24 अक्टूबर का दिन भाजपा के लिए मिश्रित रहा। एक ओर जहां महाराष्ट्र में पार्टी ने शिव सेना के साथ मिलकर सत्ता वापसी सुनिश्चित की, तो वहीं हरियाणा में उसे अपनी सरकार बचाने के लिए अब एड़ी चोटी का ज़ोर लगाना पड़ेगा। महाराष्ट्र में जहां एनडीए गठबंधन 288 सीटों में से 160 से ज़्यादा सीटों पर आगे चल रही है, तो वहीं हरियाणा में वे 40 सीटों पर आगे चल रही है। परंतु जिस पार्टी के प्रदर्शन ने सभी को चौंकाया है, वह है 78 वर्षीय शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानि एनसीपी। एनसीपी को महाराष्ट्र चुनाव के परिणाम से पहले ही हारा हुआ घोषित कर दिया गया था। लोकसभा चुनाव में शरद पवार की पार्टी ने महज 4 सीटें प्राप्त की थी, जबकि 19 सीटों पर इस पार्टी ने चुनाव लड़ा था। पिछली बार के विधानसभा चुनाव में उन्होंने मात्र 41 सीट प्राप्त की थी। बड़े से बड़े चुनावी विश्लेषक के लिए एनसीपी राजनीतिक हाशिये पर आ चुकी थी। स्थिति तो यह हो गयी थी कि यूपीए गठबंधन में सीनियर पार्टनर माने जाने वाली कांग्रेस ने एनसीपी के क्षेत्रों में प्रचार करना भी उचित नहीं समझा।
परंतु इस बार महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में एनसीपी ने सभी को चौंकाते हुए उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया। इस बार एनसीपी ने न केवल 50 का आंकड़ा पार किया, अपितु उन्होंने लगभग सम्पूर्ण पश्चिमी महाराष्ट्र में अपना वर्चस्व यथावत रखा है। यही नहीं, कांग्रेस का आंकड़ा 36 पर ही सिमटता नजर आ रहा है। पिछले चुनाव में कांग्रेस को 42 सीटें मिली थीं। इस तरह कांग्रेस का प्रदर्शन 2014 के मुकाबले और कमजोर हुआ है।
यह इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि अब तक एनसीपी को कांग्रेस का जूनियर पार्टनर माना जाता था, लेकिन मराठा नेता शरद पवार ने न केवल पिछली बार की तुलना में अपनी सीटें बचाईं, बल्कि कांग्रेस के मुकाबले ज़्यादा बढ़त हासिल की। स्वयं अजित पवार बारामती की विधानसभा सीट पर बहुत बड़े अंतर से जीते हैं। इससे एक बात तो पूर्णतया साफ है, शरद पवार भले ही राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रासंगिकता गंवा चुके हो, परंतु महाराष्ट्र में वे अब भी एक शक्तिशाली नेता हैं।
शरद पवार की विचारधारा से भले ही सब सहमत न हो, परंतु उनकी राजनीतिक परिपक्वता को कोई अनदेखा नहीं करता। 1978 –1980, 1988 –1991 एवं 1993 –1995 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके शरद पवार की गिनती एक समय महाराष्ट्र ही नहीं, अपितु समूचे भारत के कद्दावर नेताओं में की जाती थी। 2004 में जब कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए ने सरकार बनाई, तो शरद पवार ने उसमें भी एक अहम भूमिका निभाई। इसी कारण से उन्हें कृषि मंत्रालय एवं उपभोक्ता, खाद्य एवं जन वितरण मंत्रालय सौंपा गया था।
शरद पवार का अपने काम के प्रति कितनी निष्ठा है, ये इसी बात से पता चलती है कि उन्होंने किस तरह अकेले दम पर मोर्चा संभाला और 78 वर्ष की आयु में भी उन्होंने भाजपा और शिव सेना के खिलाफ मोर्चा खोलने में तनिक भी हिचकिचाहट नहीं दिखाई। अभी हाल ही में विधानसभा चुनाव से संबन्धित एक रैली में मूसलाधार वर्षा में भी शरद पवार ने न केवल अपना भाषण दिया, अपितु उस क्षेत्र से संबंधित सतारा लोकसभा सीट एवं विधानसभा सीट पर एनसीपी की बढ़त भी सुनिश्चित कराई।
शरद पवार का वो भाषण सोशल मीडिया पर काफी वायरल भी हुआ, जिससे यह साफ होता है कि शरद पवार भले ही वृद्ध हो गए हों, परंतु उनके राजनीतिक परिपक्वता से पार पाना अभी भी सरल नहीं है। शरद पवार ने इस चुनाव से यह भी सिद्ध किया कि उनकी पार्टी अभी भले ही राजनीतिक फ्रंट पे बैकफुट पे हों, परंतु वे पूरी तरह आउट नहीं हुए हैं।