हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी भाजपा के सामने एक दुविधा आन खड़ी हुई थी क्योंकि पार्टी को पिछली बार की तरह स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। इस बार के चुनावों में भाजपा को 40 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा जिसके बाद सरकार बनाने के लिए दो विकल्प थे और वह था कि भाजपा या तो निर्दलीय के समर्थन से सरकार बनाये या दुष्यंत सिंह चौटाला की JJP के साथ मिल कर सरकार बनाये। अभी JJP की तरफ से अभी स्थिति स्पष्ट नहीं थी तभी हरियाणा में कांग्रेस की सरकार में मंत्री रहे गोपाल कांडा नाम के निर्दलीय MLA ने भाजपा का समर्थन करने का ऐलान कर दिया जिसके बाद चहुँ ओर भाजपा की आलोचना होने लगी। कारण था गोपाल कांडा पर पूर्व एयरहोस्टेस गीतिका शर्मा और गीतिका की मां की आत्महत्या को लेकर लगे आरोप।
तभी एक और खबर आई कि बुधवार रात को यह खबर आई कि गोपाल कांडा एक अन्य विधायक रंजीत सिंह और सिरसा से भाजपा सांसद सुनीता दुग्गल के साथ भारतीय वायुसेना बेस से एक चार्टेड विमान के जरिये शीर्ष भाजपा नेतृत्व से मिलने दिल्ली रवाना हो चुके थे। इसके बाद यह लगने लगा कि सच में ही भाजपा गोपाल कांडा जैसे आरोपी नेता का समर्थन लेने की इच्छुक है। लेकिन शुक्रवार देर रात गृह मंत्री अमित शाह ने JJP के दुष्यंत चौटाला से मुलाक़ात की जिसके बाद उप मुख्यमंत्री और 2 केबिनेट मंत्री पर दोनों ही पार्टियों में सहमति बनी जिसका ऐलान स्वयं अमित शाह ने किया।
Home Minister and BJP President, Amit Shah: Accepting the mandate by the people of Haryana, leaders of both parties (BJP-JJP) have decided that BJP-JJP will form the govt together, in Haryana. CM will be from BJP & Deputy CM will be from JJP. #HaryanaAssemblyPolls pic.twitter.com/qHKs0DR5zy
— ANI (@ANI) October 25, 2019
इससे गोपाल कांडा का भाजपा को समर्थन के विवाद पर भी विराम लग गया। भाजपा ने गोपाल कांडा जैसे नेता से खुद को अलग कर पार्टी की छवि को धूमिल होने से तो बचाया ही साथ ही साथ अपने जमीनी स्तर के नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी शर्मिंदगी झेलने से बचा लिया क्योंकि आम जनता के बीच तो कार्यकर्ता ही जाते है और जनता के सीधे सवालों का सामना करते हैं।
भाजपा के इस फैसले ने सभी विवादों को थाम दिया और इस तरह भाजपा ने एक और कचरे को अपनी पार्टी का सहयोगी बनाने से खुद को बचा लिया। पहले ही भारतीय जनता पार्टी अल्पेश ठाकोर जैसे नेताओं को शामिल कर अपनी किरकरी करवा चुकी है, और अब गोपाल कांडा भाजपा के लिए पैर पर कुल्हाड़ी मरने जैसा होता।
बता दें कि गोपाल कांडा और उनके भाई गोविंद कांडा हरियाणा की सियासत में नामी हैं। वर्ष 2012 में गोपाल कांडा का नाम सुर्खियों में आ गया। कांडा की खुद की एयरलाइंस में काम करने वाली एक महिला कर्मचारी गीतिका शर्मा ने आत्महत्या कर ली थी। इस केस के बाद कांडा कई तरह के आरोपों में घिर गए। विपक्ष ने उन्हें कई मोर्चों पर अपने निशाने पर लिया था। आत्महत्या के उस मामले में जो सुसाइड नोट मिला था उसमें गोपाल कांडा और उनकी ही कंपनी के एक अन्य कर्मचारी का नाम सामने आया था। घटना के 10 दिन बाद कांडा ने आत्मसमर्पण कर दिया था। कांडा को कई महीने तक जेल में भी रहना पड़ा था। आगे चलकर, गीतिका शर्मा की माँ ने भी आत्महत्या कर ली और कांडा पर एक बार फिर आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया।
ऐसे में अगर भाजपा गोपाल कांडा जैसे आरोपी नेता का समर्थन लेती और सरकार बनाती तो बटरफ्लाइ इफैक्ट देखने को मिलता यानि एक आरोपी नेता के आने से अच्छे चरित्र वाले नेता पार्टी से दूरी बना लेते। आयातित नेता बहुधा तृण मूल स्तर पर प्रसिद्ध होते हैं और प्रायः किसी जाति विशेष में अच्छी पैठ रखते हैं। इससे इनके जीतने की क्षमता बढ़ जाती है। परंतु इससे एक सीधी और स्पष्ट हानि भी है और वह है जनता और कैडर का स्वाभाविक आक्रोश। कैडर का आक्रोश भी स्वाभाविक है क्योंकि जिस नेता के समर्थकों से वे लोहा लेते आए हैं उन्हें उनकी प्रशंसा करने पर बाध्य होना पड़ता है। प्रायः कैडर के लोग या तो पार्टी छोड़ देते हैं या पार्टी के प्रति उदासीन हो जाते हैं।
भाजपा अभी तक good governance देने के वादे पर कई राज्यों में प्रभावशाली जीत दर्ज कर रही है। लेकिन ऐसे दागी नेता के साथ गठबंधन करके भाजप अपने मूल सिद्धांतों के साथ समझौता करती। इससे चुनावी स्तर पर भी पार्टी के लिए गंभीर समस्या बन सकता था। पिछले कुछ वर्षो में यह देखा गया है कि भाजपा चुनाव जीतने के लिए अक्सर ही कई दागी नेताओ को स्वीकार चुकी थी लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में मिली सीटों ने शीर्ष नेताओं को जरूर जगाने का काम किया होगा। उन्हें यह समझ आया होगा कि दागी नेताओं को आयात करने का सीधा असर जनता के बीच बनी छवि और चुनाव के दौरान वोट पर भी पड़ता है।
भाजपा को यह समझना चाहिए कि उसे विरोधी दलों पर एक बड़ा लाभ मिलता है है क्योंकि उसे एक मजबूत वैचारिक आधार वाली पार्टी के रूप में देखा जाता है। परंपरागत रूप से पार्टी के वैचारिक मूल्यों को अनदेखा कर दागी राजनीतिक नेताओं को आयात करने कारण, भाजपा धीरे-धीरे अपने वैचारिक आधार को खतरे में डाल रही है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव परिणामों ने प्रदर्शित किया कि कैसे भाजपा की विपक्षी पार्टियों को तोड़ने की रणनीति से हमेशा वांछनीय परिणाम नहीं मिलता है। कांडा का समर्थन नहीं लेना सही निर्णय है और आगे भी बीजेपी को अब इससे बचने की जरूरत है।