आज आधुनिकता के दौर में सोशल मीडिया एक ताकतवर उपकरण या हथियार की तरह है जहां प्रत्येक दिन लेफ्ट लिबरल्स एक्सपोज होते रहते हैं। यहां केवल उनका एजेंडा ही नहीं बल्कि उनके अधपके ज्ञान की पोल भी खुलती रहती है। इसी अधपके ज्ञान के सहारे वह भारत के इतिहास, दर्शन और संस्कृति की खिचड़ी बना कर अभी तक पेश करते आये हैं। इसी कड़ी में एक और नाम जुड़ गया है और यह नाम है IIT दिल्ली की असिस्टेंट प्रोफेसर दिव्या द्विवेदी का। दरअसल, NDTV पर एक डिबेट शो में “Reclaiming Gandhi for our times” पर बहस के दौरान दिव्या द्विवेदी ने फराटेदार अंग्रेजी में यह कहा कि “Hinduism 20 वीं शताब्दी में अविष्कार में किया गया था”
https://twitter.com/ndtv/status/1180174865522806784?s=20
अब इस कथन से यह स्पष्ट है कि दिव्या द्विवेदी का हिंदुओं और सनातन धर्म के बारे में ज्ञान कितना गहरा हैं। और उन्हें भारतीय संस्कृति का कितना छिछला ज्ञान है जिसे वह देश की राष्ट्रीय मीडिया चैनल पर जा कर दावे के साथ कहती फिर रही हैं।
अब जब बात हिंदू Hinduism की हो रही है तो यह बताना आवश्यक है कि विदेशी इतिहासकार भारत की सभ्यता और सनातन धर्म पद्धति को देख कर आश्चर्यचकित हो गए थे और इसे अपने पश्चिमी विचारों के अनुसार परिभाषित कर एक परिभाषा में जकड़ने का प्रयास किया जिसे Hinduism का नाम दिया। यह कुछ और नहीं बल्कि 18वीं शताब्दी में पश्चिम इतिहासकारों द्वारा भारत पर थोपी गयी एक पश्चिमी विचारधारा है। ‘हिंदू’ या ‘भारतीय’ सभ्यता पश्चिम की तरह केवल एक विचार के ऊपर आधारित नहीं है। भारतीय या सनातन धर्म अपने अनेकत्व के कारण ही आज भी आगे बढ़ रहा है।
हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी शक्ति है उसका लचीलापन, ढलने और बदलने की उसकी प्रवृत्ति। आप ईश्वर को मानते हैं आप आस्तिक हैं, नहीं मानते तो नास्तिक हैं, ईश्वर के आकार को मानते हैं तो आप सगुण ब्रह्म मार्ग अपना सकते हैं, अगर आप ऐसा मानते हैं कि ईश्वर निराकार और सर्वव्यापी हैं तो आप निर्गुण ब्रह्म अपना सकते हैं। शिव को श्रेष्ठ मानते हैं तो शैव मार्ग है, विष्णु को श्रेष्ठ मानते हैं तो वैष्णव मार्ग है, शक्ति को श्रेष्ठ मानते हैं तो शाक्त मार्ग है, सब को समान मानते हैं तो सब की पूजा कर सकते हैं। अगर पद्धतियों और विचारों को समझना है तो वेद हैं, भावार्थ जानना है तो उपनिषद हैं, कथा रूप में समझना सरल है तो पुराण है, साहित्य चाहिए तो महाभारत और रामायण है, कर्म मार्ग को समझना है तो गीता है, तीर्थ पर जाना है तो हर गली में मंदिर है, चार धाम है, शक्तिपीठ हैं, ज्योतिर्लिंग है और अगर नहीं जाना है तो घर पर एक छोटा सा पूजाघर ही आपका तीर्थ बन सकता है। पढ़ने के लिए मंत्र हैं, समझने के लिए सूत्र हैं और गाने के लिए भजन है।
इतनी विविधता के बाद भी अगर कोई इसे Hinduism का नाम दे तो इससे उसकी औपनिवेशिक मानसिकता का ही दर्शन होता है, और उसकी भाषा का भी प्रदर्शन होता है कि जिसके पास सनातन सभ्यता के इस विविध स्वरूप के लिए शब्द ही नहीं है।
अब आते है इतिहास पर। आज भी इस बात पर विवाद है कि आखिर भारतीय सभ्यता या सरस्वती सभ्यता कितने वर्ष पुरानी है। पश्चिमी इतिहासकारों ने अपने सीमित ज्ञान से इस सभ्यता को सिंधु घाटी घोषित करते हुए इसका उद्भव केवल 1500 ईसा पूर्व के आस पास बता कर इस सनातन सभ्यता को आज से सिर्फ 3519 वर्ष पुरानी घोषित कर दिया था। हालांकि, जैसे-जैसे तकनीक विकसित होती जा रही है वैसे-वैसे शोध में भारत-भूमि की यह सभ्यता अनुमानों से भी पुरानी बताई जा रही है। इसे किसी एक व्यक्ति ने न तो शुरू किया न ही परिभाषित इसलिए इसे किसी एक तिथि से इसे आरंभित मानना सनातन सभ्यता का ही अपमान है। सरस्वती संस्कृति के कई तत्व वैदिक संस्कृति से मिलते हैं जैसे अग्नि, मातृ-देवी, पेड़ और जानवरों की पूजा, तेल के दीपक, लाल वर्णक, शंख का उपयोग, पानी के माध्यम से अनुष्ठान, शुद्धि और सबसे महत्वपूर्ण, योग तथा ध्यान। इसलिए वेदों की रचना का भी अनुमान लगाना उतना आसान नहीं है जितना की दिखाई देता है।
ऐसे में अगर IIT जैसे संस्थान की अस्सीस्टेंट प्रोफेसर किसी चैनल पर जा कर Hinduism का उद्गम 20वीं शताब्दी बताती है तो यह भारत की शैक्षणिक संस्थानों की विफलता ही है।
सनातन सभ्यता को समझने की असफल कोशिश करने के बाद पश्चिमी विद्वानों ने यूरोप और मध्य एशिया के अब्राहिमिक रिलिजन (Abrahamic religion) से सनातन धर्म की तुलना कर दी। वह पूरे शाश्वत व सनातन ज्ञान को महज एक पवित्र किताब या ग्रंथ तक सीमित करने की कोशिश कर रहे हैं। यह कभी सनातन धर्म का तरीका रहा ही नहीं है। हिन्दू धर्म एक खुला धर्म है जो विचार से नहीं अपितु विवेक से विकसित हुआ है। सनातन का शाब्दिक अर्थ तो जगजाहिर है। इसका सामान्य रूप से मतलब होता है ‘जो हमेशा से मौज़ूद रहा है’ यानि जिसकी उत्पत्ति और जन्म से किसी का कोई सरोकार न हो और वह वस्तु या व्यक्ति या सिद्धांत नित्य हो। यानि अजन्मा जैसा धर्म या जीवन पद्धति, जिसके विकास की धारा अनवरत रही हो। ये एक प्रवाहमय विचारधारा, सरल जीवन पद्धति, नैरंतर्य की सरिता के समान विशाल और गहरी है। न आदि न अंत, अविनाशी, उस सर्वशक्तिमान के समान अजेय और निरंतर है।
इसी तरह पांच तत्व यानि आकाश, वायु, जल, अग्नि और पृथ्वी भी शाश्वत सत्य की श्रेणी में आते हैं क्योंकि ये अपना रूप बदलते रहते हैं लेकिन कभी समाप्त नहीं होते हैं और जो धर्म इस सत्य की राह को दिखाए वही सनातन है।
लेकिन वही आज के लेफ्ट लिबरल्स अपने एजेंडे के लिए सनातन धर्म की तुलना अन्य धर्म से करते है और वह भी उन पश्चिमी विचारों से बंधे रह जाते हैं।
अब अगर ऐसे में IIT जैसे संस्थान की असिस्टेंट प्रोफेसर दिव्या द्विवेदी किसी चैनल पर जा कर Hinduism की उत्पति 20वीं शताब्दी बताती हैं तो यह भारत की शैक्षणिक संस्थानों की विफलता ही है। सनातन धर्म पर किसी प्रकार की टिप्पणी करने से पहले इन मैकाले के शिष्याओं और शिष्यों को भारत के वास्तविक इतिहास को भी पढ़ लेना चाहिए। केवल पश्चिमी परिभाषा के आधार पर किए गए सीमित अध्ययन से कहीं अधिक गूढ और गहरा है सनातन धर्म।