भारत वर्ष 1947 में स्वतन्त्र हुआ था। स्वतन्त्रता के बाद आज तक देश को ब्रिटिश चंगुल से छुड़ाने का श्रेय अगर किसी ने सबसे अधिक लिया है तो वह कोई और नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी है। परन्तु आज इसी पार्टी की ये हालत है कि देश को राष्ट्रवाद से स्वतंत्र कराने का दावा करने वाली कांग्रेस को अपने कार्यकर्ताओं को राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाना पड़ रहा है।
दरअसल, टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस की अन्तरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा कांग्रेस के राज्य प्रमुखों से मंथन करने के बाद यह हल निकाला गया कि कार्यकर्ताओं को अब राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाया जाएगा। रिपोर्ट के अनुसार अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के पदाधिकारी ने बताया कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के एक ट्रेनिंग मॉड्यूल बनाने की योजना बनाई गयी है। इस ट्रेनिंग में राष्ट्रवाद, कम्युनिकेशन और प्रचार पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा। साथ ही स्वतन्त्रता के समय कांग्रेस के योगदान पर ज़ोर दिया जाएगा। एक के बाद एक चुनावी हार का सामना करने के बाद ऐसा लग रहा है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी को अब राष्ट्रवाद पर ध्यान गया है। यह विडंबना ही है कि अब तक स्वतन्त्रता दिलाने का दावा करने वाली कांग्रेस पार्टी को राष्ट्रवाद के लिए स्पेशल पाठ पढ़ाने की जरूरत आ पड़ी।
लेकिन स्वतन्त्रता के बाद ऐसा क्या हुआ कि कांग्रेस की हालत आज यह हो चुकी है उसे अपने नेताओं को राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाना पड़ रहा है? राष्ट्रवाद के दम पर देश को आजादी दिलवाने का दावा करने वाली कांग्रेस का आखिर कब राष्ट्रवाद से नाता छूट गया? जवाहर लाल नेहरू, इन्दिरा गांधी राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव के कांग्रेस को आखिर कौन सी बीमारी हो गई जिसने अंदर ही अंदर कांग्रेस से राष्ट्रवाद की भावना को ही खत्म कर दिया?
यह क्रमिक न्यूनता एक दिन या एक महीने में नहीं आ सकती। किसी विचार में मिलावट या उसकी चेतना से दूर होने में समय लगता है। ऐसा ही कुछ कांग्रेस पार्टी के साथ हुआ है। और इसकी शुरुआत सीताराम केसरी को बाथरूम में बंद करने और सोनिया गांधी को कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए चुने जाने से हुई थी।
सोनिया कौन है? यह सभी को पता है कि वह पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत राजीव गांधी की पत्नी हैं और उनका असली नाम एंटोनिया माइनो है। एंटोनिया माइनो को उनकी दिवंगत सास इंदिरा गांधी ने ‘सोनिया’ नाम दिया था। सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान संभालते ही पहले कांग्रेस पार्टी की बुनियाद को ही जड़ से कमजोर करना शुरू कर दिया था। 14 मार्च 1998 को, उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में चुना गया, लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 15 मई, 1999 को सोनिया गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। कारण था वरिष्ठ नेता शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर द्वारा किया गया विरोध। सोनिया गांधी का यह कदम मास्टर स्ट्रोक साबित हुआ और गांधी परिवार के वफादार सोनिया गांधी को दोबारा अध्यक्ष बनाने के लिए भूख हड़ताल पर बैठ गए जिसके बाद 20 मई को इन तीनों ही नेताओं को कांग्रेस से बाहर कर दिया गया, सोनिया गांधी को फिर से अध्यक्ष बनाया गया। यह कांग्रेस के ‘सेंटर’ टू लेफ्ट’ की ओर झुकाव की कहानी और राष्ट्रवाद से दूर होने की कहानी का पहला पड़ाव था।
जब 1999 में एनडीए की सरकार एक वोट से गिर गयी थी तब भी सोनिया गांधी ने देश की वामपंथी पार्टियों की मदद से सरकार बनाने के लिए राष्ट्रपति केआर नारायणन से मुलाक़ात भी की थी। हालांकि, यह सफल नहीं हुआ क्योंकि आखिरी समय में समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह ने अपना समर्थन वापस ले लिया था। जैसे कहा जाता है कि भारत में वामपंथी पार्टियों ने वर्ष 1967 में इन्दिरा गांधी की सरकार का समर्थन कर देश में अपनी जड़े मजबूत की वैसे ही कांग्रेस का वामपंथ की ओर झुकाव सोनिया गांधी के कम्युनिज्म प्रेम से ही शुरू हुआ था। और वामपंथ भारत के सामाजिक परिदृश्य और लोकतन्त्र में कहीं से भी फिट नहीं बैठता है। अपने देश विरोधी कार्यों और भाषणों के लिए जानी जाने वाली वामपंथी पार्टियों का राष्ट्रवाद से दूर-दूर तक नाता नहीं है। झूठ के भरोसे ही सही जनता तक अपनी विचारधारा पंहुचा पाने में नाकामयाब रही वामपंथी विचारधारा हमेशा से शब्दों का मायाभ्रम रचती रही है। यह समझना होगा कि भारतीय राष्ट्रवाद एक उदार एवं सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है जिससे वामपंथ और मार्क्सवाद ने कभी पसंद नहीं किया और इसे भारतीयों की चेतना से मिटाने का भरसक प्रयास किया गया।
सोनिया गांधी ने भी इसी मकसद के साथ अपना मार्क्सवाद प्रेम जारी रखा। वर्ष 2004 में जब यूपीए सत्ता में आई तब लेफ्ट फ्रंट को 59 सीटें मिली थीं और लेफ्ट ने UPA में शामिल हुई थी। इसके बाद वर्ष 2004 में ही National Advisory Council की स्थापना 4 जून 2004 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा की गई थी। इसके पीछे भी सोनिया गांधी का ही हाथ था जिससे वह सरकार पर काबू रख सकें। यह वही राष्ट्रीय सलाहकार परिषद है जो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के समानांतर सरकार चलाती थी। वहीं इस राष्ट्रीय सलाहकार परिषद में जॉन रेज़ जैसे भारत विरोधी लोग थे जिन्होंने अनुच्छेद 370 के बारे में कहा था कि इस अनुच्छेद ने कश्मीर की गरीबी घटाने का काम किया है। यह तो अब सभी के सामने है कि इस अनुच्छेद ने कश्मीर को अलगाववाद की आग में जलाने का काम किया है। अब जब ऐसे भारत विरोधी लोगों का साथ होगा तब किसी भी पार्टी में राष्ट्रवाद खत्म होना तय ही है। यही कारण रहा है कि कांग्रेस के दूसरे कार्यकाल में लगातार एक के बाद एक भ्रष्टाचार सामने आए। यह वही सोनिया गांधी थीं जिन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को गद्दार कहा था, ऐसे में राष्ट्रवाद और सोनिया गांधी एक दूसरे के ठीक उलट नज़र आते हैं। साथ ही यह वही सोनिया गांधी हैं जिनकी अध्यक्षता में पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के पार्थिव शरीर को कांग्रेस के मुख्यालय में रखने नहीं दिया गया था। इतना ही नहीं हामिद अंसारी को उप राष्ट्रपति बनाने का भी निर्णय सोनिया गांधी का ही था जिसे लेफ्ट पार्टियों से अपना समर्थन दिया था। यह वहीं हामिद अंसारी हैं जिनकी वजह से ईरान में रॉ के कई अधिकारी मारे गए थे।
वास्तव में कांग्रेस की अभिजात्य और सामंती’ कार्यशैली देश की राजनीति में राष्ट्रवाद को पहचानने में विफल रही है। अगर कांग्रेस पार्टी वैचारिक तौर पर खुद को नहीं बदली तो अप्रासंगिक हो चुकी इस पार्टी का जल्द ही अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। भारत एक सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई विविधता वाला देश है। राष्ट्रवाद ही वह धागा है जो लोगों को उनके विभिन्न सांस्कृतिक-जातीय पृष्ठभूमि से संबंधित होने के बावजूद एकता की सूत्र में बांधता है। यह कश्मीर से कन्याकुमारी तक सभी भारतीयों को एकजुट करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ये बात इस पार्टी को कभी समझ नहीं आई केवल अपने राजनीतिक स्वार्थ और एक परिवार की चापलूसी में पार्टी व्यस्त रही और आम जनता को गुमराह करती रही है। हालांकि, अब जब देश की जनता इस पार्टी के इरादों से परिचित हो चुकी है और बार-बार हर चुनाव में इस पार्टी को नकार रही है तो कांग्रेस पार्टी अपने अस्तित्व को बचाने के लिए राष्ट्रवाद की ओर मुड़ रही है। हालांकि, पूर्व में इस पार्टी ने जो किया है वो किसी से छुपा नहीं है। ऐसे में पार्टी जितने भी प्रयास कर ले जनता से उसे वो समर्थन नहीं मिल रहा जिसका कभी ये पुरानी पार्टी आनंद उठाती थी। अब जब कांग्रेस ने ज्ञान चक्षु खुले हैं तो वो अब राष्ट्रवाद को अपनाने का प्रयास कर रही है। ऐसे में यह देखने वाली बात है कांग्रेस का ये राष्ट्रवाद का पाठ आने वाले समय में कितना सफल होगा।