अमेरिका के सीरिया से हटते ही तुर्की ने अब अपने हित साधने के लिए सीरिया में हमला करना शुरू कर दिया है। कुछ दिनों पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प और तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन के बीच फोन पर बात हुई थी, जिसके बाद तुर्की ने कहा कि वह अमेरिका के जाने के बाद सीरिया में अपनी फौज भेजेगा। तुर्की वैसे तो वहाँ पर आतंकवाद को खत्म करने की बात कहकर सीरिया में अपनी फौज भेज रहा है, लेकिन असल में तुर्की ISIS के खिलाफ लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले कुर्द लड़कों पर हमला करना चाहता है, और खुद तुर्की के राष्ट्रपति भी इस बात को कह चुके हैं। सीरिया पर तुर्की के इस हमले की दुनियाभर में आलोचना हो रही है और भारत, फ्रांस और इज़राइल जैसे देशों ने तुर्की के इस ‘एकतरफा’ फैसले की कड़ी निंदा की है।
दरअसल, सीरिया में पिछले 8 साल से जारी गृह-युद्ध की वजह से वहां से लगभग 36 लाख लोग तुर्की में आकर बसे हुए हैं। अब तुर्की इन लोगों को सीरिया के पूर्वोत्तर इलाकों में बसाना चाहता है। पूर्वोतर वही इलाका है जहां पर सीरिया के कुर्द लड़ाकों का कब्जा है, और ये कुर्द लड़ाके अमेरिका के साथी माने जाते हैं। ऐसे में हर किसी के जहन में यही सवाल है कि क्या अमेरिका ने ISIS के खिलाफ जंग में साथ रहे अपने कुर्दी साथियों को अकेला छोड़ दिया है। अभी कुर्द लड़ाकों को लेकर अमेरिकी नीति थोड़ी असपष्ट दिखाई दे रही है क्योंकि एक तरफ अमेरिका तुर्की को यह धमकी दे रहा है कि अगर वह सीरिया में अपनी सीमा पार करता तो है तो वह उसकी अर्थव्यवस्था को तबाह कर देगा, दूसरी तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प कह रहे हैं कि कुर्द लड़ाकों ने दूसरे विश्व युद्ध के समय उनका साथ नहीं दिया था और अब वे सिर्फ अपनी लड़ाई ही लड़ रहे हैं। कुर्द लड़ाकों के संबंध में अमेरिकी की नीति को लेकर अभी अमेरिकी अधिकारी भी संशय में हैं।
बता दें कि सीरिया के ये कुर्द लड़ाके तुर्की को फूटी आँख भी नहीं सुहाते हैं। ये कुर्दी फाइटर्स सीरिया में अपना एक अलग देश कुर्दिस्तान बनाना चाहते हैं, और तुर्की के इस हिस्से पर भी अपना ही राज चाहते हैं। इसलिए तुर्की इन कुर्दी संगठनों को आतंकी संगठन मानता है और इनके खिलाफ अब कार्रवाई कर रहा है।
हालांकि, तुर्की की इस कार्रवाई से सीरिया में एक बार फिर बड़े पैमाने पर मानवीय संकट पैदा हो गया है। लोग बड़ी संख्या में विस्थापित हो रहे हैं। तुर्की का कहना है कि उसने कुर्दों के कई ठिकानों पर नियंत्रण कर लिया है और बड़ी संख्या में कुर्द लड़ाके मारे भी गए हैं। हमले के बीच हज़ारों लोगों का पलायन हो रहा है और कुर्दों का दावा है कि कई आम नागिरक मारे गए हैं। तुर्की का कहना है कि वो कुर्द लड़ाकों को हटाकर एक ‘सेफ़-ज़ोन’ तैयार करना चाहता है, जहां लाखों सीरियाई शरणार्थी भी रहते हैं। तुर्की के इन्हीं फैसलों के कारण अब इस इलाके में फिर एक बार अस्थिरता फैलने का डर बढ़ गया है।
इस पूरे मुद्दे पर अमेरिका के रुख से खुद अमेरिका के रिपब्लिकन पार्टी के नेता भी नाराज़ चल रहे हैं। डोनल्ड ट्रंप के कट्टर समर्थक माने जाने वाले सीनेटर लिंज़ी ग्राहम ने भी ट्रंप के इस फ़ैसले की निंदा की है। उन्होंने कहा, “अमेरिका ने अपने सहयोगी को बेशर्मी से छोड़ दिया।” ग्राहम ने कहा, “प्रशासन ने तुर्की के ख़िलाफ़ कोई भी कार्रवाई करने से इंकार कर दिया है। ऐसे में मैं दोनों पार्टियों से मज़बूत समर्थन की उम्मीद करता हूं।” इसके अलावा यूएन में अमेरिका की पूर्व स्थायी प्रतिनिधि निकी हेली ने भी कहा है कि अमेरिका को कुर्द लड़ाकों का साथ नहीं छोड़ना चाहिए।
America is better than this. Please stand up to Turkey, Mr. President.
— Lindsey Graham (@LindseyGrahamSC) October 9, 2019
बता दें कि तुर्की पर समय-समय पर सीरिया और इराक में आतंकी संगठन ISIS का समर्थन करने का आरोप लगता रहता है। सीरिया के लड़ाके यह कहते रहे हैं कि तुर्की ISIS को हथियार भी सप्लाई करता था। 25 अगस्त, 2015 को तुर्की के एक मीडिया संगठन ने यह बड़ा खुलासा किया था कि अक्काकाले सीमा पर तुर्की की ओर से ISIL को बड़े पैमाने पर हथियार ‘ट्रांसफर’ किए गए हैं। इसके अलावा नवंबर 2015 में रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने भी तुर्की पर कुछ इसी तरह के आरोप लगाए थे। तुर्की ISIS के जरिये सीरिया पर अपना प्रभाव जमाना चाहता था, लेकिन कुर्द लड़ाकों ने isis को खत्म करने में बड़ी भूमिका निभाई। आज भी isis के लिए लड़ने वाले हजारों आतंकी और उनके परिवार-जन इन्ही कुर्द लड़ाकों के कब्जे में हैं। ऐसे में अगर तुर्की की योजना सफल होती है तो इस बात की पूरी आशंका है कि ISIS दोबारा अपने पैर सीरिया में जमा सकता है।