अमेरिका में ट्रंप प्रशासन दुनियाभर में अंतहीन युद्ध लड़ रही अमेरिकी सेना को वापस का फैसला ले चुका है। इसी के तहत अमेरिका सीरिया और अफ़गानिस्तान से अपनी सेनाओं को वापस बुला रहा है। बता दें कि वर्ष 2001 में तालिबान को खत्म करने की मंशा से अमेरिकी सेना अफ़गानिस्तान में घुसी थी और पिछले 18 सालों के दौरान अमेरिका ने अफ़गानिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था पर बेहद भारी मात्रा में पैसा खर्च किया है। हालांकि, इसके बावजूद तालिबान का प्रभुत्व अफ़गानिस्तान में कम होने की बजाय बढ़ता ही गया। यही कारण है कि अब अमेरिका अफ़गानिस्तान से हमेशा के लिए बाहर होना चाहता है। वहीं कुछ लोगों का यह भी मानना है कि अमेरिका के अफ़गानिस्तान से बाहर जाने के बाद भारत को अफ़गानिस्तान में अपनी सेना भेजनी चाहिए, ताकि दक्षिण एशिया में भारत अपना प्रभुत्व बढ़ा सके। हालांकि, भारत सरकार की तरफ से इसपर अभी तक कोई आधिकारिक कार्रवाई सामने नहीं आई है, लेकिन तालिबान ने अभी से ही भारत के सामने गिड़गिड़ाना शुरू कर दिया है।
दरअसल, एक मीडिया समूह को इंटरव्यू देते हुए तालिबान के प्रवक्ता मुहम्मद सुहैल शाहीन ने यह कहा कि उनकी भारत सरकार के साथ कोई दुश्मनी नहीं है और वे भारत सरकार से दोस्ती चाहते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका के जाने के बाद वे अपने देश का विकास चाहते हैं, ऐसे में भारत के साथ वे कोई तनाव बिल्कुल नहीं चाहते हैं। शाहीन ने कहा ‘हम किसी दूसरे देश की राजनीति में कोई हस्तक्षेप नहीं करते हैं और हम हर एक वैश्विक ताकत के साथ अच्छे रिश्ते चाहते हैं’।
बता दें कि तालिबान अफ़गानिस्तान में अपना राजनीतिक प्रभाव जमाना चाहता है जिसके मद्देनजर उसने एक राजनीतिक बॉडी ‘तालिबान पॉलिटिकल कमीशन’ का भी गठन किया है। हालांकि, भारत सरकार अफ़गानिस्तान में लोकतन्त्र के पक्ष में है और वहां की चुनी हुई सरकार के साथ अपने रिश्ते मजबूत चाहती है। वहीं अमेरिका जल्द से जल्द तालिबान के साथ कोई समझौता करके वहां से निकलना चाहता है, जो ना तो अफ़गानिस्तान के हित में है और ना ही भारत के हित में। अगर तालिबान को अफ़गानिस्तान में खुला छोड़ दिया जाता है, तो इससे ना सिर्फ अफ़गानिस्तान की सरकार का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा बल्कि अफ़गानिस्तान में भारत के निवेश पर खतरे के बादल मंडराने लगेंगे। हालांकि, पिछले महीने अमेरिकी सैनिकों पर तालिबान के हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने तालिबान के साथ बातचीत को रद्द कर दिया था।
….an attack in Kabul that killed one of our great great soldiers, and 11 other people. I immediately cancelled the meeting and called off peace negotiations. What kind of people would kill so many in order to seemingly strengthen their bargaining position? They didn’t, they….
— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) September 7, 2019
इसी वर्ष अगस्त महीने में भाजपा के नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने यह आशंका जताई थी कि अगर भारत तालिबान के विरूद्ध जंग में अफ़गानिस्तान में अपने सैनिकों को भेजता है, तो बदले में अमेरिका पीओके को वापस भारत में मिलाने के फैसले का समर्थन कर सकता है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के पक्ष में लॉबिंग भी कर सकता है।
I have now a solid hint that if India agrees to to defend Afghanistan against terrorists like Taliban, and thus allow US to withdraw its troops, then US will side with India in taking back PoK
— Subramanian Swamy (@Swamy39) August 31, 2019
अब इसके बाद तालिबान की ओर से यह बयान आना कि वे भारत सरकार के साथ कोई विवाद नहीं चाहते हैं, दर्शाता है कि तालिबान किसी भी सूरत में भारत की सेना के साथ कोई टकराव नहीं चाहता। तालिबान अभी अफ़गानिस्तान पर अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत करना चाहता है जिसमें अभी वह कोई अड़ंगा नहीं डालना चाहता, क्योंकि तालिबान को भी यह पता है कि अगर भारतीय सेना अफ़गानिस्तान में कदम रखती है तो यह तालिबान के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं होगा।