“डॉन को पकडना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है”
“रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप लगते हैं, नाम है शहंशाह”
“तुम लोग मुझे ढूंढ रहे हो और मैं तुम्हारा यहां इंतजार कर रहा हूं’’।
ये डायलॉग तो सुना ही होगा आप लोगों ने!! ये केवल संवाद ही नहीं है; ये ऐसे क्षण हैं जो बॉलीवुड के मधुर कोलाहल को परिभाषित करते हैं। साथ ही इन समय से परे संवादों में एक गहरी और भारी आवाज भी सामान्य है। और वो आवाज़ है महानायक अमिताभ बच्चन की। अमिताभ बच्चन ने भारत के सिनेमा में पारंपरिक नायक और उसकी नायकी को उस जमाने में चुनौती दी जिसमें सिनेमा जगत एक बदलाव को ढूंढ रहा था।
वह एक औसत भारतीय पुरुष से लंबे थे। उनके पास थी उनकी अपरंपरागत शैली और एक ऐसी आवाज जिसे कठोरता के कारण ऑल इंडिया रेडियो द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था। फिर भी अमिताभ बच्चन भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े महानायक बने और विश्व में भारतीय सिनेमा के ब्रांड एंबेसडर बन गए।
अमिताभ बच्चन को उनके उल्लेखनीय अभिनय करियर के लिए दुनिया भर में सराहा जाता है और अब वह प्रतिष्ठित दादा साहेब फाल्के पुरस्कार प्राप्त करने वाले हैं। हालांकि हाल ही में उन्होंने अपने प्रशंसकों को एक चौंकाने वाले और निराशाजनक बयान से अचंभित कर दिया। एक अभिनेता और एक प्रभावशाली सार्वजनिक शख्सियत के लिए अमिताभ बच्चन का अपनी सांस्कृतिक और विरासत से अपने आप को अलग दिखाना कई लोगों के लिए एक झटका था।
समाजशास्त्री बिंदेश्वर पाठक के साथ बातचीत के दौरान, अमिताभ बच्चन ने कथित तौर पर कहा कि उनका उपनाम ‘बच्चन’ किसी धर्म से नहीं है क्योंकि उनके पिता (हरिवंश राय बच्चन) इसके खिलाफ थे। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि जब जनगणना के अधिकारी उनके धर्म के बारे में पूछताछ करते हैं, तो वह हमेशा जवाब देते हैं कि वह किसी धर्म के नहीं हैं, बल्कि खुद को एक भारतीय के रूप में पहचानते हैं।
हालांकि अमिताभ बच्चन और उनका परिवार सभी हिंदू रीति-रिवाजों और परंपराओं का पालन करता है, तथा धार्मिक उत्सव भी मनाता है, फिर भी उन्हें अपने आप को गर्व से हिंदू कहने में शर्म का अनुभव हो रहा है।
अपने आप को अपनी परम्पराओं और विरासत से अलग दिखाना और अपने धर्म का बहिष्कार करने का यह लक्षण विशेष रूप से प्रभावशाली हिंदुओं में अधिक है, जो किसी भी तरह से अपनी धार्मिक मान्यताओं को प्रकट करने में झिझकते हैं।
उन्हें ऐसा लगता है की “विशेष रूप से बेरोजगार समूह” या लेफ्ट लिबरल्स द्वारा ‘सांप्रदायिक’ या ‘संघी’ घोषित कर दिए जाएंगे। इसके विपरीत अगर हम दूसरे समुदाय जैसे मुस्लिम, ईसाई और सिख जैसे अन्य धर्मों के अनुयायियों पर नज़र डालें तो यह देखेंगे कि वे अपने धार्मिक मान्यताओं को मनाने से नहीं झिझकते, और यहां तक कि उनके द्वारा लिखी या कही हुई बातों से उनका धर्म और संस्कृति की झलक मिल जाएगी। वह अपने धर्म का प्रचार प्रसार करने से भी नहीं कतराते।
कांग्रेस में राजनीति करने के बाद के वर्षों में निष्पक्षता” अमिताभ बच्चन की पहचान रही है। बता दें कि अमिताभ बच्चन पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बेहद करीबी दोस्त थे। उनके दोस्त होने के नाते, अमिताभ बच्चन का नाम बोफोर्स घोटाले में कथित रूप से लाभ प्राप्त करने के लिए सामने आया था। हालांकि निर्दोष साबित होने पर, इस घटना का बिग बी के जीवन पर स्थायी प्रभाव पड़ा। न सिर्फ उनके करियर, बल्कि एक पूरे जीवन और उनकी प्रतिष्ठा पर भी प्रभाव पड़ा। तब से अमिताभ बच्चन व्यापक रूप से अराजनैतिक बने हुए हैं। अपने उसी चर्चित डायलॉग की तरह जिसमें वे कहते हैं, “ दुध से जला, छाँछ भी फूँक-फूँक कर पीता है!”
अगर सही मायने में देखें तो यह स्पष्ट नज़र आता है कि बॉलीवुड लिबरल या उदार है। इसकी वजह चाहे बदनामी हो या बॉलीवुड का पश्चिम से अत्यंत प्रेम। जब जेएनयू में भारत विरोधी नारे लगाए गए थे, तब कई बॉलीवुड के लिबरल या उदारवादी सामने आए थे, जिन्होंने जेएनयू के इस “देश विरोधी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का समर्थन किया था, लेकिन उस समय भी अमिताभ बच्चन चुपचाप रहे।
जब बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले लेखकों और कलाकारों ने सरकार के खिलाफ हथियार उठाया, तब भी अमिताभ बच्चन आँखों पर पर्दा डाले खड़े रहे। जब मुंबई बम धमाके के आरोपी ‘याकूब मेमन’ और बॉलीवुड के उदारवादियों ने आधी रात को सुनवाई का पूरा समर्थन किया, तब भी अमिताभ अपने हृदय की विदारक चीख को अनुसना कर दिया। जब बॉलीवुड में हिंदू विरोधी फिल्में आईं, तब भी उन्होंने चुप रहना उचित समझा। जब बॉलीवुड ने भारतीय इतिहास को भयावह तरीके से विकृत किया तब भी उन्होंने चुप रहना उचित समझा।
जब समाजवादी पार्टी के स्तम्भ ‘आज़म खान’ ने मशहूर जयाप्रदा के ‘अंडरगारमेंट्स’ के बारे में टिप्पणी की थी तब भी इस महानायक के तरफ से किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं आई थी। जया प्रदा और अमिताभ बच्चन ने एक साथ 10 फिल्में की हैं। और अमिताभ की पत्नी जया बच्चन उसी पार्टी (सपा) से राज्यसभा सांसद भी हैं। लेकिन पर्दे पर प्रखर और सार्वजनिक जीवन में करोड़ो समर्थक वाले अमिताभ बच्चन अपने आप को इन सामाजिक मुद्दों पर चुप रखना ही उचित समझे।
बेशक, अधिकांश मामलों में उनका कोई लेना देना नहीं था, लेकिन करोड़ों भारतीयों के लिए भारतीय सिनेमा का प्रतिनिधित्व करने वाले महानायक के रूप में, वह अपने विचार को प्रकट कर सकते थे।
लेकिन जैसे ही किसी ने उनके धर्म के बारे में पूछा तो अमिताभ बच्चन ने तुरंत घोषणा कर दी कि वह ‘हिंदू नहीं हैं’।
आज कल अपने आप को ‘भारतीय’ कह कर अपने धर्म और संस्कृति से पीछा छुड़ाने का अच्छा बहाना मिल गया है। इससे यह भी सपष्ट होता है कि बिग बी safe गेम खेलना चाहते हैं और सभी हिंदू विरोधी ताकतों के निशाने पर नहीं आना चाहते हैं। बेशक, हम सभी पहले ‘भारतीय’ हैं। यह तो सामान्य ज्ञान है। लेकिन एक भारतीय के अलावा अपने सभी पहचानों पर पर्दा डाल अमिताभ बच्चन ने निश्चित रूप सेक्युलरिजम का चोला पहनने की कोशिश की है। लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि आज जो हालत हमारी विरासत और संस्कृति की हो चुकी है और आज का युवा अपनी जड़ों से ही कट चुका है, इसका एक मात्र कारण सेक्युलरिजम का चोला ही है। ‘भारतीय’ होना’ हमारी अग्रणी पहचान है, लेकिन भारतीय होना हमारी एकमात्र पहचान बताकर हम किसे मूर्ख बनाने की कोशिश कर रहे हैं? तथ्य यह है, कि भारतीय होना अपने आप में कई पहचानों का एक समूह है। और इनमें से, सबसे महत्वपूर्ण है धार्मिक पहचान, जिसे अमिताभ बच्चन ने अपनाने से इनकार कर दिया है। बिग बी के कद के व्यक्ति को अपनी हिंदू पहचान को स्वीकार करने में हिचकिचाहट देखना निराशाजनक है।
तटस्थता का खेल अक्सर खतरनाक होता है, वही भी खासकर डिजिटल युग में। तटस्थता अवश्य ही व्यक्ति को ‘सुरक्षित’ पक्ष में रखती है। एक तरफ यह एक पक्ष से नापसंद होने से बचाती है तो वहीं दूसरे पक्ष से यह दूर भी कर देती है। आप ही यह सोच कर देखिये कि आज के इस opinionated दुनिया में क्या कोई थोड़ा भी ‘तटस्थ’ या neutral हो सकता है?
सभी मुद्दे पर लोगों की एक राय है। सवाल यहाँ यह कि क्या कोई अपनी राय सभी के साथ साझा करता है या नहीं? अमिताभ बच्चन को अपनी पसंद और चुनाव का अधिकार है, और हो सकता है कि उन्होंने खुद को तटस्थ बनाने की कोशिश करने और चित्रित करने का फैसला कर लिया हो, लेकिन हम उनके देश-दुनिया में प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण शायद उनसे अधिक उम्मीद करते हैं। यह कहना कि किसी का कोई धर्म नहीं होता, जबकि उसके साथ पूरी तरह से जुड़ा हुआ है यह करोड़ो प्रसंशकों के विश्वास के साथ पूरी तरह अन्याय है।
हिंदू होना कोई अपराध नहीं है। जैसा कि स्वामी विवेकानंद ने कहा था: “गर्व से कहो, हम हिंदू हैं!”।