भारत में फिर से चुनाव का माहौल बन चुका है। महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनाव की तरीखे आ चुकी है। इन दोनों ही राज्यों में बीजेपी तो काफी मजबूत नजर आ रही है और बड़े बहुमत से चुनाव जीतने की स्थिति में है। लेकिन कुछ ऐसी विधानसभा सीटें है जिनपर सभी की नजरे टिकी हुई हैं। ऐसी ही एक सीट है बारामती जोकि NCP के शरद पवार की पुश्तैनी सीट मानी जाती है। लेकिन इस बार ऐसा लग रहा है कि बारामती का हाल भी गांधी परिवार के अमेठी जैसी होने वाली है। अमेठी और बारामती के बीच एक समांतर रेखा खींचना कठिन काम है। इन दोनों ही क्षेत्रों के बीच 1,500 किमी की दूरी है तथा दोनों जिलों में भौगोलिक, सांस्कृतिक और आर्थिक गतिशीलता की भी विभिन्नता है।
अगर कुछ सामान्य है तो वह है इन दोनों ही क्षेत्रों की राजनीति। इन दोनों ही क्षेत्रों में भारत के सबसे शक्तिशाली राजनीतिक राजवंशों का वर्चस्व रहा है। अमेठी ने 1980 के दशक के बाद से नेहरू गांधी परिवार के कई सदस्यों को लोकसभा में भेजा है जबकि बारामती ने पवार परिवार को। संजय सिंह, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी अमेठी निर्वाचन क्षेत्र से अब तक चुने गए हैं। इसी तरह, बारामती ने 1967 से महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में पवार परिवार के एक सदस्य को चुना। यह 1990 तक शरद पवार का निर्वाचन क्षेत्र था। इसके बाद वर्ष 1991 से लेकर अभी तक अजीत पवार के पास है, जो इस बार 2019 में भी उम्मीदवार हैं। बारामती लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र ने भी 1980 से केवल पवार परिवार के सदस्यों को चुना है।
वर्ष 2019 के लोकसभा में अमेठी में गांधी परिवार को जबरदस्त जीत दर्ज की थी। भाजपा की फायरब्रांड नेता स्मृति ईरानी ने गांधी परिवार के गढ़ में जाकर राहुल गांधी को परास्त किया। उन्होंने 50,000 से अधिक मतों से अमेठी निर्वाचन क्षेत्र को जीता। अब बीजेपी 21 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में बारामती निर्वाचन क्षेत्र से इसी तरह के परिणाम की उम्मीद कर रही है।” अगर स्मृति ईरानी अमेठी में राहुल गांधी को हरा सकती हैं, तो गोपीचंद पडलकर जोकि भाजपा उम्मीदवार हैं, वो बारामती में अजीत पवार के खिलाफ ऐसा क्यों नहीं कर सकते हैं?”
पवार परिवार आमतौर पर बारामती निर्वाचन क्षेत्र में प्रचार नहीं करता है और फिर भी, आज तक कोई भी पार्टी उनके वर्चस्व को चुनौती नहीं दे सकी है।
हालांकि, भाजपा के इस क्षेत्र में उभरने से बारामती निर्वाचन क्षेत्र में राकांपा के आधिपत्य को चुनौती मिली है। इस बार के लोकसभा चुनावों में, एनसीपी और विपक्ष द्वारा प्राप्त वोटों की संख्या के बीच अंतर 2009 के 45 प्रतिशत से घटकर 2019 में 15 प्रतिशत हो गया था।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी पवार परिवार के गढ़ को छीनने और वहां बदलाव लाने के लिए उत्सुक हैं। उन्होंने निर्वाचन क्षेत्र में जाकर प्रचार किया था और रैली में भारी भीड़ भी देखने को भी मिली थी। कृषि सुधार और राज्य में आर्थिक विकास ने फडणवीस को स्थानीय लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय बना दिया है। वह पहले ही इन निर्वाचन क्षेत्रों में दो राजनीतिक रैलियों का आयोजन कर चुके हैं और उन्हें भारी समर्थन मिला है। अमित शाह भी बारामती के निर्वाचन क्षेत्र में एक रैली को संबोधित करने वाले हैं। भाजपा ने बारामती निर्वाचन क्षेत्र के जातिगत कारक को ध्यान में रखते हुए अपना उम्मीदवार चुना है। बीजेपी के उम्मीदवार गोपीचंद पडलकर धनगर समुदाय से हैं तथा यह निर्वाचन क्षेत्र में दूसरी सबसे बड़ी आबादी (मराठा के बाद) है। इससे स्पष्ट होता है कि जाति की एकजुटता और विकास की योजना के संयोजन के साथ, भाजपा ने बारामती से पवारों से छिनने की योजना बनाई है।
शरद पवार के दादा और अजीत पवार के बेटे पार्थ पवार को लोकसभा चुनाव में मावल क्षेत्र से शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था। पवार परिवार ने पार्थ को जीताने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी फिर भी वह हार गए थे। पार्थ पवार परिवार के ऐसे पहले उम्मीदवार थे जिन्हें चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था।
बता दें कि वर्ष 2009 में 62 सीटें जीतने वाली NCP वर्ष 2014 के विधानसभा में 41 तक सिमट कर रह गयी थी। इस पार्टी को महाराष्ट्र के स्थानीय चुनावों में भी झटका लगा था। पवार परिवार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों ने उनकी लोकप्रियता को काफी कम कर दिया है।
इस साल अगस्त में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा से अजीत पवार और महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक (MSCB) घोटाले में 70 अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए कहा था। जस्टिस एस सी धर्माधिकारी और एस के शिंदे की पीठ ने पुलिस के Economic Offences Wing को पांच दिनों के भीतर एफआईआर दर्ज करने को कहा था। मामले में एनसीपी नेता जयंत पाटिल और राज्य के 34 जिलों के वरिष्ठ सहकारी बैंक अधिकारी शामिल हैं, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एनसीपी से संबंधित थे। इन व्यक्तियों ने 2007 से 2011 तक MSCB को लगभग 1,000 करोड़ रुपये का घोटाला किया था।
इतना ही नहीं शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले और उनके दामाद पर 2002 से 2004 तक लवासा कोऑपरेशन लिमिटेड (LCL) में 21.97 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने का आरोप था। इस अवधि में लवासा के लिए सरकार से सभी आवश्यक अनुमति प्राप्त हुई थी।
आर्थिक अपराध शाखा द्वारा अजीत पवार के खिलाफ एक एफआईआर, मतदाताओं के बीच देवेंद्र फडणवीस की लोकप्रियता और सही उम्मीदवार के चयन से भाजपा पवार परिवार के गढ़ बारामती को जीतने में सफल हो सकती है। अगर ऐसा होता है तो पवार [परिवार का राजनीतिक अस्तित्व जो पहले से ही रेड लाइन पर है वो खत्म हो सकता है. इसी के साथ देश में एक और वंशवादी परिवार की राजनीति का खत्म होगी. हालांकि, ऐसा होगा या नहीं ये तो चुनाव के बाद ही पता चल पायेगा।