चीन के राष्ट्रपति का गर्मजोशी से स्वागत तो ठीक है, पर पीठ में छुरा घोपने वाले चीन को न भूले भारत

PC: zeenews

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ दूसरी अनौपचारिक बैठक के लिए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग शुक्रवार को महाबलीपुरम पहुंचे। यहाँ खास बात यह रही कि प्रधानमंत्री मोदी तमिलनाडु के पारंपरिक वेषभूषा में पहुंचे। भारत में लोग उनकी इस यात्रा को लेकर काफी उत्साहित हैं, और खुद पीएम मोदी भी उनके स्वागत में कुछ ट्विट्स कर चुके हैं। ऐसे ही एक ट्वीट में उन्होंने लिखा ‘भारत में आपका स्वागत है राष्ट्रपति शी’। पीएम मोदी ने इसके अलावा यह उम्मीद भी जताई है कि इस सम्मेलन के बाद दोनों देशों के रिश्तों में आगे और ज़्यादा मधुरता आएगी। हालांकि, भारत को चीन के साथ अपने सम्बन्धों को लेकर अब पहले से ज़्यादा सावधान होने की जरूरत है। पिछले वर्ष जब दोनों नेताओं की चीन के वुहान में पहली बार अनौपचारिक बैठक हुई थी, तो भी भारत में इसका खूब प्रचार किया गया था। यही नहीं दोनों देशों के रिश्तों को लेकर नए अध्याय को लिखे जाने की बाते की जाने लगी थी, लेकिन इस बैठक के बावजूद पिछले एक वर्ष में चीन ने एक-दो नहीं बल्कि समय-समय पर भारत के हितों के खिलाफ जाकर काम किया है।

पिछले वर्ष वुहान समिट के बाद से ही भारत और चीन के रिश्तों का एक नया अध्याय लिखना शुरू हो गया था। दोनों देशों की सरकारों ने आपसी समझ को विकसित करने का मन बनाया और द्विपक्षीय रिश्तों में एक मधुरता देखने को भी मिल रही थी। लेकिन चीन ने इस वर्ष के दौरान कई मौकों पर खुलकर भारत के हितों के खिलाफ काम किया है। भारत में इस वर्ष पुलवामा हमला होने के बाद जब हमलों के पीछे पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का नाम सामने आया था तो भारत के कहने पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 प्रतिबंध समिति के समक्ष मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने के लिए फ्रांस,ब्रिटेन और अमेरिका ने 27 फरवरी को एक प्रस्ताव पेश किया था। इस प्रस्ताव के तहत जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को एक अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित किया जाना था। भारत ने इसको लेकर अपनी लॉबी काफी मजबूत की थी और यहां तक कि अमेरिका ने भी इसको लेकर चीन जैसे देशों को चेतावनी जारी की थी। अमेरिका ने चीन को चेतावनी देते हुए कहा था कि अजहर को लेकर चीन का रुख क्षेत्रीय स्थिरता एवं शांति के लिए खतरा है। यूएन सुरक्षा परिषद में इस प्रस्ताव के पेश होने के बाद समिति ने सदस्य देशों को आपत्ति दर्ज करने के लिए 10 दिनों का समय दिया था। चीन ने इस समय के खत्म होने से कुछ घंटे पहले प्रस्ताव पर एक टेक्निकल होल्ड लगा दिया जबकि बाकी सभी देश मसूद पर प्रतिबंध के पक्ष में थे। हालांकि, बाद में जब चीन पर दबाव बढ़ गया तो उसे इस टेक्निकल होल्ड को हटाने पर मजबूर होना पड़ा था और मई में मसूद अजहर को यूएन द्वारा एक अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित कर दिया गया था। इसी तरह जब भारत ने अपने राज्य कश्मीर से संबन्धित दो बड़े फैसले लिए तो भी चीन का रुख बेहद भारत विरोधी ही था। भारत ने 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाने के साथ-साथ राज्य को दो हिस्सों में बांटने का फैसला लिया था। इसके बाद विश्व के अधिकतर देशों ने भारत का ही साथ दिया था, लेकिन चीन ने पाक-प्रेम में खुलकर भारत के इस फैसले पर अपनी आपत्ति जताई। चीन ने भारत के फैसले पर अपना विरोध जताते हुए कहा था ‘हाल ही में भारत ने अपने एकतरफ़ा क़ानून में बदलाव करके चीन की क्षेत्रीय संप्रभुता को कम आंकना जारी रखा है। यह अस्वीकार्य है और यह प्रभाव में नहीं आएगा’। इसके बाद भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर चीन के दौरे पर भी गए थे और चीन को भारत के पक्ष से अवगत कराया था। जयशंकर ने अपने चीनी समकक्ष वांग यी के साथ मुलाकात में कहा था कि भारत और चीन को चाहिए कि वह अपने द्विपक्षीय संबंधों को मतभेदों के चलते प्रभावित न होने दें। इसके अलावा दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात से पहले नई दिल्ली चीन को यह भी अवगत करा चुकी थी कि अनुच्छेद 370 को रद्द करना और जम्मू कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा वापस लेकर लद्दाख को केंद्रीय शासित प्रदेश बनाना पूर्ण रूप से भारत का आंतरिक मामला है। लेकिन इसके बाद भी चीन का भारत-विरोधी राग बंद नहीं हुआ और पाकिस्तान के कहने पर वह इस मुद्दे को यूएन सुरक्षा परिषद में ले गया। 16 अगस्त को कश्मीर मुद्दे पर यूएन में एक अनौपचारिक बैठक हुई थी और इस बैठक में भी चीन ने भारत के खिलाफ बिलकुल दुश्मनों जैसा व्यवहार किया था। इतना ही नहीं, उस बैठक में चीन ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करने के साथ अक्साई चिन का भी मुद्दा उठाया था।

संयुक्त राष्ट्र में चीन के राजदूत ने कहा था कि भारत सरकार का अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को खत्म करने का फैसला चीन के संप्रभु हितों को चुनौती देता है। उन्होंने यह भी कहा था कि इस निर्णय से सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बनाए रखने के द्विपक्षीय समझौता का उल्लंघन हुआ है। हालांकि, चीन को इतने बड़े स्तर के प्रोपेगैंडे के बावजूद मुंह की ही खानी पड़ी और बैठक में यूएन सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी सदस्यों में से चीन को छोड़कर सभी ने भारत का ही साथ दिया। यानि अपने पाकिस्तानी प्रेम में चीन कश्मीर मुद्दे को यूएन में तो ले गया लेकिन उसका जो नतीजा हुआ, इस मुद्दे ने उसे कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा है।

अब जब प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच अनौपचारिक मुलाकात हो रही है, और इस बात की पूरी संभावना है कि भारत चीन के साथ अपनी सभी चिंताओं को साझा करेगा। इस मुलाकात के संदर्भ में अभी तक चीन की ओर से यही कहा गया है दोनों नेता कश्मीर मुद्दे पर शायद ही कोई बात करें। जाहिर है कि कश्मीर मुद्दे पर कोई भी बात करने से अब चीन बचना चाहेगा क्योंकि खुद चीन भी इस बात को जानता है कि अपने पाक प्रेम में वह काफी हद तक भारत के हितों के खिलाफ जाकर काम कर चुका है। अभी इसी महीने कश्मीर पर भारत के फैसले के बाद चीन के विदेश मंत्री पाकिस्तान के दौरे पर गए थे और वहां भी चीन ने पाकिस्तान के साथ अपने साझे बयान में भारत विरोधी रुख अपनाया था। चीन-पाकिस्तान ने अपने साझे बयान में कहा था कि “चीनी पाकिस्तान की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता, स्वतंत्रता और राष्ट्रीय गरिमा की रक्षा के लिए अपने समर्थन की पुष्टि करता है और साथ ही क्षेत्रीय और अंतरार्ष्ट्रीय मुद्दों में उसके समर्थन की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराता है”। भारत ने चीन के इस बयान का जोरदार विरोध किया था और इस बयान पर अपनी अस्वीकार्यता जताई थी। विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर यह कहा था कि हम जम्मू-कश्मीर पर चीन और पाकिस्तान के संयुक्त बयान को खारिज करते हैं।

भारत ने यह भी कहा था कि जम्मू कश्मीर हमारा अभिन्न अंग है। वहीं दूसरी ओर भारत ने चीन द्वारा बनाए जा रहे तथाकथित चाइना-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरीडोर की भी कड़ी आलोचना की थी। भारत और चीन एशिया की दो बड़ी शक्तियाँ हैं, ऐसे में इन दो देशों के आपसी सम्बन्धों का पूरी दुनिया पर असर पड़ता है। भारत की बात करें, तो भारत शुरू से ही द्विपक्षीय सम्बन्धों का सम्मान करता आया है, लेकिन चीन की ओर से हमेशा से ही हमें नकारात्मक रुख देखने को मिला है। अब जब पीएम मोदी और शी जिनपिंग की दूसरी अनौपचारिक मुलाक़ात हो रही है, तो बेशक हमें चीन की ओर से बड़े-बड़े दावे और वादे देखने को मिल सकते हैं लेकिन इतिहास को देखते हुए चीन पर आँख मूँद कर विश्वास करना भारत के लिए बेवकूफी ही होगी।

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