पारले जी को भारत में कौन नहीं जनता!! समय के साथ मार्किट में अन्य बिस्कुट की कंपनी आने के बाद से भले ही इसकी लोकप्रियता में थोड़ी कमी आई फिर भी ये अभी एक बड़ा ब्रांड है। पिछले दिनों ये कंपनी अपने कर्मचारियों की छंटनी की वजह से चर्चा में थी अब एक और वजह से चर्चा में हैं। दरअसल, देश की सबसे जानी मानी बिस्कुट कंपनियों में से एक पारले जी ने वित्तीय वर्ष 2019 में 15.2 प्रतिशत का विकास दर हासिल किया है। इस कंपनी का लाभ वित्तीय वर्ष 2018 के 355 करोड़ से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2019 में 410 करोड़ रूपए हो चुके हैं।
यह बिस्कुट कंपनी वर्ष 1929 में स्थापित की गयी थी। इसके बाद यह कंपनी धीरे धीरे भारत के सबसे बड़ी बिस्कुट कंपनियों में से एक बन गयी। यह कंपनी आज के दौर में कंपनी 10 स्वामित्व वाली सुविधाओं और 125 अनुबंध विनिर्माण इकाइयों में 1 लाख लोगों को रोजगार देती है।
इसी वर्ष अगस्त में यह खबर आई थी कि ग्रामीण क्षेत्रों में बिस्कुट की मांग कम होने से पारले कंपनी 10,000 कामगारों को हटाने का विचार कर रही है। एक कंपनी के कार्यकारी ने कहा था कि जीएसटी लागू होने के बाद, बिस्कुट की मांग कम हो गयी क्योंकि GST परिषद ने इसे उच्च टैक्स स्लैब में रखा है।
बता दें कि 24 सितंबर को 37 वीं जीएसटी परिषद की बैठक हुई थी और इस कंपनी ने 100 रुपये प्रति किलोग्राम के बिस्कुट को 5 प्रतिशत टैक्स स्लैब में लाने के लिए परिषद पर दबाव बनाने की कोशिश की थी। वर्तमान में, 100 रुपये प्रति किलोग्राम से अधिक की कीमत वाला बिस्किट 18 प्रतिशत टैक्स स्लैब में है। पारले कंपनी के श्रेणी प्रमुख मयंक शाह ने कहा था, “बिस्कुट के उपभोक्ता बेहद संवेदनशील हैं। वे इस बात के प्रति सचेत रहते हैं कि उन्हें एक निश्चित कीमत में कितने बिस्कुट मिल रहे हैं।”
इसके बाद यह खबर फैली कि अर्थव्यवस्था में गिरावट इतनी ज्यादा है कि लोग 5 रूपए की बिस्कुट भी नहीं खरीद पा रहे हैं। सोशल मीडिया पर तो जैसे लड़ाई ही छिड़ गयी कि अब क्या होगा देश की अर्थव्यवस्था गर्त में जा रही है और मोदी सरकार इसे छुपाने की कोशिश कर रही है।
Biscuit company #ParleG to lay off 10,000 workers. When sales of even a popular biscuit fall so sharply, its clear and present danger on the economy https://t.co/SQs2DpFRHY
— Sagarika Ghose (@sagarikaghose) August 22, 2019
सोशल मीडिया पर इस हंगामे के बाद कंपनी को यह मौका मिल गया कि वह इसे और हवा दे तथा उसने 10,000 कामगारों को निकालने की खबर फैलाकर यही किया। ऐसे मौकों पर कंपनी को कई फायदे होते है। इससे वह सरकार के साथ टैक्स दरों पर सरकार से मोलभाव करने की स्थिति में आ जाती है।
पारले द्वारा 10,000 कर्मचारियों को नौकरी से निकालने की योजना की खबर वायरल होने के कुछ दिनों बाद पारले कंपनी के कैटेगरी हेड मयंक शाह ने स्पष्ट भी किया था। उन्होंने एएनआई को बताया, “तथ्यों को मीडिया ने बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया था। नौकरी में कटौती की स्थिति बन सकती है, यदि कम टैक्स दरों की हमारी मांग पूरी नहीं हुई।” उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे लगता है कि बिस्कुट पर 18 प्रतिशत का GST अधिक है’।
इससे स्पष्ट हो गया कि सारा मामला टैक्स कटौती की मांग के बारे में था, और यह कंपनी कर्मचारियों के नौकरी में कटौती के बारे में कभी गंभीर नहीं थी। यह सिर्फ ब्लैकमेलिंग की एक रणनीति थी।
ऑटोमोबाइल क्षेत्र में मंदी के बीच, उद्योग क्षेत्र के लीडर्स ने सरकार से मांग बढ़ाने के लिए वाहनों पर से जीएसटी में कटौती करने के लिए कहा था। लेकिन मांग में कमी के इस गिरावट का प्रमुख कारण नहीं था, क्योंकि एमजी हेक्टर और किआ सेल्टोस जैसी कंपनियों ने बहुत कम समय में ही कई यूनिट कारों को बेच दिया था। ऑटोमोबाइल क्षेत्र में स्लोडाउन के कई अन्य कारक हैं।
जब भी कोई सेक्टर मंदी की मार झेलता है, तो कंपनियां मंदी के बावजूद टैक्स में कटौती की मांग करती हैं। Cyclical slowdown में टैक्स कटौती जैसे मांग की आवश्यकता होती है लेकिन structural slowdown के लिए अधिक व्यापक समाधानों की आवश्यकता होती है। लेकिन अधिकांश कंपनियां किसी अन्य समाधान के लिए तैयार नहीं होते हैं।
उपलब्ध वस्तुओं और सेवाओं में अधिक विकल्प होने से भारतीय उपभोक्ताओं की आकांक्षाएं बढ़ीं हैं। पहले एक कार होना एक सोशल स्टेटस माना जाता था। अब, इस तरह की बात नहीं है। लोग ओला उबर जैसे कंपनियों की राइड-शेयरिंग कर अपना काम पूरा कर लेते है।
अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन के बाद से भारतीय उपभोक्ताओं का किसी वस्तु की खरीदने के व्यवहार काफी बदलाव आया है। बता दें कि लाइसेंस कोटा राज में, उपभोक्ताओं के पास सीमित विकल्प थे और उत्पादन पर भी नियंत्रण था। लेकिन 1990 के दशक में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के साथ, उत्पादन पर से नियंत्रण हटा दी जिससे प्रतिस्पर्धा बढ़ गई। विदेशी निवेश में उदारीकरण के साथ, बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रवेश आसान हो गया, और भारतीय उपभोक्ताओं के पास विश्व स्तरीय सामान और सेवाएं उपलब्ध थीं।
अर्थव्यवस्था में स्लोडाउन किसी भी कंपनी को टैक्स में कटौती की मांग करने का मौका प्रदान करती है। कोई भी कंपनी न्यूनतम करों का भुगतान कर अधिक प्रॉफ़िट कमाना चाहती है। इसलिए, वे हमेशा टैक्स में कटौती की मांग करते रहते हैं। इसी का उदाहरण परलेजी के साथ भी देखने को मिला। तथा वह इसी स्लोडाउन का फायेदा उठाकर अप्रत्याशित लाभ लेने में कामयाब रही। वित्तीय वर्ष 2019 में 15.2 प्रतिशत का लाभ दिखाता है कर्मचारियों को निकालने की खबर सिर्फ सरकार पर टैक्स कम करने के लिए दबाव बनाने के लिए था ताकि कंपनी अधिक से अधिक मुनाफा कमा सके।