शेहला रशीद के राजनीतिक सपने का दुखद अंत: आर्टिकल 370 हटने से करियर शुरू होने से पहले ही खत्म

हमने 18 अगस्त को शेहला रशीद के राजनीतिक करियर को लेकर एक भविष्यवाणी की थी। हमने तब कहा था कि गृह मंत्री अमित शाह के कारण लेफ्ट लिबरल गैंग कि चहेती शहला का राजनीतिक कैरियर शुरू होने से पहले ही खत्म हो गया है और ये अब हो चुका है। शेहला को अब मुख्यधारा की राजनीति छोड़नी पड़ी है। दरअसल, दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) की पूर्व छात्रा और टुकड़े टुकड़े गैंग की नेता शेहला रशीद ने जम्मू कश्मीर में होने वाले BDC चुनाव से पहले ही शेहला ने राजनीति छोड़ने का ऐलान किया है।

ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल के चुनाव के ऐलान को जिम्मेदार ठहराते हुए शेहला ने कहा कि वह कश्मीरियों का कथित उत्पीड़न और बर्दाश्त नहीं कर सकती हैं। शेहला ने ये भी कहा है कि “मोदी सरकार दुनिया को यह बताना और दिखाना चाहती है कि अभी भी यहां लोकतंत्र है। यहां लोकतंत्र नहीं, बल्कि लोकतंत्र की हत्या हो रही है।” जिस लोकतंत्र की शेहला बात कर रही हैं उसी लोकतंत्र की प्रणाली को मानने से मना कर रही हैं और चुनाव न लड़ने का निर्णय लिया है। अब राजनीति छोड़ी है तो सवाल उठेंगे ही इसलिए उन्होंने इसके लिए भी तैयारी कर ली थी जो उनके बयानों से साफ़ झलक भी रहा है।

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हालांकि, जो कारण उन्होंने बताया है वो कहीं से भी तार्किक नहीं लगता है। जिन कश्मीरियों के भले की वो बात करती हैं उनपर उन्हें इतना भी भरोसा नहीं है कि वो उन्हें अपना नेता चुनेंगे। वो जनता की सेवक बनकर उनके साथ खड़ी हो सकती थीं, परन्तु ऐसा तभी संभव होगा जब जनता उनका साथ देगी लेकिन कश्मीर उन्हें नहीं स्वीकारेगी इस बात का भी आभास उन्हें है।

बता दें कि जम्मू कश्मीर में ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल (BDC) चुनाव होने हैं। राज्य के 316 में से 310 ब्लॉक्स के लिए मतदान 24 अक्टूबर को होगा। शेहला रशीद, नौकरशाही से राजनीति में आये शाह फैसल की पार्टी JKPM यानी जम्मू-कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट का प्रमुख चेहरा रही हैं। अनुच्छेद 370 के हटने के बाद शेहला रशीद ने सेना के खिलाफ फेक न्यूज़ भी फैलाया था जिसके बाद उनके ऊपर देश द्रोह का मामला भी दर्ज किया गया था।

अब हमने जो भविष्यवाणी की थी उसे भी जान लेते हैं कि कैसे अमित शाह ने शेहला रशीद का राजनीतिक कैरियर शुरू होने से पहले ही खत्म कर दिया।

मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से विशेषाधिकार छीनने और राज्य को दो हिस्सों में बांटने के फैसले ने पाकिस्तान के साथ-साथ भारत के अंदर मौजूद कुछ लोगों के सपनों को भी पूरी तरह तोड़ दिया था। ये लोग अनुच्छेद 370 के विशेष प्रावधानों को हटाने के पक्ष में इसलिए नहीं थे, क्योंकि इनकी वोट बैंक पॉलिटिक्स के केंद्र में अनुच्छेद 370 और 35ए ही था। हालांकि, मोदी सरकार ने मिशन कश्मीर के माध्यम से कुछ मौका-परस्त कश्मीरी नेताओं के मंसूबों पर हमेशा के लिए पानी फेर दिया, और ऐसे ही लोगों में नाम था कश्मीर की एक मुखर लेफ्ट लिबरल राजनेता शेहला रशीद का।

शेहला रशीद आज भारत की राजनीति में कोई अनसुना नाम नहीं हैं, बल्कि कुछ महीनों पहले तक तो उन्हें जम्मू-कश्मीर के भावी मुख्यमंत्री के तौर पर देखा जा रहा था। ये वही शेहला रशीद हैं जो वर्ष 2017 में जेएनयू के टुकड़े-टुकड़े गैंग के प्रमुख सदस्य कन्हैया कुमार और उमर खालिद की गिरफ्तारी के खिलाफ प्रदर्शन करने की वजह से सुर्खियों में आईं थीं। उस वक्त इस टुकड़े-टुकड़े गैंग पर जेएनयू कैम्पस में आतंकी अफजल गुरु के पक्ष में नारे लगाने और देश-विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने के आरोप लगे थे, जिसके बाद पुलिस ने इन लोगों पर देशद्रोह के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था। शेहला रशीद उस वक्त जेएनयू छात्र परिषद की उपाध्यक्ष थीं और इसके साथ ही वे ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन यानि AISA की भी सदस्य थीं।

इस पूरे जेएनयू प्रकरण के बाद शेहला रशीद देश की मीडिया के एक वर्ग का मनपसंद चेहरा बन चुकी थीं और लेफ्ट लिबरल लोगों के बीच तो वे काफी लोकप्रिय हो चुकी थीं। अपनी इसी लोकप्रियता के दम पर उन्होंने अपने राजनीतिक करियर को आगे बढ़ाने की योजना बनाई थी, हालांकि इसमें भी उनके पास दो विकल्प थे। शेहला रशीद के पास पहला विकल्प तो यह था कि वे दिल्ली में रहकर सीपीआई(एम) जैसी लेफ्ट पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़तीं और धीरे-धीरे राजनीति में अपने कद को बढ़ाती, या फिर उनके पास दूसरा विकल्प यह था कि वे कश्मीर में जाकर अपनी नई राजनीतिक पारी की शुरुआत करती और एक नौजवान कश्मीरी नेता के तौर पर सबके सामने उभरकर आतीं, हालांकि रशीद ने दूसरे विकल्प को चुना और इसके पीछे उनका एक बड़ा मास्टरप्लान था।

वर्ष 2014 में आयोजित हुए कश्मीर के विधानसभा चुनावों में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था और सरकार बनाने के लिए भाजपा और पीडीपी ने हाथ मिला लिया। पीडीपी जैसी अलगाववादी पार्टी का भाजपा के साथ आने से जहां हर कोई हैरान था, तो वहीं महबूबा मुफ़्ती के इस कदम से घाटी में मौजूद उनके वोटबैंक को करारा झटका पहुंचा। भाजपा विरोधी कश्मीरी अपने आप को ठगा महसूस कर रहे थे और पीडीपी का जनाधार कश्मीर में पूरी तरह कमजोर पड़ चुका था। कश्मीर में अब तक दो पार्टियों का ही बोलबाला रहा है, और वो है पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस। अब चूंकि, भाजपा के साथ जाने के बाद मुफ़्ती और पीडीपी का वर्चस्व खतरे में आ गया था, तो कश्मीर में अब्दुल्ला परिवार के अलावा कोई दूसरा विपक्षी राजनीतिक चेहरा बचा ही नहीं था। राजनीतिक दृष्टि से घाटी में एकाधिकार की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी, और शेहला रशीद ने इसी अवसर को भुनाने की कोशिश की, जिसमें उनको साथ मिला पूर्व आईएएस अफसर शाह फैसल का।

शाह फैसल ने इस वर्ष के लोकसभा चुनावों से पहले जनवरी में कश्मीरियों पर हो रहे कथित ज़ुल्म का हवाला देकर नौकरशाही से इस्तीफा दे दिया और अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं को बल देने की दिशा में काम करना शुरू किया। चुनावों से ठीक पहले यानि मार्च 2019 में शाह फैसल ने अपने गृहक्षेत्र कुपवाड़ा से अपनी नई राजनीतिक पार्टी जम्मू-कश्मीर पीपल्स मूवमेंट को लॉंच किया। रोचक बात तो यह थी कि शेहला रशीद भी उनकी इस पार्टी का हिस्सा थीं। पार्टी में शामिल होने के पहले तक, शेहला रशीद ने खुद को एक लिबरल के रूप में पेश किया, जिसने धार्मिक हठधर्मिता के सामने झुकने से इनकार कर दिया था। हालाँकि, पार्टी के लॉन्च समारोह के दौरान, हमें एक अलग शेहला रशीद देखने को मिली थी, जो केवल रूढ़िवादी ही नहीं थी, बल्कि अपने धर्म का पूर्ण अनुसरण करने वाली महिला थी, जिन्होंने अपने चेहरे पर हिजाब डाला हुआ था।

प्लान साफ था कि महबूबा मुफ़्ती के राजनीतिक दिवालियेपन के बाद ये दोनों कश्मीर में एक मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाना चाहते थे, और प्लान के मुताबिक शाह फैसल और शेहला रशीद भविष्य में कश्मीर की राजनीति के बड़े चेहरा बनना चाहते थे, लेकिन ये भाजपा की कश्मीर नीति को समझने में पूरी तरह विफल साबित हुए और इनका कश्मीर मिशन पूरी तरफ फ्लॉप साबित हो गया। अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद शेहला तो इतनी बौखला गई कि उन्होंने कोर्ट में इसे चुनौती देने की बात कही।

लेकिन सच्चाई यह है कि गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक झटके में इनके फ्युचर प्लान को बर्बाद कर दिया और अब इनके पास कोई चारा नहीं बचा है। जम्मू-कश्मीर राज्य के दो हिस्से हो चुके हैं, जम्मू-कश्मीर अब एक केंद्रशासित प्रदेश बन चुका है और सबसे बड़ी बात यह है कि राज्य से अनुच्छेद 370 के विशेष प्रावधान भी हट चुके हैं, जो कि कश्मीर के अलगाववादी राजनेताओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं था। अब ऐसे नेताओं का घाटी की राजनीति में कोई वर्चस्व नहीं रहा। लेकिन अच्छी बात यह है कि कश्मीर को भविष्य में अब शेहला रशीद जैसे मौका-परस्त नेताओं से दो हाथ नहीं होना पड़ा है। ये कश्मीर की जनता के लिए भी एक अच्छी खबर है।

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