चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अभी दो दिन के भारत दौरे पर हैं जहां वे भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ‘अनौपचारिक कूटनीति’ को आगे बढ़ा रहे हैं। हालांकि, शी जिनपिंग अपने इस विदेशी दौरे के दौरान केवल भारत ही नहीं, बल्कि नेपाल के दौरे पर भी जाएंगे। वहां वह अपने महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव मिशन के बारे में चर्चा करेंगे। चीन के इस मिशन की भारत कड़ी आलोचना कर रहा है, जबकि नेपाल चीन के इस कदम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहा है। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से शी जिनपिंग की मुलाकात के दौरान करीब 2.75 अरब डॉलर का यह प्रोजेक्ट चीन की शीर्ष प्राथमिकता होगी। नेपाल में पीएम केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट सरकार का चीन की ओर ज़्यादा झुकाव रहा है जिसने भारत की चिंताएँ बढ़ा दी है। नेपाल रणनीतिक के साथ-साथ भूगौलिक तौर पर भी भारत का सबसे अहम पड़ोसी देश हैं, ऐसे में भारत को अभी नेपाल के साथ अपने रिश्तों को लेकर बड़े कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि इस देश को चीन के ही एक अन्य प्रोक्सी स्टेट की तरह बर्ताव करने से रोका जा सके।
चीन की यह अघोषित कूटनीतिक रणनीति रही है कि वह धीर-धीरे भारत के सभी पड़ोसियों पर अपना प्रभाव जमाना चाहता है। ऐसे ही उसने भारत के अन्य पड़ोसी देशों जैसे मालदीव, श्रीलंका के साथ भी करने की कोशिश की। हालांकि, भारत अब तक चीन के इस कूटनीतिक खेल में उसको मात देता आया है। चीन ने इन दोनों देशों को आर्थिक तौर पर हाईजैक करने की कोशिश की थी, लेकिन भारत आखिर इन्हें दोबारा अपने पक्ष में करने में सफल हुआ था। इसमें इन देशों में भारत का समर्थन करने वाली सरकारों का सत्ता में आना भी बहुत महत्वपूर्ण था। उदाहरण के तौर पर श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे की सरकार के समय चीन को श्रीलंका के एक महत्वपूर्ण पोर्ट हंबनटोटा का जिम्मा सौंप दिया गया था। हालांकि, बाद में जब इस देश में रानिल विक्रमसिंघे के नेतृत्व में सरकार बनी, तो चीन द्वारा इस पोर्ट के ‘सुरक्षा के लिहाज से किसी भी इस्तेमाल’ पर रोक लगा दी गई और चीन को सिर्फ इस पोर्ट के व्यावसायिक इस्तेमाल की ही छूट दी गई।
इसी तरह भारत-मालदीव के द्विपक्षीय रिश्ते को पिछली अब्दुल्ला यामीन की सरकार में गहरा धक्का लगा था, लेकिन विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के सत्ता में आने के बाद दोनों देशों के संबंध पटरी पर लौटते दिख रहे हैं। पिछली सरकार के दौरान हुए नुकसान की भरपाई और द्विपक्षीय रिश्ते को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के इरादे से सोलिह ने भारत की यात्रा भी की थी। इस यात्रा के जरिये उन्होंने यही संदेश देने की कोशिश की थी कि भारत और मालदीव करीबी पड़ोसी और साझेदार हैं और यामीन के कार्यकाल में जो कुछ हुआ वह अपवाद था। इसके अलावा भारत ने मालदीव को उस वक्त आर्थिक सहायता देने की भी घोषणा की थी।
हालांकि, कूटनीति कभी ना खत्म होने वाला संघर्ष है। चीन, जो चुनौती भारत के सामने कभी हिन्द महासागर में खड़ा कर रहा था, आज वह वही चुनौती भारत के ऐन दरवाजे पर खड़ा कर रहा है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि भारत ने नेपाल को पूरी तरह डंप कर दिया हो, या उसे कोई तवज्जो ना दी हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस वर्ष पिछले महीने ही वीडियो लिंक के जरिए संयुक्त रूप से भारत नेपाल (मोतिहारी-अमलेखगंज) पाइपलाइन का उद्घाटन किया था। बता दें कि दक्षिण एशिया का यह पहला क्रॉस बॉर्डर पेट्रोलियम पाइपलाइन है। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली ने उस वक्त कहा था, ‘भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के साथ संयुक्त तौर पर पाइपलाइन उद्घाटन करते हुए खुशी हो रही है। मेरे मित्र मोदी जी और भारत सरकार को धन्यवाद।‘
इसके अलावा भारत और नेपाल के बीच प्रस्तावित 18.5 किलोमीटर सीमा पार रेल लाइन के लिए भी भारत ने विस्तृत परियोजना रिपोर्ट नेपाल को सौंप दी है। यह रेल लाइन भारत के रूपैदिहा और नेपाल के कोहालपुर को जोड़ेगी। यानि अभी भारत नेपाल के साथ अपने रिश्तों को और मजबूती प्रदान करने के लिए अपनी ओर से पूरी कोशिश कर रहा है, लेकिन नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार का झुकाव चीन की ओर है। अभी भारत को अपनी इन कोशिशों में और जान फूंकने की दिशा में काम करने की आवश्यकता है। जिस तरह भारत ने अपनी कोशिशों से श्रीलंका और मालदीव में चीन के प्रभाव को कम करने का प्रयास किया था, ठीक उसी तरह भारत को नेपाल में भी दोहराना होगा। भारत के लिए ऐसा करना इसलिये भी संभव हो सकता है क्योंकि नेपाल और भारत के बेहद घनिष्ठ सांस्कृतिक संबंध है। भारत के अलावा नेपाल विश्व का एक अन्य महत्वपूर्ण हिन्दू बहुल देश है, और ऐसे में सरकार को इस देश के साथ जल्द से जल्द अपने रिश्तों को नये आयाम देने के प्रयास करना होगा।