नेहरूवादी समाजवाद की सांझी विरासत है HAL, कर्मचारी बैठे हैं हड़ताल पर लेकिन प्रबंधन मौन

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डिफेंस PSU की निष्क्रियता एक बार फिर सामने आ रही है। हिन्दुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड यानि HAL से खबर आई है कि उनके नौ यूनिट में काम कर रहे कई कर्मचारी एक अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठ गए हैं। उन्होंने मजदूरी में बढ़ोत्तरी जैसी कई मांगें सामने रखी हैं। अखिल भारतीय HAL ट्रेड यूनियन समन्वय कमेटी यानि AIHALTUCC के मुख्य संयोजक सूर्यदेवरा चन्द्रशेखर का कहना है, “भारत भर में HAL के सभी नौ यूनिट्स में हड़ताल चल रही है। 10000 से भी ज़्यादा कर्मचारी हड़ताल पर बैठे हैं और काम इसी कारण ठप पड़ा है”।

उधर प्रबंधन ने सफाई दी है कि वे एक शांतिपूर्ण समाधान की ओर काम कर रहे हैं। HAL के प्रबंधन के अनुसार, “प्रबंधन के कई प्रयासों के बाद भी यूनियन ने अड़ियल रवैय्या अपनाया है और उन्होंने हमारा प्रस्ताव स्वीकार न कर अपनी अनिश्चितकालीन हड़ताल जारी रखी है। प्रबंधन ने अपील भी की थी कि अनिश्चितकालीन हड़ताल पर न जाकर इस समस्या का उचित समाधान निकालें”।

ये हड़ताल डिफेंस पीएसयू के बारे में आम भारतीयों की धारणाओं को और भी प्रबल करता है। कई पब्लिक सेक्टर कंपनियों की तरह ये भी एक सफ़ेद हाथी सिद्ध हुआ है। पिछले वर्ष रक्षा मंत्रालय द्वारा कराये गए एक ऑडिट के अनुसार मूल कंपनी द्वारा निर्मित सुखोई जेट से 150 करोड़ रूपए से ज़्यादा की लागत में HAL ने उक्त एयरक्राफ्ट का निर्माण किया है। रिव्यू के अनुसार, “रूस में निर्मित एक सुखोई 30 MKI 269.77 करोड़ रुपये में बनकर तैयार होती, जबकि भारत के HAL में निर्मित यही एयरक्राफ्ट 417.69 करोड़ रुपये में बनकर तैयार होती है, जो मूल लागत से लगभग 150 करोड़ रुपये ज़्यादा है”।

एचएएल द्वारा मूल लागत से ज़्यादा ऊंचे दाम पर एयरक्राफ्ट बनाकर देश के राजकोष को नुकसान पहुंचाना कोई नई बात नहीं है। 2004 में भारत ने पायलटों के प्रशिक्षण के लिए ब्रिटेन में निर्मित हॉक जेट खरीदे थे, जिनकी मूल लागत 78 करोड़ रूपए थी। भारत सरकार ने ब्रिटिश समकालीनों के साथ एक डील की, जिसके अंतर्गत 24 जेट को fly away की स्थिति में खरीदा गया और 38 जेट्स का निर्माण HAL द्वारा होना था। परंतु एचएएल ने इसी जेट का निर्माण 88 करोड़ रुपये में किया, जबकि किफ़ायती दाम पर श्रम की कोई कमी नहीं थी। इससे सिद्ध होता है कि HAL वास्तव में कितना अकर्मण्य है, जिसके कारण मूल लागत से कहीं ऊंचे दामों पर यहाँ निर्माण होता है और कई मामलों में एयरक्राफ्ट समय पर पहुंचाने में HAL काफी देर भी करती है, जो ये डिफेंस पीएसयू के लिए एक गंभीर समस्या है।

इसी वर्ष कुछ समय पहले पूर्व वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ ने एचएएल की इसी नाकामी पर चुटकी ली थी। यहाँ पर ये ध्यान देना आवश्यक है कि एचएएल ने कई बार आईएएफ़ को रक्षा सामग्री डिलीवर करने में देर की है। सेंटर फॉर एयर पावर स्टडीज़ में दिये एक लेक्चर में पूर्व वायुसेना प्रमुख धनोआ ने कहा था, “आईएएफ़ ने कभी भी गोलपोस्ट नहीं शिफ्ट किया है, जैसा उस पर आरोप लगाया है। सामग्री पहुँचने में इतना समय लगता है कि हमारी तकनीक और अस्त्र-शस्त्र सब पुराने हो जाते हैं। इस इवेंट के दौरान धनोआ ने पूछा- ‘हमने HAL को छूट दी लेकिन क्या युद्ध के समय दुश्मन का सामना करेंगे तो वह हमें छूट देगा’

उन्होने आगे यह भी कहा, “कॉम्बैट में कोई रजत पदक नहीं होता। या तो आप विजयी होते हो या फिर पराजित होते हो”। वायुसेना के पूर्व प्रमुख की बातों से ये साफ पता चलता है कि एचएएल की अकर्मण्यता ने देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को कितना नुकसान पहुंचाया है।

पिछले कुछ वर्षों में एचएएल की निष्क्रियता खुलकर सामने आई है। देश तो नेहरूवाद की जकड़ से मुक्त हो चुका है, और ऐसे में डिफेंस पीएसयू की ऐसी लापरवाही और अक्षमता को हल्के में नहीं लिया जा सकता। एचएएल में एक विशाल हड़ताल की खबरें बताती हैं कि एचएएल में किसी सामग्री के निर्माण में इतनी ऊंची लागत क्यों लगती है।

इसी से यह भी पता चलता है कि इतने वर्षों की सहायता के बाद भी एचएएल उचित एयरक्राफ्ट्स बनाने में क्यों असफल रहा है, फिर चाहे वो चौथी पीढ़ी का एयरक्राफ्ट हो, या पांचवीं पीढ़ी का। एचएएल की यह लापरवाही सीधे तौर पर नेहरूवादी समाजवाद का प्रतीक है, जिससे जितना जल्दी छुटकारा पा सकें, उतना ही देश के लिए हितकारी होगा।

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