमा विवादों पर बातचीत करने की पहली की है, वह सिक्क्म हैं जहां भारतीय सेना चुम्बी वैली में मजबूत स्थिति में हैं। एक पूर्व भारतीय सेना प्रमुख जोकि एक पूर्वी सेना कमांडर भी रहे हैं, उनके अनुसार, चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने उत्तरी सिक्किम के क्षेत्रों और बटांग ला के पास भारत-चीऩ -भूटान के त्रिदेशीय बार्डर क्षेत्र में अपने भारतीय समकक्ष को चुनौती दी है। इन दोनों ही स्थानों पर भारतीय सेना भगौलीक रूप से मजबूत स्थिति में हैं।
भारतीय सेना के पास ऊंचाई के साथ-साथ तिब्बत पर नजर रखने के लिए 20 किमी का स्पष्ट अवलोकन चैनल मौजूद है। यह चैनल नाथू ला के दक्षिण में डोका या डोकलाम क्षेत्र तक जाती है। इस क्षेत्र में चीन यह दावा करता है कि वह क्षेत्र गाइमोचेन है, जो बटांगला के दक्षिण में और जामफेरी रिज की शुरुआत में स्थित है।
भारतीय सेना में चीऩ पर नज़र रखने वाले यह बताते हैं कि चीन चुम्बी वैली में अपनी कमजोर स्थिति के कारण भूटान के पश्चिमी क्षेत्र में रोड का निर्माण भी कर रहा है। रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष के अंत या 2020 के शुरुआत में होने वाले इस मीटिंग से थोड़ी बहुत आशा है कि भारत और चीऩ के बीच बार्डर विवाद को सुलझाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया जा सकता है। लेकिन यह भी सच है कि चीन भारत के साथ अनसुलझे मुद्दे को सुलझाना ही नहीं चाहता है। इससे चीऩ को ही फायदा होता है क्योंकि वह अपने पड़ोसियों पर अपनी सामरिक ताकत से दबाव बनाने में सफल हो जाता है और किसी भी बातचीत में वह मजबूत स्थिति में रहता है। यही नीति वह भारत के खिलाफ भी प्रयोग करना चाहता है। ऐसे में चीन के इस प्रस्ताव पर भारत कोई तवज्जो नहीं दे रहा है। भारत को चीन का यह चाल पहले से ही मालूम है। इसीलिए चीन के राष्ट्रपति के भारत दौरे पर पीएम मोदी ने पहले लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल की स्थिति स्पष्ट करने को कहा था।
भारत और चीऩ के बीच लगभग 3500 किलोमीटर लंबी व अनसुलझी सीमा क्षेत्र है जिसमें 13 परस्पर विवादित पॉइंट्स और अन्य संवेदनशील पॉइंट्स हैं। भारत और चीन की ओर से बीते 40 सालों में इस विवाद को बातचीत के जरिए हल करने की कई कोशिशें हुईं। हालांकि इन कोशिशों से अब तक कुछ ख़ास सफलता हासिल नहीं हुई। अब जब चीऩ के न मानने के बावजूद भारत “लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल” को सुलझाने पर अधिक ज़ोर दे रहा है तब चीन इससे बचने के लिए सिक्किम को बीच में लाना चाहता है, जहां वह कमजोर स्थिति में है ताकि बार्डर विवाद बना रहे।
चीन को यह समझना होगा कि भारत अब वह जवाहरलाल नेहरू के समय वाला डिफ़ेंसिव भारत नहीं है। आज का भारत कड़े निर्णय लेने में पीछे नहीं हटता। अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत मजबूत स्थिति में है ऐसे में गेंद पूरी तरह से चीऩ के पाले में है कि वह बार्डर विवाद को सुलझाना चाहता है या यथास्थिति रखना चाहता है। अगर सुलझाना चाहता है तो उसे भारत के शर्तों के अनुसार बातचीत करनी होगी।