वर्षों से रामजन्मभूमि विवाद सुलझ नहीं सका है, लेकिन जबसे सुप्रीम कोर्ट में इसको लेकर सुनवाई चल रही है तबसे देश में एक अलग तरह का माहौल बन चुका है। राम मंदिर पर चली 40 दिनों तक की लंबी सुनवाई कल यानि बुधवार को समाप्त हो गयी। लेकिन सुनवाई के आखिरी दिन फिर से सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन का ड्रामा देखने को मिला। उन्होंने हिंदू पक्ष द्वारा पेश किए गए नक्शे को कोर्ट में सुनवाई के दौरान फाड़ डाला। रिपोर्ट्स के अनुसार अगले तीन दिनों तक दोनों पक्ष लिखित रिपोर्ट्स जमा कर सकते है। आखिरी दिन मध्यस्थता समिति ने अपनी रिपोर्ट पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपी जिसमें 2.77 एकड़ विवादित जमीन पर राममंदिर निर्माण का रास्ता साफ करने के लिए तीन शर्तें रखी गई हैं। हैरानी की बात ये है कि सुनवाई के आखिरी दिन सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से भी मध्यस्थता की यही पेशकश की गई थी। ये पेशकश क्या थी उसपर नजर डाल लेते हैं:
- धार्मिक स्थल (विशेष प्रावधान) कानून, 1991 को देशभर में लागू कर इसका सम्मान किया जाए।
- मुस्लिम अयोध्या की विवादित 2.77 एकड़ जमीन पर अपना दावा छोड़ देंगे, लेकिन सरकार को अयोध्या की सारी मस्जिदों का कायाकल्प करवाना होगा। यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड किसी वैकल्पिक स्थल पर मस्जिद बनाएगा।
- अदालत द्वारा नियुक्त समिति विभिन्न पक्षों की राय जानकर उन मस्जिदों का चुनाव करे जिसे ASI मैनेजमेंट के अंदर मुसलमानों के लिए फिर से खोला जा सके।
अब अगर इन तीनों शर्तों पर नजर डालें तो यह तीनों ही शर्तें अगर मान ली जाती हैं तो यह हिंदुओं के लिए ही घातक साबित होने वाला है। दरअसल, इन शर्तों के जरिये सिर्फ इस मामले में भाईचारे का नाटक किया जा रहा है ताकि स्वतन्त्रता से पहले किए गए अत्याचारों को कानूनी रूप से वैध बनाया जा सके।
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट इन सुझावों पर आगे बढ़ना चाहेगा? क्या सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के 40 दिनों की गहन मशक्कत के बाद इस तरह के ऑफर में दिलचस्पी दिखाने को तैयार होगा? अगर गौर करें तो इस नए ऑफर पर आगे बढ़ने से अयोध्या मामले में अंतिम निर्णय पर पहुंचने में देर ही होगी।
सवाल तो यह भी उठता है कि क्या देश के किसी भी कोने में धार्मिक स्थलों की स्थिति में अब कोई बदलाव नहीं करने का धार्मिक स्थल (विशेष प्रावधान) कानून, 1991 मजबूत करने की मुस्लिम पक्ष की मांग मानी जाएगी? क्या हिंदू महासभा, विश्व हिंदू परिषद जैसे हिंदू पक्षकार इस शर्त पर सहमत होंगे जिसमें कहा गया है कि देशभर में धार्मिक स्थलों की स्थिति 15 अगस्त, 1947 से पहले जैसी ही कायम रखी जाए।
इसके लिए हमें समझना होगा कि आखिर धार्मिक स्थल (विशेष प्रावधान) कानून, 1991 क्या है और मुस्लिम पक्ष इसे पूरी मजबूती के साथ क्यों लाना चाहता है और इस कानून से उन्हें क्या लाभ होने वाला है?
क्या कहता है यह अधिनियम?
- प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट, 1991 या उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 भारत की संसद का एक अधिनियम है। यह केंद्रीय कानून 18 सितंबर, 1991 को पारित किया गया था।
- यह 15 अगस्त 1947 तक अस्तित्व में आये हुए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित करने और किसी स्मारक के धार्मिक आधार पर रख रखाव पर रोक लगाता है। यानि यदि 15 अगस्त, 1947 को एक जगह पर मस्ज़िद था तो वहां पर आज भी मस्ज़िद की ही दावेदारी मानी जाएगी। चाहे उससे एक महीने पहले या एक साल पहले या 100 वर्ष पहले उस स्थान पर मन्दिर क्यों न रहा हो। इससे मध्यकालीन युग में तोड़े गए किसी भी मंदिर पर जहां आज मस्जिद है, उस स्थान पर हिंदू दावा नहीं कर सकते। यानि इसके आते ही मथुरा और काशी जैसे कृष्ण और महादेव के प्रमुख स्थानों से हिंदुओं को अपना दावा छोड़ना होगा।
- मान्यता प्राप्त प्राचीन स्मारकों पर यह धाराएं लागू नहीं होंगी।
- यह अधिनियम उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या में स्थित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद और उक्त स्थान या पूजा स्थल से संबंधित किसी भी वाद, अपील या अन्य कार्यवाही के लिए लागू नहीं होता है।
- अगर कोर्ट में इस तरह का कोई भी मामला चल रहा है तो इसके लागू होने के साथ ही निरस्त या समाप्त हो जाएगा।
- इस अधिनियम ने स्पष्ट रूप से अयोध्या विवाद से संबंधित घटनाओं को वापस करने की अक्षमता को स्वीकार किया।
- सभी प्रावधान 11 जुलाई 1991 को लागू माने गए साथ ही इस कानून के विरुद्ध जाना अपराध कि श्रेणी में आता है इसलिए इस अधिनियम के विरुद्ध कार्रवाई करना दंडनीय है जिसके चलते जुर्माना और तीन साल तक की सज़ा या दोनों हो सकती है।
इससे स्पष्ट पता चलता है कि इस कानून के लागू होते ही अयोध्या में मंदिर बनाने के लिए जमीन तो मिल जाएगी लेकिन देश के अन्य हिस्सों से मंदिर के किसी भी दावे का आधार ही समाप्त हो जाएगा। यह कुछ और नहीं बस एक लालच है जिसके झांसे में हिंदुओं को नहीं आना चाहिए। इस केस की 40 दिनों तक चली लंबी सुनवाई पर गौर करें तो हिंदू पक्ष मजबूत नजर आ रहा है। हिंदू पक्ष ने जो भी तथ्य या दलील सुनवाई के दौरान पेश किये उससे दूसरे पक्ष में दबाव जरूर दिखाई दिया। दूसरे पक्ष की पैरवी कर रहे वकील राजीव धवन का हिंदू महासभा द्वारा पेश किये गये मानचित्र को भरी कोर्ट में ही फाड़ना उनकी बौखलाहट को दर्शाता है। हिंदू पक्ष को तीनों ही शर्तों में से किसी भी शर्त को मानने से साफ़ मना कर देना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतज़ार करना चाहिए। दूसरे पक्ष द्वारा प्रस्तावित सभी शर्त केवल एक लॉलीपॉप की तरह है जिससे हिंदुओं को भाईचारे के नाम पर भटकाने की कोशिश की जा रही है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देशभर में धर्म के नाम पर कब्जे किए गए सभी प्रमुख हिदुओं के मंदिरों को वापस समृद्ध बनाने का रास्ता खुल जाएगा। ऐसे में हिंदू पक्ष को किसी मध्यस्तता की बजाए सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रतीक्षा करना चाहिए।