बिहार में सुशासन बाबू पूरी तरह फेल हो चुके हैं। उनके राज में ना तो राज्य में स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हुईं और ना ही राज्य तेज गति से विकास कर पाया। उनके कुशासन की वजह से बिहार की जनता भी मुख्यमंत्री नितीश से खुश नहीं है। इसको लेकर कल तक बिहार सरकार में नितीश कुमार की पार्टी JDU की साथी भाजपा के कुछ नेता भी उनपर हमलावर थे। गिरिराज सिंह से लेकर भाजपा प्रदेशाध्यक्ष तक, सब नितीश कुमार पर निशाना साध रहे थे। हालांकि, कल केंद्रीय गृह-मंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने एक टीवी चैनल को इंटरव्यू देते हुए एक ऐसा ऐलान कर दिया जिससे उनकी पार्टी के कई नेता ही हैरान रह गए। उन्होंने यह ऐलान किया कि वर्ष 2020 में बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए एनडीए का सीएम चेहरा नितीश कुमार ही होंगे। ऐसे में अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या अमित शाह का यह फैसला उनकी पार्टी भाजपा और इसके नेतृत्व वाली एनडीए के लिए घातक साबित हो सकता है? ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले पांच सालों के दौरान मुख्यमंत्री नितीश कुमार राज्य में एनडीए का नेतृत्व करने में पूरी तरह असफल रहे और वे दोबारा सूबे के मुख्यमंत्री बनने के योग्य बिलकुल नहीं हैं।
हालांकि, पिछले पांच सालों के दौरान जिस अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जिस अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा ने देश के ज़्यादतर राज्यों में जीत दर्ज़ की, वही अमित शाह इस बात को समझने में असफल दिखाई दे रहे हैं कि नितीश कुमार भाजपा जैसी विकासवादी पार्टी का चेहरा तो छोड़िए हिस्सा भी रहने के लायक नहीं है। गुरुवार को एक चैनल को इंटरव्यू देते हुए अमित शाह ने कहा “गठबंधन अटल है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में बिहार में एनडीए चुनाव लड़ेगा। राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही एनडीए को लीड करेंगे”।
भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह भला ऐसा कैसे कह सकते हैं। क्या वो इस बात से अवगत नहीं हैं कि ये वही नितीश कुमार हैं जिन्होंने बिहार की दो सबसे बड़ी और प्रमुख समस्याओं की तरफ कभी ध्यान नहीं दिया, और न ही कभी किसी दीर्घकालिक समाधानों के लिए कोई ठोस कदम उठाया। इसी वर्ष जून-जुलाई महीने में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के मामलों में भी यही देखने को मिला। इस बीमारी के कारण 100 से ज्यादा मासूमों की जानें गयी थी, लेकिन तब भी नितीश सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया था। हां, पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने का ऐलान जरूर किया था। ऐसे ही बिहार में बाढ़ को लेकर भी वे कुछ नहीं कर पाये। हर साल की तरह इस बार भी नितीश कुमार ने कोई ठोस कदम न उठाते हुए, सिर्फ मुआवजा देकर नुकसान की भरपाई करना ही जरूरी समझा और सभी प्रभावित परिवारों के बैंक खाते में 6000 रुपये भेजने का ऐलान किया था, और तो और बाढ़ के बाद फैलने वाली बिमारियों से निपटने के लिए भी नितीश सरकार ने कोई ख़ास तैयारी नहीं की।
बिहार को देश के बीमारू राज्य में गिना जाता है, और यहां की 80 प्रतिशत जनसंख्या को कृषि क्षेत्र ही रोजगार प्रदान कराता है। यह साफ दर्शाता है कि बिहार में उद्योग क्षेत्र बिल्कुल भी विकसित नहीं है। हालांकि, नितीश कुमार ने इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। राज्य में स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है और हर साल लाखों लोगों को रोजगार के लिए राज्य से बाहर जाना पड़ता है। अगर नितीश कुमार चाहते तो अपने राज्य में पर्यटन जैसे क्षेत्रों को बढ़ावा दे सकते थे जिससे न सिर्फ लोगों को राज्य में ही रोजगार मिलता परंतु राज्य की आर्थिक स्थिति भी बेहतर होती। बिहार में ऐसे पर्यटन क्षेत्रों की कोई कमी नहीं है। गया, मुंगेर, नालंदा, पटना, वैशाली और सीतामढ़ी जैसे शहर बड़े आकर्षक पर्यटक केन्द्रों में बदले जा सकते थे। इतना ही नहीं, गया में तो धार्मिक पर्यटन को आसानी से बढ़ावा दिया जा सकता था। गया में बौद्ध धर्म के संस्थापक भागवान बुद्ध को बोधज्ञान प्राप्त हुआ था और ये शहर बिहार के प्रसिद्ध स्थलों में से एक है। गया तीन तरफ से छोटी-छोटी पहाड़ियों मंगला-गौरी, श्रींगा-स्थान, राम-शीला और ब्रह्मायोनि से घिरा हुआ है जिसके पश्चिम की ओर फल्गु नदी बहती है। इस शहर को दुनियाभर के बौद्ध धर्म का अनुसरण करने वाले लोगों के लिए एक आकर्षक धार्मिक केंद्र में बदला जा सकता था। इसी तरह पटना शहर दुनियाभर के सिखों के लिए खास धार्मिक महत्व रखता है। पटना का गायघाट शहर ऐसा पवित्र स्थान है, जहां सिखों के तीन गुरुओं के चरण पड़े हैं। लेकिन इस शहर को भी बिहार सरकार कोई खास महत्व नहीं दिला सकी।
नितीश कुमार बेहद असफल मुख्यमंत्री साबित हुए हैं, और ऐसे में भाजपा को महाराष्ट्र की तरह ही यहां एक नए चेहरे को मैदान में उतारने पर विचार करना चाहिए था। महाराष्ट्र में भाजपा ने वर्ष 2014 के चुनावों के बाद देवेन्द्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाया और पिछले पांच सालों में उन्होंने राज्य का बखूबी नेतृत्व किया है। यही कारण है कि खुद वोटर्स भी उनपर अपना विश्वास जता रहे हैं और उनका दोबारा मुख्यमंत्री बनना बेहद आसान रहने वाला है। इसी तरह यूपी में सीएम योगी ने भी कानून व्यवस्था से लेकर राज्य में बाहरी निवेश को बढ़ावा देने तक, सभी विकासवादी नीतियों को अपनाया। ऐसे ही अमित शाह को बिहार में भी एक नए चेहरे की तलाश करनी चाहिए थी। परन्तु अमित शाह ने ऐसा क्यों नहीं किया इसे समझना मुश्किल है। हालांकि, भाजपा को इस मुद्दे पर एक बार फिर से विचार कर लेना चाहिए क्योंकि पिछले कुछ सालों में नितीश कुमार के प्रदर्शन से यह साफ है कि एनडीए द्वारा उनको फिर से सीएम चेहरा बनाया जाना एनडीए के घातक साबित होने वाला है।