ईरान और सऊदी अरब, एक दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते। दोनों के बीच आजकल तनाव बहुत बढ़ा हुआ है। यूं तो ये देश हमेशा ही तनाव की स्थिति में रहते हैं, लेकिन अब जो इनके बीच बड़ा तनाव देखने को मिला है, उसकी वजह पिछले महीने हुए सऊदी अरब की कंपनी अरामको पर ड्रोन हमले हैं। इस ड्रोन हमले में फैसिलिटी के दो ऑयल प्लांट्स को निशाना बनाया गया था। सऊदी अरब और अमेरिका ने इन हमलों का जिम्मेदार ईरान को बताया। इसके बाद 11 अक्टूबर को सऊदी अरब के तट के पास ईरान के एक ऑयल टैंकर पर दो मिसाइल आकर टकराईं और ईरान ने इस हमले का जिम्मेदार सऊदी अरब को बताया।
अब इस बात की आशंका है कि कहीं इन दोनों देशों के बीच का तनाव कोई भयावह रूप न ले ले। हालांकि, अब हमारे पड़ोसी देश के प्रधानमंत्री इमरान खान इन दोनों देशों के बीच मध्यस्थता कराने की बात कर रहे हैं, और इसके लिए वे कल यानि रविवार को ईरान भी पहुंचे। इसके बाद वे यहाँ से सऊदी अरब जाएंगे। बड़ा सवाल यह है कि क्या इमरान खान इन दो देशों की मध्यस्थता करा पाएंगे, और क्या इसके लिए वे सही व्यक्ति हैं?
सऊदी अरब एक सुन्नी वहाबी इस्लाम देश हैं और ईरान एक शिया बहुल देश। इन दो देशों के बीच मध्यस्थता करने की मंशा रख रहे इमरान खान का देश भी सुन्नी-बहुल है। अब यह भी विडम्बना ही है कि एक ऐसा देश जहां पर शिया मुसलमानों पर आए दिन अत्याचार हो रहे हों, वह एक सुन्नी और शिया बहुल देश के बीच मध्यस्थता कराने चला है। इसके अलावा पाकिस्तान एक ऐसा देश है जो आर्थिक तौर पर सऊदी अरब पर बहुत ज़्यादा आश्रित है। ऐसे में इस बात के बेहद कम ही आसार हैं कि इमरान खान कोई सही नतीजे पर पहुंच पाएंगे।
ईरान के बाद इमरान खान सऊदी अरब जा रहे हैं और यह उनकी बेहद कम ही समय में सऊदी अरब की दूसरी यात्रा होगी। यह यात्रा ऐसे समय में की जा रही है जब खबरों के मुताबिक क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान इमरान खान से नाराज़ बताएं जा रहे हैं। दरअसल, यूएन में खड़े होकर जिस तरह कश्मीर मुद्दे को खान ने मुस्लिम दुनिया का मुद्दा घोषित किया था, और मलेशिया और तुर्की के साथ मिलकर जिस तरह पाकिस्तान ने अपना एक अलग इस्लामिक ब्लॉक बनाने की कवायदें तेज की थीं, मोहम्मद बिन सलमान को यह बिल्कुल भी रास नहीं आया था और पाक की एक पत्रिका ने यह खुलासा किया था कि गुस्से में ही MBS ने खान को दिया अपना प्लेन बीच रास्ते में वापस बुला लिया और फिर खान को एक कमर्शियल फ्लाइट से न्यूयॉर्क से पाक आना पड़ा था।
अब खान चाहते हैं कि ईरान और सऊदी अरब के बीच मध्यस्थता की कवायद शुरू करके MBS के गुस्से को शांत कर सके। वैसे भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाक अब पूरी तरह महत्वहीन हो चुका है, तो मध्यस्थता के नाटक से पाक अपनी इस छवि को भी बेहतर करने की कोशिश कर सकता है। हालांकि, इमरान खान के मंसूबों को देखकर और पाक की स्थिति को देखकर यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इमरान खान एक बेहद असफल मिडिएटर साबित होंगे और ज़ाहिर है, सऊदी अरब और ईरान को अगर सुलह करनी ही है तो इन देशों को किसी अन्य जिम्मेदार देश की तलाश कर लेनी चाहिए।