अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी फजीहत कराने के बाद पाकिस्तान को विश्व के कोने-कोने में मात खानी पड़ रही है। पहले पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव के मामले में पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय अदालत में चित करने के बाद बुधवार को भारत सरकार को हैदराबाद के निजाम की करोड़ों की संपत्ति को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच दशकों से चले आ रहे लंबे विवाद में जीत मिली है। इन दोनों ही मामलों में भारत का प्रतिनिधित्व मशहूर वकील हरीश साल्वे कर रहे थे। ब्रिटेन की कोर्ट ने भारत के पक्ष में फैसला सुनाते हुए पाकिस्तान को 70 साल से चले आ रहे केस में झटका दिया है। कोर्ट ने आदेश दिया है कि इस संपत्ति पर भारत और निजाम के उत्तराधिकारियों का हक है। लंदन के रॉयल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस में जस्टिस मार्कस स्मिथ ने 140 पेज के फैसले में 3.5 अरब पाउंड पर भारत और निजाम के अधिकार को स्वीकार किया।
बता दें कि इस मामले में तीन पक्ष थे जिनमें भारत सरकार और निजाम एक तरफ और पाकिस्तान एक तरफ था। पाकिस्तान की तरफ से क्यूसी खावर कुरैशी, निजाम की तरफ से पैरवी कर रहे थे पॉल हेविट और भारत का पक्ष रख रहे थे हरीश साल्वे।
इस विवाद की शुरुआत वर्ष 1947 से हुई थी। जब भारत स्वतंत्र हुआ था तब भारत दो भागों में विभाजित भी हुआ था और इस विभाजन के कारण देश के संसाधनों का भी बंटवारा हुआ था। 3 रियासतों को छोड़कर सभी भारत में विलय के लिए राजी हो चुके थे। जो क्षेत्र अभी भी भारत से नहीं जुड़े थे, उनमें प्रमुख थे, कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद। इनमें हैदराबाद जनसंख्या, क्षेत्रफल एवं सकल घरेलू उत्पादन की दृष्टि से सबसे बड़ी रियासत था। साथ ही हैदराबाद का निजाम उस समय विश्व के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक था। लेकिन भारत के कड़े रुख को देखते हुए 20 सितंबर 1948 को सातवें निजाम के दरबार में वित्त मंत्री रहे नवाब मोइन नवाज़ जंग ने 10 लाख पाउंड (क़रीब 89 करोड़ रुपए) की रक़म ब्रिटेन में पाकिस्तान के तत्कालीन उच्चायुक्त हबीब इब्राहिम रहिमतुल्ला के लंदन स्थित बैंक खाते में जमा करा दिया था। इसके बाद जैसे ही हैदराबाद के सातवें निजाम को पैसों के ट्रांसफर के बारे में पता चला तो उन्होंने पाकिस्तान से कहा कि उनके पैसे जल्द लौटा दे, लेकिन रहिमतुल्ला ने पैसे वापिस देने से मना कर दिया और कहा कि ये अब पाकिस्तान की संपत्ति बन गई है।
इसके बाद 1954 में सातवें निजाम और पाकिस्तान के बीच एक क़ानूनी लड़ाई शुरू हुई। निजाम ने अपने पैसे वापस पाने के लिए यूके के हाई कोर्ट का रुख़ किया। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार हाई कोर्ट में मामला पाकिस्तान के पक्ष में चला गया। इसके बाद निजाम को कोर्ट्स ऑफ़ अपील में जाना पड़ा जहां निजाम की जीत हुई, लेकिन इसके बाद पाकिस्तान ने आगे बढ़ कर उस दौर में यूके के उच्चतम न्यायालय, हाऊस ऑफ़ लार्ड्स का दरवाज़ा खटखटाया। 19 जुलाई 1955 को पाकिस्तान ने इस मुकदमे का यह कहकर विरोध किया कि ब्रिटिश कोर्ट उसकी संप्रभुता में दखल दे रही है।
वर्ष 1957 हाऊस ऑफ़ लार्ड्स ने पाकिस्तान के पक्ष में अपना फ़ैसला दिया और उसकी दलील को सही ठहराते हुए कहा कि निज़ाम पाकिस्तान पर मुक़दमा नहीं कर सकते। लेकिन इसके साथ ही हाऊस ऑफ़ लार्ड्स ने 10 लाख पाउंड की इस विवादित राशि को भी फ्रीज़ कर दिया। पाकिस्तान की मांग को मानते हुए उसे इस रकम जो ‘हैदराबाद फंड’ के नाम से चर्चित हो चुकी थी, उसे सॉवरेन इम्युनिटी यानी ‘संप्रभु सुरक्षा’ दे दी गई। हाउस ऑफ लॉर्डस के फैसले के मुताबिक अब इस पर ब्रिटेन की अदालत में मुकदमा नहीं चल सकता था और खाता तभी अनफ्रीज हो सकता था जब तीनों पक्ष किसी सहमति पर पहुंच जाएं।
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार हाउस ऑफ लॉर्डस के फैसले के बाद से ही हबीब इब्राहिम रहिमतुल्ला के खाते में ट्रांसफर किए गए निजाम के पैसे नैटवेस्ट बैंक के पास हैं। अब यह राशि बढ़ते-बढ़ते 3.50 करोड़ पाउंड (तीन अरब आठ करोड़ 40 लाख रपए) हो गई है।
शुरुआती विवाद मीर ओसमान अली खान और पाकिस्तान के बीच था। लेकिन बाद में भारत ने भी इस संपत्ति पर यह कहते हुए दावा ठोक दिया कि यह हैदराबाद की जनता का पैसा है और रियासत का विलय भारतीय संघ में हो चुका है इसलिए पूरी रकम भारत को मिलनी चाहिए। 1965 में निजाम इन पैसों पर हक के लिए भारत के साथ आ चुके थे। 1967 में हैदराबाद के सातवें निज़ाम की मौत हो गई लेकिन पैसों को वापस पाने की ये क़ानूनी लड़ाई इसके बाद भी जारी रही और उनके उत्तराधिकारियों ने इस लड़ाई को आगे बढ़ाया।
‘हैदराबाद फंड’ के नाम से जाना जाने वाला यह रुपया वर्ष 2008 में फिर चर्चा में आया। उस समय भारत सरकार ने पाकिस्तान को प्रस्ताव दिया कि निजाम के वंशजों के साथ मिलकर इस फंड के बंटवारे पर सहमति बनाई जाए। लेकिन पाकिस्तान ने यह प्रस्ताव मानने से मना कर दिया। इसके बाद उसने खुद 2013 में हैदराबाद फंड पर अपना अधिकार जताने के लिए लंदन हाईकोर्ट में एक अपील दाखिल करने की कार्रवाई शुरू कर दी। और यहीं पाकिस्तान ने गलती कर दी और अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार ली। पाकिस्तान सरकार को पता चला कि ब्रिटेन में जो प्रावधान हैं उसके चलते यह प्रक्रिया शुरू कर उसने खुद ही हैदराबाद फंड पर ‘संप्रभु सुरक्षा’ का अधिकार खो दिया। इसके बाद कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई और इस वर्ष दो हफ्तों तक चला ट्रायल जून में खत्म हुआ था और अब जाकर इस मामले में फैसला सुनाया गया है। लंदन की रॉयल कोर्ट ऑफ जस्टिस (हाई कोर्ट) के जस्टिस मार्कस स्मिथ ने अपने फैसले में कहा कि हैदराबाद के सातवें निजाम उस्मान अली खान इस राशि के मालिक थे। उनके बाद उनके वंशज और भारत सरकार हकदार हैं। इस पर पाकिस्तान का दावा उचित नहीं है।
निजाम हैदराबाद का पक्ष रख रहे वकील पॉल हेविट ने कहा था, “साल 2016 में पाकिस्तान ने ये दलील पेश की कि साल 1947 से 48 के बीच हथियार पाकिस्तान से हैदराबाद लाए गए थे। ये 10 लाख पाउंड उसी की क़ीमत थे।
पाकिस्तान ने इस मामले में अब तक दो दलीलें पेश की हैं- पहले उनका कहना था कि ये पाकिस्तान को निज़ाम का तोहफ़ा था और लेकिन बाद में कहा कि हथियारों की ख़रीद के एवज़ में ये पैसा ट्रांसफ़र किया गया था। निज़ाम के पक्ष से हमने ये दलील पेश की थी कि पाकिस्तान की दोनों दलीलों को साबित करने के लिए किसी तरह के सबूत पेश नहीं किए गए हैं। वो चर्चा ये करना चाहते हैं कि पाकिस्तानी कूटनीतिज्ञ इसमें शामिल हैं इसलिए इस दलीलों पर विश्वास किया जाना चाहिए लेकिन ये साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं पेश किए गए हैं कि हथियारों की ख़रीद के लिए पैसों का भुगतान हुआ था”।
इस पूरे मामले में भारत का पक्ष भारी रहा और पाक को हार मिली है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि मशहूर वकील हरीश साल्वे की कुलभूषण जाधव केस के बाद यह दूसरी हाई प्रोफाइल जीत है। यूके कोर्ट में निजाम की संपत्ति और इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में इंडियन नेवी के पूर्व अफसर जाधव से जुड़े केस यानी दोनों ही हाई प्रोफाइल मामलों में हरीश साल्वे भारत के वकील थे। हरीश साल्वे ने इतने जटिल मामले में सिर्फ 3 महीनों में 140 पेज लंबा फैसला लिखने के लिए जस्टिस मार्कस स्मिथ की तारीफ की। आईसीजे में जाधव केस का उल्लेख करते हुए साल्वे ने कहा, ‘हमारे पास अच्छा केस था। दोनों ही बार हम जीते।’
खास बात यह है कि इन दोनों ही मामलों में खावर कुरैशी क्यूसी पाकिस्तान के वकील थे। दोनों ही मामलों में भारत की जीत हुई। निजाम की संपत्ति पर भारत का दावा मान्य हुआ जबकि द हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने कुलभूषण जाधव की पाकिस्तान द्वारा फांसी पर अंतरिम रोक लगा दी थी और कुलभूषण को भारत का कॉन्सुलर ऐक्सेस देने की बात कही थी। वर्ष 2017 में जब आईसीजे ने भारत के पक्ष में फैसला सुनाया था, तब हरीश साल्वे की इसमें सबसे बड़ी भूमिका थी। तब उन्होंने सिर्फ 1 रुपए की फीस लेकर भारत के पक्ष को आईसीजे के सामने रखा था और आईसीजे में पाकिस्तान को एक्सपोज किया था। तब हरीश साल्वे ने बताया था कि कैसे पाकिस्तान ने कुलभूषण को काउन्सलर एक्सेस ना देकर अंतराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन किया है। इस वर्ष फरवरी में आखिरी बार जब इस मामले पर सुनवाई हुई थी, तब भी हरीश साल्वे ने बेहतरीन ढंग से पाकिस्तान को एक्सपोज किया था। उस वक्त हरीश साल्वे ने कहा था ‘पाकिस्तान बिना देरी जाधव को कॉन्सुलर उपलब्ध कराने के लिए बाध्य है।’
हरीश साल्वे के बेहतरीन कौशल और भारत के मजबूत पक्ष का ही यह नतीजा है कि अब अंतरराष्ट्रीय कोर्ट के बाद रॉयल कोर्ट ऑफ जस्टिस से एक बार फिर पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी है। ये फैसला पाकिस्तान सरकार और सेना के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है। पाकिस्तान को यह समझ लेना चाहिए कि अब उसे भारत विरोधी सभी अभियानों को छोड़कर अपने देश के विकास पर ध्यान देने की जरूरत है। कर्ज में डूबे पाकिस्तान को अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार करनी चाहिए ताकि वे भूखमरी से निजात पा सकें। अगर पाकिस्तान एक अच्छे पड़ोसी की तरह पेश आता है और अपने देश से पनपने वाले आतंकवाद को खत्म कर देता है तो भारत भी उसके साथ एक अच्छे पड़ोसी की तरह बर्ताव करेगा।