US-चीन के ट्रेड वॉर का लाभ उठाने की भारत ने बना ली है योजना, सीतारमण ने तैयार किया ब्लूप्रिंट

सीतारमण

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अमेरिका और चीन के बीच पिछले साल से ही व्यापार युद्ध जारी है, और अब तक दोनों देश किसी नतीजे पर पहुंचने में असफल ही रहे हैं। अमेरिका और चीन ने एक दूसरे के देशों से आयात होने वाले सामानों पर भारी आयात शुल्क लगा रखा है जिसके कारण दोनों देशों में कंपनियों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा रहा है। यही कारण है कि चीन और अमेरिका में अब अधिकतर प्रभावित होने वाली कंपनियां बाहर मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स लगाने पर विचार कर रही हैं। यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब भारत में भी मेक इन इंडिया प्रोग्राम के तहत मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने पर फोकस किया जा रहा है। भारत सरकार द्वारा पिछले कुछ समय में बड़े पैमाने पर आर्थिक सुधार किए जा रहे हैं। इसके अलावा कल यानि 20 अक्टूबर को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी वॉशिंगटन में कहा कि वे अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर से ग्रसित कंपनियों के लिए ब्लूप्रिंट बनाने पर फोकस करेंगी, ताकि ऐसी कंपनियों को भारत में निर्माण करने में आसानी हो सके।

अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व बैंक की वार्षिक बैठक में अपनी परिचर्चा के समापन पर भारतीय संवाददाताओं के समूह के साथ बातचीत में निर्मला सीतारमण ने कहा, ‘निश्चित रूप से मैं ऐसा करूंगी। मैं ऐसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों की पहचान करूंगी, सभी अमेरिकी कंपनियों या किसी अन्य यूरोपीय देश की कंपनी या ब्रिटिश कंपनी जो चीन से निकलना चाहती है, मैं उनसे संपर्क करूंगी और भारत को निवेश के तरजीही गंतव्य के रूप में पेश करूंगी।’ साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि सरकार का यह निर्णय अमेरिका और चीन के बीच जो चल रहा है सिर्फ उसी पर आधारित नहीं हैं।

बता दें कि अमेरिका और चीन के बीच पिछले एक साल से भी ज़्यादा समय से ट्रेड वॉर जारी है। हालांकि, भारत को इसका अब तक उतना फायदा नहीं मिला था। ये कंपनियां दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स को विस्थापित कर रही थीं। हालांकि, इनमें से किसी भी देश के पास भारत जैसी सस्ते दरों पर काम करने वाली लेबर और सकारात्मक आर्थिक वातावरण नहीं है। ऐसे में भारत अब इस अवसर को हाथ से नहीं गँवाने देना चाहता है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी रविवार को वॉशिंग्टन में इस बात को स्वीकार किया। उन्होंने कहा, यह बात साफ है कि कंपनियों के लिए भारत ऐसा विकल्प है जिसपर वे विचार करेंगी। निर्मला सीतारमण ने कहा कि ऐसा माना जाता है कि वियतनाम उतना आकर्षक नहीं है। ‘मेरी आज कुछ बैंकों और सरकार के प्रतिनिधियों के साथ भी बात हुई। उनका मानना है कि अब वियतनाम का संकुचन हो रहा है। उसके पास विस्तार के निवेश कार्यक्रमों के लिए श्रमबल की कमी है।’

बता दें कि विदेशी कंपनियों को लुभाने के लिए भारत सरकार पहले ही कॉर्पोरेट टैक्स में बड़ी कमी कर चुकी है। कॉर्पोरेट टैक्स को 30 फीसदी से घटाकर 22 फीसदी कर दिया गया है, जिसके बाद विदेशी निवेश में बढ़ोतरी होने के आसार हैं। स्वयं आईएमएफ़ भी इस बात को मान चुका है। पिछले दिनों आईएमएफ में एशिया एंड पेसिफिक विभाग के निदेशक Changyong Rhee ने वॉशिंगटन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में रिपोर्टर्स से कहा था, ‘हम मानते हैं कि भारत के पास सीमित राजस्व है, इसलिए उन्हें सावचेत रहने की आवश्यकता है। हम कॉर्पोरेट टैक्स कटौती के उनके फैसले का समर्थन करते हैं, क्योंकि इससे निवेश पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।’

भारत सरकार ने वर्ष 2024-25 तक देश को 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा है, ऐसे में यह अति-आवश्यक है कि विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश करने के लिए आकर्षित किया जाए। भारत सरकार ऐसा कर भी रही है। अभी इस महीने के आखिर में पीएम मोदी इनवेस्टमेंट समिट में हिस्सा लेने सऊदी अरब जा रहे हैं और वहाँ भी वे निवेशकों को आकर्षित करेंगे। इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में भारत की जीडीपी विकास दर महज़ 5 प्रतिशत रह गयी थी जिसके बाद से ही सरकार सुपर एक्शन मोड में है और ऐसे में सरकार आर्थिक विकास को गति प्रदान करने के लिए प्रयासरत है।

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