कश्मीर मुद्दे पर तुर्की को हमारे पड़ोसी देश पाक का समर्थन करना भारी पड़ गया है। पीएम मोदी ने तुर्की को कड़ा संदेश देते हुए अपनी दो दिवसीय यात्रा को रद्द कर दिया है। दरअसल, तुर्की के राष्ट्रपति ने सितंबर महीने में हुई संयुक्त राष्ट्र सभा (UNGA) में कश्मीर मुद्दे पर पाक के प्रोपेगेंडा का समर्थन करते हुए भारत का विरोध किया था।
इसके साथ ही भारत ने तुर्की के अनादोलु शिपयार्ड से भारत में नेवी सपोर्ट शिप बनाने की डील को भी रद्द कर दिया है। भारत ने ये क़दम कश्मीर और एफ़एटीएफ़ पर तुर्की के पाकिस्तान के साथ खड़े होने के जवाब में उठाए हैं। पीएम मोदी एक निवेश सम्मेलन में हिस्सा लेने 27-28 अक्टूबर को सऊदी अरब जा रहे हैं। तय कार्यक्रम के मुताबिक, वहीं से दो दिन की यात्रा पर तुर्की जाना था।
दरअसल, पिछले कुछ हफ्तों से तुर्की ने भारत विरोधी रुख अपनाया हुआ है। तुर्की ने न केवल अनुच्छेद 370 के कश्मीर से निरस्त किए जाने की निंदा की, बल्कि कश्मीर मुद्दे पर यूएन की जनरल एसेम्बली में हमारे शत्रु देश पाक के भारत विरोधी रूख का समर्थन भी किया। एर्दोगन के अनुसार, “न्याय और समानता के आधार पर बातचीत के जरिये समस्या का समाधान किया जाए, न कि टकराव के रास्ते से”। यही नहीं, एर्दोगन ने फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की बैठक में भी पाक का समर्थन किया, जिसके कारण पाक एक बार फिर एफ़एटीएफ़ द्वारा ब्लैकलिस्ट होने से बच गया। इसके अलावा एर्दोगन ने न सिर्फ कश्मीर का मुद्दा उठाया, बल्कि कश्मीर में भारत द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन की बात भी कह डाली। साथ ही कश्मीर के मौजूदा हालात पर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की चुप्पी पर सवाल उठाए थे।
विदेश मंत्रालय के एक सूत्र ने न्यूज एजेंसी आईएएनएस से कहा कि जब पीएम का दौरा तय ही नहीं हुआ था तो रद्द होने का प्रश्न कहां उठता है। परंतु द हिन्दू से बातचीत के दौरान तुर्की राजदूत ने बताया कि उनकी सरकार प्रधानमंत्री मोदी के दौरे की प्रतीक्षा कर रही थी, और वे इस कथित निर्णय से काफी व्यथित हैं। इससे पहले पीएम मोदी G-20 की बैठक में शामिल होने के लिए 2015 में तुर्की गए थे। इसके बाद जुलाई, 2018 में तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन 2 दिन की भारत यात्रा पर आए थे। इस साल जून में जापान के ओसाका में G-20 की बैठक में उनकी एर्दोगन से मुलाकात हुई थी।
तुर्की का दौरा रद्द कर पीएम मोदी ने स्पष्ट संदेश दिया है कि जो भी भारत के हितों के खिलाफ जाएगा, उसे किसी भी स्थिति में छोड़ा नहीं जाएगा। अपनी आक्रामक कूटनीति का परिचय देते हुए भारत ने न केवल तुर्की के साथ कई अहम डील [अनादोलु शिपयार्ड वाली डील सहित] रद्द किए हैं, बल्कि तुर्की से आँख में आँख मिलाते हुये उसके विरोधी गुट के दो देश, साइप्रस और आर्मेनिया के राष्ट्राध्यक्षों से मुलाक़ात की, जो तुर्की को फूटी आँख नहीं सुहाते।
रही सही कसर भारत ने तुर्की द्वारा सीरिया पर आक्रमण का विरोध करते हुये सीरियाई पक्ष एवं सीरिया में आतंकियों एवं तुर्की आक्रमणकारियों के खिलाफ लड़ रहे कुर्दी लड़ाकों का अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन कर पूरी कर दी।
तुर्की, भारत की इस नयी कूटनीति का अकेला शिकार नहीं हुआ है। यूएन की जनरल एसेम्बली में मलेशिया के राष्ट्राध्यक्ष महातीर मुहम्मद ने कश्मीर मुद्दे पर पाक का समर्थन करते हुये कहा, “जम्मू एवं कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के बावजूद, देश पर हमला किया गया है और कब्जा कर लिया गया है, ऐसा करने के कारण हो सकते हैं, लेकिन यह फिर भी गलत है। भारत को चाहिए कि वह पाकिस्तान के साथ मिलकर काम करे और इस समस्या का समाधान करे”।
इस बयान के बाद भारत ने न केवल मलेशिया को सदन में कड़ा जवाब दिया बल्कि मलेशिया से आयात होने वाली वस्तुओं पर आयात शुल्क भी बढ़ाया। इसके बाद भारत, मलेशिया से आयात होने वाली वस्तुओं को नियंत्रित करने की बात की, भारत का यह एक्शन मलेशिया की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।
शुरू-शुरू में भारत को धमकी देने वाले महातीर 17 अक्टूबर तक आते-आते एकदम नरम पड़ गए। अपने बयान में महातिर मोहम्मद ने बेहद नरम रवैया दिखाते हुए कहा कि वे भारत के साथ अपने सभी तनावों को राजनयिक तरीकों से हल करने की कोशिश करेंगे। साथ ही उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर कोई एक्शन नहीं लिया है, परंतु भारतीय रिफाइनर्स ने अपने आप से ही मलेशिया के पाम ऑयल का बहिष्कार कर दिया है, जिसके कारण मलेशिया की पाम ऑयल इंडस्ट्री को बड़ा झटका पहुंचा है।
अपने इस नए रूप में भारत ने अपने विरोधियों को स्पष्ट संदेश भेजा है– वे किसी को छेड़ेंगे नहीं, पर छेड़े जाने पर छेड़ने वाले को छोड़ेंगे भी नहीं। ये तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष का दुर्भाग्य ही है जिन्होंने इस संदेश को हल्के में लेने का प्रयास किया, और अब इसके दुष्परिणाम उनके साथ समूचे तुर्की को भी भुगतना पड़ेगा।