अमेरिकी वेबसाइट ने लगाया पेटा पर बिल्लियों और कुत्तों की हत्या का आरोप

पेटा

अपने आप को पशुओं के अधिकारों का संरक्षक कहने वाली पेटा यानि ‘पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स’ संस्था यूं तो दुनियाभर में पशुओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली संस्था के रूप में जाना जाती है, लेकिन कई बार पेटा अपने दोहरे मापदण्डों के कारण विवादों को निमंत्रण दे चुकी है। यह संस्था पशुओं के अधिकारों के लिए लड़ने की आड़ में कई सालों से अपने हिन्दू-विरोधी एजेंडे को बढ़ावा देती आई है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि खुद इस संस्था पर अमेरिका में मासूम जानवरों की जान लेने के आरोप लगते रहे हैं, और यह भी स्पष्ट हो चुका है कि यह संस्था पशुओं को बचाने के नाम पर खुद इन पशुओं की हत्या कर देती है।

इस संबंध में huffpost नामक एक अमेरिकी वेबसाइट पर वर्ष 2017 में एक लेख प्रकाशित हुआ था जिसमें तथ्यों के साथ यह दावा किया गया था कि PETA ना सिर्फ खुद जानवरों को मारता है बल्कि दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करता है। इसके लिए पेटा पशुओं से संबन्धित क़ानूनों का दुरुपयोग करता है। इस लेख के मुताबिक पेटा ने अमेरिका के वर्जीनिया में वर्ष 2014 में एक पालतू कुत्ते को बिस्किट का लालच देकर अपने पास बुलाया और उसे पकड़ लिया। वर्जीनिया के कानून के मुताबिक PETA जैसी संस्थाओं को सिर्फ आवारा पशुओं को ही अपने कब्जे में लेने की आज़ादी है, लेकिन पेटा ने यहां साफ तौर पर इस कानून का उल्लंघन किया था क्योंकि जिस कुत्ते को पेटा के कर्मचारियों ने कब्जे में लिया था, वह एक पालतू कुत्ता था’। इसके अलावा कानून के मुताबिक विशेष परिस्थितियों में पेटा जैसी संस्थाओं के पास कम से कम जानवरों को 5 दिन अपने पास रखने के बाद उन्हें जान से मारने का अधिकार है। हालांकि, पेटा ने उस कुत्ते को अपने कब्जे में लेने के महज़ कुछ घंटों में मार दिया। इसके बाद उस कुत्ते को पालने वाले परिवार ने पेटा पर केस किया और पेटा को उस परिवार को 50 हज़ार डॉलर का मुआवजा देना पड़ा।

इस लेख के मुताबिक ‘वर्ष 2014 में PETA ने सिर्फ उस कुत्ते को ही नहीं, बल्कि 2324 पशुओं को मौत के घाट उतार दिया था। जितने भी पशुओं को PETA ने अपने कब्जे में लिया था, उनमें से सिर्फ 1 प्रतिशत पशुओं को ही लोगों ने गोद लिया।  वर्ष 2015 में पेटा ने 1494 पशुओं को जान से मारा, जबकि वर्ष 2016 में 1442 जानवरों को मारा गया था’।

लेख के मुताबिक ‘PETA के कार्यकर्ता धोखे से, चोरी से या झूठ बोलकर जानवरों को उठाते हैं और उन्हें जहर देकर मार देते हैं। PETA ये दावा करता है कि जिन पशुओं को वह मारता है, उनमें से अधिकतर गोद लेने के लायक नहीं होते हैं, लेकिन तथ्य इस बात का समर्थन नहीं करते हैं’। आगे इस लेख में यह तक दावा किया गया है कि जिन पशुओं को पेटा अपने कब्जे में लेता है, उनमें से अधिकतर हट्टे-कट्टे होते हैं, लेकिन उन्हें भी कब्जे में लेकर जहर देकर मार दिया जाता है।

बता दें कि यह वही पेटा है जो भारत में हिंदुओं के त्योहारों को लेकर हल्ला मचाता है और उन्हें पशुओं के अधिकारों का हनन करने वाला बताता है। उदाहरण के तौर पर तमिलनाडु में हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाले जलीकट्टू त्यौहार के खिलाफ PETA ने सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी जमकर हल्ला मचाया था। वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया था और इसमें ‘एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया’ और पेटा इंडिया की सबसे बड़ी भूमिका थी।

इसके बाद जब वर्ष 2016 में केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर दोबारा से जलीकट्टू के आयोजन को मंजूरी दी थी, तब भी यह PETA ही था जिसने सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट में इस अधिसूचना के खिलाफ याचिका दायर की थी। परिणाम स्वरूप सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को अधिसूचना जारी करने के मात्र 5 दिन बाद ही उस अधिसूचना पर रोक लगा दी। इसके बाद वर्ष 2017 में राज्य सरकार ने अपने क़ानूनों में बदलाव करते हुए जल्लीकट्टू के आयोजन को वैध करार दिया, जिसके खिलाफ एक बार फिर पेटा सुप्रीम कोर्ट में गया लेकिन अब की बार पेटा को कोर्ट से निराशा हाथ लगी, और कोर्ट ने राज्य सरकार के कानून पर रोक लगाने से साफ मना कर दिया।

इसके बाद नवंबर 2017 में PETA की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से अपने कानून पर दोबारा विचार करने को कहा और वर्ष 2018 में इस पूरे मामले पर विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पेटा के आग्रह पर ही एक संविधान पीठ का गठन करने की घोषणा की। यानि जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगवाने के लिए PETA ने जी-तोड़ मेहनत लगा दी, लेकिन जब बात ईद के मौके पर पशुओं के अधिकारों के हनन की आती है तो यही पेटा मात्र एक ट्वीट से अपना पल्ला झाड़ने का काम करता है। अगर गौर किया जाये तो पेटा ने ईद के मौके पर दी जाने वाले मासूम जानवरों की बलि के खिलाफ इतने बड़े पैमाने पर कभी कोई अभियान नहीं चलाया। कुछ इसी तरह अमेरिका में आयोजित होने वाले बुल-राइडिंग कार्यक्रम को लेकर भी पेटा का दोहरा मानदंड सामने आया था। एक तरफ जहां पेटा जल्लीकट्टू पर रोक लगाने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रहा था, तो वहीं अमेरिका में उसी प्रकार के आयोजन ‘बुलराइडिंग’ पर रोक लगाने के लिए उसने इस तरह से कानूनी रास्ता अपनाने की नहीं सोची।

इन्हीं दोहरे मापदंडों की वजह से भारत में पेटा पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी कई बार उठ चुकी है। पेटा जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन हिंदुओं के खिलाफ जमकर अपना एजेंडा चलाते हैं, लेकिन खुद यह संस्था अमेरिका में हर साल हजारों पशुओं को मार देती है। ऐसा लगता है मानो इस संस्था का एकमात्र मकसद हिंदुओं के त्योहारों पर हल्ला मचाना है और भारी डोनेशन लेकर अपना हिन्दू-विरोधी एजेंडा चलाना है।

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