हाल ही में ओडिशा सरकार ने गोवर्धन मठ का स्वामित्व पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती को सौंप दिया है। इसके लिए उन्होंने गोवर्धन मठ को ओडिशा हिन्दू धार्मिक बंदोबस्त [Endowment] अधिनियम के प्रावधानों से मुक्त कर दिया है।
मुख्य सचिव असित त्रिपाठी के अनुसार ‘राज्य मंत्रिमंडल ने शाम को बैठक की, जिसमें राज्य के हिंदू धार्मिक संस्थानों में पुरी शंकराचार्य के महत्व को देखते हुए गोवर्धन मठ को अधिनियम से बाहर करने का प्रस्ताव पारित किया गया। इसी संबंध में अधिनियम में संशोधन जल्द ही किए जाएंगे’।
ओडिशा सरकार का यह निर्णय 12 वीं सदी के जग्गानाथ पुरी मंदिर के आसपास के क्षेत्रों के पुनर्विकास के विरुद्ध बढ़ते असंतोष की पृष्ठभूमि में आता है। पिछले महीने पुरी का जिला प्रशासन मंदिर के 75 मीटर के दायरे में जीर्ण शीर्ण हो चुके ढांचों को केंद्र में रखते हुए विध्वंस अभियान पर काम कर रहा है। यही नहीं, जिला प्रशासन ने यह भी दावा किया है कि 500 करोड़ रुपये की मेगा योजना पुरी को वर्ल्ड हेरिटेज सिटी में बदल देगी और आतंकवाद को रोकने में मदद करेगी। सदियों पुराने एमार मठ एवं लैंगुली मठ के कुछ हिस्सों को पहले ही ध्वस्त किया जा चुका है।
हालांकि, अब राज्य सरकार श्रद्धालुओं और पुजारियों की कड़ी आलोचना के बाद बैकफुट की ओर जाती दिख रही है। यह बताना आवश्यक है कि ओडिशा उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बीपी दास की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट के आधार पर विध्वंस किए गए थे, परंतु पुरी के शंकराचार्य, स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने आरोप लगाया था कि इस संबंध में हितधारकों से बीपी दास आयोग ने कोई सुझाव और प्रतिक्रिया नहीं ली है।
उनके अनुसार, “एमिकस क्यूरी और दास आयोग ने सरकार और सुप्रीम कोर्ट को जो भी रिपोर्ट सौंपी है, वह पूरी तरह से अमान्य है। जैसा कि बीपी दास आयोग ने धार्मिक संस्थान के प्रमुख से परामर्श किए बिना अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, यह रिपोर्ट पुरी श्रीमंदिर को धार्मिक की बजाय धर्मनिरपेक्ष इकाई घोषित करने की साजिश है’।
ओडिशा सरकार को शीर्ष अदालत ने भी कठघरे में खड़ा किया। इस महीने की शुरुआत में जगन्नाथ मंदिर के आस-पास के कई पुराने मठों को ध्वस्त करने के लिए ओडिशा सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने भी जमकर लताड़ा था। न्यायालय के अनुसार, “यहां कुछ गलत हो रहा है। आप इस तरह मठों को कैसे नष्ट कर सकते हैं?” अदालत ने राज्य सरकार को पुरी शंकराचार्य और अन्य हितधारकों जैसे आध्यात्मिक नेताओं से भी परामर्श करने का निर्देश दिया, जो विध्वंस अभियान को जारी रखने से पहले पूर्व परामर्श से बाहर रखे गए थे। ओडिशा सरकार को कोर्ट से लगी फटकार इस बात का संकेत है कि देश में अगर हिन्दुओं के संस्थानों पर हमला होगा तो वो चुप नहीं बैठेंगे और न ही इसे बर्दाश्त करेंगे।
बता दें कि हिंदू धार्मिक स्थल लंबे समय से राजनीतिक ताकतों द्वारा शोषण का शिकार रहे हैं, चाहे वो कट्टरपंथी इस्लामवादियों द्वारा किया गया हो, या फिर वर्तमान समय में ’धर्मनिरपेक्ष’ सरकारों द्वारा किया गया हो। विभिन्न राज्य सरकारों ने ऐसे कानून लागू किए हैं जिनके माध्यम से उन्होंने हिंदू धार्मिक स्थलों का वित्तीय और प्रशासनिक नियंत्रण किया है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी हिंदू मंदिरों के वित्तीय और प्रशासनिक नियंत्रण को संभालने वाले सरकारी अधिकारियों के लचर प्रदर्शन पर सवाल उठाया था। कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि मंदिरों के प्रबंधन का काम भक्तों पर छोड़ दिया जाना चाहिए। स्वयं कोर्ट ने भी माना कि विभिन्न राज्य सरकार के नियंत्रण में मंदिरों की स्थिति बिलकुल भी अच्छी नहीं है।
हालांकि, ओडिशा की सरकार अपने विध्वंस कार्यों को रोक चुकी है और गोवर्धन मठ का नियंत्रण पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती को सौंप चुकी है, परंतु अभी भी राज्य में 16,000 से अधिक मंदिर और 450 मठ (हिंदू मठ) ओडिशा हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती अधिनियम के माध्यम से सरकार द्वारा नियंत्रित हैं। सरकारी नियंत्रण में अन्य प्रमुख धार्मिक स्थलों में तिरुपति मंदिर, गुरुवायूर मंदिर, श्रीशैलम, काशी, मथुरा, अयोध्या, वैष्णो देवी मंदिर, सिद्धि विनायक मंदिर, शिरडी साईं बाबा मंदिर, अमरनाथ, बद्रीनाथ, केदारनाथ और रामेश्वरम शामिल हैं। जब तक इन्हें सरकारी नियंत्रण से मुक्त नहीं किया जाएगा, तब तक सनातन धर्म का यूं ही अपमान होता रहेगा।